-सिद्धार्थनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश पर जारी हुआ था गैरजमानती वारंट
प्रयागराज,आर पांडेय। सहारा इंडिया के चेयरमैन सुब्रत राय को इलाहाबाद हाई कोर्ट से बड़ी राहत मिल गयी है । कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी के गैर जमानती वारंट पर रोक लगा दी है हाईकोर्ट ने सुब्रत राय और कंपनी के दो डिप्टी चेयरमैन की गिरफ्तारी पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी है।
इन तीनों के खिलाफ सीजेएम सिद्धार्थनगर ने गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किया था। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। न्यायालय ने प्रदेश सरकार को इस मामले में जवाब दाखिल करने का समय देते हुए गैरजमानती वारंट के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति सैय्यद आफताब हुसैन रिजवी ने ओ पी श्रीवास्तव व अन्य की याचिका पर दिया है।
सुब्रत राय सहारा और कंपनी के डिप्टी चेयरमैन ओमप्रकाश श्रीवास्तव ओर स्वप्ना राय के खिलाफ सिद्धार्थनगर में धोखाधड़ी की प्राथमिकी कंपनी के ही फ्रेंचाइजी एजेंट ने दर्ज कराई है। जिसकी जांच चल रही है। मामले में जांच अधिकारी ने सीजेएम कोर्ट में यह कहते हुए प्रार्थनापत्र दिया था कि आरोपीगण जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और तलब करने पर आ नहीं रहे हैं।
इस प्रार्थनापत्र पर सीजेएम ने तीनों आरोपियों के खिलाफ पांच अक्टूबर 2021 को गैरजमानती वारंट जारी किया था। याचिका में वारंट को चुनौती देते हुए कहा गया है कि जांच अधिकारी ने बिना तारीख का प्रार्थनापत्र सीजेएम अदालत में दिया जिसमें कोई स्पष्ट या विशेष आरोप नहीं है। सिर्फ सामान्य आरोप लगाया कि जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं।
वास्तविकता यह है कि उनको जांच अधिकारी की ओर से कोई नोटिस नहीं मिली है। न ही किसी नोटिस को नजरअंदाज किया गया है। याचीगण जांच में सहयोग करने के लिए तैयार हैं और इस बात की पुष्टि जांच अधिकारी ने भी बाद में दी गई अपनी रिपोर्ट में की है। सरकारी वकील ने पूरे मामले की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए समय की मांग की। जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने अगली सुनवाई तक के लिए गैरजमानती वारंट के तामील करने पर रोक लगा दी है।
याचिका में कहा गया है कि कंपनी के फ्रेंचाइजी एजेंट राजूलाल श्रीवास्तव ने एक अन्य एजेंट राधेश्याम सोनी के साथ मिलकर कंपनी के खाताधारकों के एकाउंट में गड़बड़ी की और कंपनी की रकम का गबन किया। कंपनी के अधिकारियों ने इन दोनों के खिलाफ इस मामले में सिद्धार्थनगर में प्राथमिकी दर्ज कराई है। इसके जवाब में इन दोनों ने सीजेएम कोर्ट में 156 (3) सीआरपीसी के तहत प्रार्थनापत्र दिया गया जिसे सीजेएम ने परिवाद के तौर पर दर्ज कर लिया है। इस दौरान तथ्यों को छिपाकर और पुलिस से मिलीभगत कर इन दोनों ने इसी मामले में प्राथमिकी भी दर्ज करा दी जो गैरकानूनी है।