मोहन भागवत ने नागपुर में की शस्त्र पूजा, कहा- शिक्षा के साथ-साथ परिवार और समाज के संस्कार भी जरूरी

महाराष्ट्र

DESK : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने विजयादशमी उत्सव के मौके पर नागपुर के रेशमीबाग में आज (5 अक्टूबर) संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. मोहन भागवत ने इस दौरान कई मुद्दों पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा शक्ति हर बात का आधार है. शक्ति शांति और शुभ का भी आधार है. उन्होंने कहा कि हेडगेवार के समय से अनेक महिलाए, संघ के कई कार्यक्रमों में आती रही हैं. समाज को संगठित करना है तो समाज तो दोनों से बनता है. इसलिए महिला-पुरुष में श्रेष्ठ कौन इसका विचार हम नहीं करते.

मोहन भागवत ने कहा कि मातृशक्ति को बराबर का अधिकार देना और परिवार में निर्णय स्वतंत्रता देना जरूरी है. जो काम पुरुष कर सकता है वह सभी काम मातृशक्ति कर सकती है, लेकिन जो-जो काम मातृशक्ति कर सकती है, वह सभी काम पुरुष नहीं कर सकता. महिलाओं के समावेश के बिना पूरे समाज की संगठित शक्ति खड़ी नहीं हो सकेगी और जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे संगठन की कोशिश पूरी नहीं होगी.

आज विश्व में भारत का सम्मान बढ़ा है, जिस तरीके से भारत ने श्रीलंका की मदद की. रूस और युक्रेन के युद्ध में अपना हित रखा. इन्हें देखते हुए हमारा सम्मान बड़ा है. दुनिया में हमारे देश की बात सुनी जा रही है. राष्ट्र सुरक्षा के मामले में भारत स्वावलंबी हो रहा है. कोरोना से बाहर आने के बाद अर्थव्यवस्था पूर्व स्थिति में आ रही है. खेल के क्षेत्र में भी खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली में कर्तव्य पथ का लोकार्पण हुआ, उस समय प्रधानमंत्री ने भारत के नवउत्थान की बात की और देश के नव उत्थान के हर क्षेत्र में भारत आगे बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि कुछ लोग चाहते हैं कि भारत की प्रगति न हो. वे सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ते हैं, हमारे बीच दूरियां बढ़ाने की कोशिश करते हैं. इन लोगों की कोशिश है कि देश में आतंक बढ़े, अराजकता का वातावरण बने लोगों में नियम कानून के प्रति सम्मान ना रहे. शासन ऐसे लोगों के खिलाफ लगातार कार्रवाई कर रहा है. उन्होंने कहा कि सभी लोगों को इसमें शासन की मदद करनी होगी.

यह एक मिथक है कि करियर के लिए अंग्रेजी जरूरी है. नई शिक्षा नीति से छात्र उच्च संस्कारी, अच्छे इंसान बनें जो देशभक्ति से भी प्रेरित हों, यही सबकी इच्छा है. समाज को इसका सक्रिय रूप से समर्थन करने की जरूरत है. अंग्रेजों ने भारत पर अपनी शिक्षा नीति लादी. उसी शिक्षा नीति से पढ़कर निकले हुए अनेक महापुरुष आगे चलकर अंग्रेजों के विरोध में लड़े. शिक्षा के साथ-साथ परिवार और समाज के संस्कार भी जरूरी हैं.