सामान्यतः डेंगू की चिकित्सा के लिए रोगी एलोपैथी को चुनते हैं, अलबत्ता होम्यो चिकित्सा में डेंगू को सार्थक निदान करने में सक्षम है
Bettiah, Awadhesh Kumar Sharma: विगत कई वर्ष से डेंगू एक बीमारी नहीं बल्कि महामारी के रुप में सामने आया है। प्रतिवर्ष मॉनसून के दौरान और उसके बाद डेंगू का विकराल रुप देखने को मिला है। डेंगू की बीमारी ठहरे हुए साफ़ पानी में पैदा होने वाले एडीज़ इजिप्टी मच्छर के काटने से होती है। हालाकि डेंगू की चिकित्सा संभव है और प्रतिवर्ष डेंगू के लाखों रोगी चिकित्सा से स्वस्थ भी किये जाते हैं। आमतौर पर डेंगू की चिकित्सा के लिए मरीज़ एलोपैथ का सहारा लेते हैं। अलबत्ता होम्योपैथी भी डेंगू की चिकित्सा में अचूक सार्थक सिद्ध हो रहा है। उपर्युक्त विचार सविता होमियो क्लीनिक के निदेशक, होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ घनश्याम ने बताया कि डेंगू में होम्योपैथिक चिकित्सा असरदार है, अलबत्ता अधिकांश मामलों में रोगी या उसके परिजन ऐलोपैथी पर विश्वास करते हैं।
होम्योपैथी पद्धति अति विश्वसनीय है। उसमें किसी प्रकार के साइड-इफेक्टस भी नहीं होते। होम्योपैथिक चिकित्सा के क्रम में रोगी को नियमित दवाओं के साथ रक्त जांच से प्लेटलेट्स और ल्यूकोसाइट्स काउंट करवाना चाहिए। होम्योपैथिक दवाओं में किसी तरह का साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिलता, इसलिए होम्योपैथिक दवाएं डेंगू पीड़ित गर्भवती महिलाओं को दी जा सकती हैं। डेंगू के इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही जानलेवा सिद्ध हो सकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि किसी दवा दुकानदार या झोलाछाप से नही बल्कि विशेषज्ञ होम्योपैथिक चिकित्सक से डेंगू की चिकित्सा कराएं।
डेंगू के लक्षण
तेज़ बुखार, पूरे शरीर, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द डेंगू का मुख्य लक्षण होता है। जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द की वजह से रोगी का चलना कठिन हो जाता है। जिसके कारण डेंगू को ‘हड्डी तोड़ बुखार’ भी कहा जाता है। बुखार में आंखें लाल हो जाती हैं और आंखों से लगातार पानी बहता है। इन सबके साथ रोगी को उल्टी आना, जी घबराना, भूख नहीं लगना तथा नींद नहीं आना जैसे लक्षण भी झेलने पड़ते हैं।
मच्छरों से बचाव के उपाय
बेतिया के डॉ घनश्याम एवं नरकटियागंज के डॉ विष्णु बिहारी के अनुसार छत या घर के बाहर रखे खुले बर्तनों, पुराने टायर या पानी के गडढ़ों में पानी इक्ट्ठा नही होने दें। बाल्टी या किसी बर्तन में भरे हुए पानी को ढ़ककर रखें। मच्छर साफ और ठहरे पानी में ही पैदा होते हैं। कूलर के पानी को हर हफ़्ते बदलना चाहिए या उसमें कीटनाशक डालना चाहिए, अगर घर में कीटनाशक न हो तो आप पेट्रोल या मिट्टी का तेल भी डाल सकते हैं। जिससे इस पानी में मच्छर पैदा न हों। घर के कोनों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें और घर में साफ़ सफ़ाई रखें। खिड़कियों में जाली लगाएं जिससे मच्छर खिड़की के ज़रिये घर में दाखिल न हो सकें। रात को सोते वक़्त मच्छरदानी या मॉस्किटो रेपलेंट का इस्तेमाल करें।