सेंट्रल डेस्क/पुलिन त्रिपाठी।
हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
इक बाग नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।
यह फिल्मी तराना भले ही पुराना है पर हर साल जैसे ही पहली मई आती है तमाम पुराने भारतीय मजदूर इन लाइनों को गुनगुनाने लगते हैं। वजह है कि इस दिन पूरे विश्व में मजदूर दिवस मनाया जाता है।
दरअसल मजदूरों और श्रमिकों को सम्मान देने के उद्देश्य से, उनके हक में लड़ी गई लड़ाई को याद करने के लिए हर साल एक मई का दिन इनको समर्पित होता है। इसे श्रमिक दिवस, लेबर-डे, मजदूर दिवस और मई-डे के नाम से जाना जाता है। भारत में इस वक्त तकरीबन 501 मिलियन से भी ज्यादा लेबर अलग-अलग इंडस्ट्रीज में और असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। आपने कभी सोचा भी है कि आखिर क्या जरूरत पड़ी कि पहली मई को मजदूर दिवस मनाया जाने लगा।
आइए हम बताते हैं मजदूर दिवस का कारण : पहले मजदूरों से दिन के 15-15 घंटे काम लिया जाता था। पहली मई 1886 को अमेरिका में मजदूर सड़कों पर आ गए थे और वो अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे। तभी पुलिस ने मजदूरों पर फायरिंग कर दी, जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई।
वहीं सौ से ज्यादा श्रमिक घायल हो गए थे, पर आंदोलन रंग लाया। घटना के लगभग तीन साल बाद यानी 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई। बैठक में फाइनल हुआ कि मजदूरों से आठ घंटे ही काम लिया जाएगा। यह भी तय हुआ कि हर साल पहली मई को मजदूर दिवस मनाया जाएगा।
साथ ही हर साल पहली मई को छुट्टी देने का भी फैसला लिया गया। अमेरिका में श्रमिकों के आठ घंटे काम करने के निमय के बाद कई देशों ने इस नियम को लागू कर दिया। हालांकि भारत में इस प्रथा की शुरुआत 34 साल बाद हो सकी। जब पहली मई 1923 को चेन्नई से मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत हुई।
लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में यह फैसला किया गया। इस बैठक को कई सारे संगठनों और सोशल पार्टी का समर्थन मिला, जो मजदूरों पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। इसका नेतृत्व कर रहे थे वामपंथी। तब से मजदूर नेता एक-दूसरे को आपस में कामरेड कहने लगे और भारत में भी मई-डे मनाने की प्रथा शुरू हो गई।