ब्रह्मानन्द ठाकुर-
जी हां ,विद्रोही कवि रामधारी सिंह दिनकर ! हालाकि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर टिकी इस पूंजीवादी व्यवस्था के संचालक , आधुनिक राष्ट्रवादियों को दिनकर जी के प्रति मेरा यह संबोधन नागवार लग सकता है लेकिन कवि के इस विशेषण की सार्थकता स्वयं उन्हीं की पंक्तियां – प्रतिपादित करती हैं- ‘शांति नहीं तबतक, ,जबतक सुख भाग न नर का सम हो / नहीं किसी को बहुत अधिक हो , नहीं किसी को कम हो।’
वर्गविभाजित समाज में स्थाई शांति की स्थापना तबतक सम्भव नहीं है , जबतक आर्थिक समानता नहीं कायम हो जाती। दिनकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से पूर्व विद्रोही कवि के रूप मे शुमार किए जाते रहे। आजादी के बाद वे राष्ट्रकवि कहलाए। उनकी कविताओं मे ओज है , विद्रोह का स्वर है और है क्रांति का आह्वान। वैसे तो उनकी कई रचनाएं श्रृंगारपरक भी हैं।उनकी प्रमुख कृति उर्वशी को ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका है।जबकि कुरुक्षेत्र को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 100 काव्यों मे 74 वां स्थान मिला हुआ है।
ऊपर मै दिनकर जी की जिन बहुपठित ,बहुउद्धृत पंक्तियों का उल्लेख किया हूं ,उसका सम्बंध समतामूलक समाज के निर्माण से जुडा हुआ है। एक ऐसी आर्थिक समानता की स्थापना जो विश्वबंधुत्व की परिकल्पना को साकार कर सके- वसुधैव कुटुम्बकम्। सवाल यहा यह भी है कि ‘ साम्य की वह रश्मि कब फूटेगी?’
आज पूंजीवाद – साम्राज्यवाद ने आदमी को आदमी बने रहने की प्रक्रिया पर अघोषित रोक लगा रखा है। मनुष्य अब जानवर से भी बदतर आचरण करने लगा है।पूंजीवाद से सीधा तात्पर्य है पैसे का राज। मुनाफे, ,सिर्फ मुनाफे के लिए उत्पादन। जीवन के हर क्षेत्र में पैसे की भूमिका इंसान को हैवान बनाने पर तुली हुई है। इंसान का गला घोंट कर भी यदि पैसा कमाया जा सके तो बेशक कमाया जाए , ऐसी सोंच का विकास ही पूंजीवाद की अंतिम परिणति है।
इतिहास बताता है कि आदिम युग से लेकर कुछ सौ साल पहले तक समाज मे पैसे का नामोनिशान तक नहीं था। समाज के ताकतवर लोगों ने अपनी ताकत के बल पर प्रकृति प्रदत्त सम्पदा को जब निजी सम्पत्ति बना लिया तब समाज मे वर्ग विभाजन हुआ।शोषक और शोषित दो वर्ग बने। इसी वर्गविभाजन के कारण समाज का शोषित वर्ग जानवरों- सी जिंंदगी जीने को मजबूर हुआ। यही कारण है कि चंद पैसों के लिए आज लोग एक- दूसरे का गला काटने पर आमादा हैं।
आज सारी प्राकृतिक सम्पदा और वैज्ञानिक साधनो पर मुठ्ठीभर पूंंजीपतियों का अधिकार है। इस स्थिति ने बहुसंख्यक लोगों को अभावग्रस्त और भाग्यवादी बना दिया है। सच्चाई यह है कि वर्तमान उत्पादन से देश की वर्तमान आवादी की तमाम जरूरतें पूरी हो सकती हैं वशर्ते कि उसका वितरण सही से हो सके। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। एक वर्ग सारी सम्पदा पर कुंंडली मारकर बैठा हुआ है। दिनकर जी अपनी कविताओं में ऐसी स्थिति पर तल्ख टिप्पणी करने से नहीं चूकते। सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देकर मरघट की शांति और क्लीवता की विनम्रता दिनकर जी को कभी स्वीकार्य नहीं हुआ। तभी तो उन्होने लिखा —
‘हब्शी पढें पाठ संस्कृति के खडे गलियों की छाया में,
यही शांति ,वे मौन रहें जब आग लगे उनकी काया में।
चूस रहे हों दनुज रक्त, पर ,हों मत दलित प्रबुद्ध कुमारी,
हो न कहीं प्रतिकार पाप का ,शांति या ‘कि यह युद्ध कुमारी।’
यह कैसी आर्थिक विषमता कि कहीं दौलत का अम्बार है तो कहीं भूख और कुपोषण से बिलबिलाते कोमल शिशु। यह देख कर दिनकर का हृदय विदीर्ण हो उठता है और वे लिखने को विवश हो जाते हैं
‘वे भी यहीं, दूध से जो अपने श्वानों को नहलाते हैं, वे बच्चे भी यहीं, कब्र में ‘दूध दूध’ जो चिल्लाते हैं।’
कवि की दृष्टि मे समाज मे व्याप्त यह आर्थिक विषमता राष्ट्रीय एकता के लिए बडा खतरा है। इसको लक्ष्य कर दिनकर जी ने लिखा-
‘जबतक यह वैषम्य समाज रहेगा,
किसतरह एक होकर यह देश लडेगा।
सबसे पहले यह दूरित मूल काटो रे,
समतल पीटो, खाइयां-खड्ड पाटो रे।
बहुपाद बटों की शिरा-सोर छांटो रे,
जो मिले अमृत ,सबको समान बांटो रे।’
दिनकर जी मूल रूप से जनता के कवि थ।उनका गहरा सरोकार देश की जनता से रहा। देश की वह जनता जो खेतों, खलिहानो, खदानो, कारखानो मे मर खप कर राष्ट्र के नवनिर्माण मे जुटी है, उनके साथ वे आजीवन खडे रहे, उसके लिए लिखते रहे। उन्होने उसकी पीडा को सदैव अभिव्यक्ति प्रदान की।
पहली बार जब वे राज्यसभा के लिए चुने गये तो प्रधानमंत्री पंडित जबाहरलाल नेहरु ने उनसे एक कविता सुनाने को कहा था। उनके अनुरोध पर दिनकर जी ने अपनी कविता ‘ रेशमी नगर ‘ का पाठ किया था। जिसकी कुछ पंक्तियां यहां उद्धृत करना समीचीन होगा।
भारत धूलों से भरा, आंसुओं से गीला,
भारत अब भी व्याकुल विपत्तियों के घेरे में।
दिल्ली मे है खूब ज्योति की चहल पहल,
पर, भटक रहा है सारा देश अंधेरे में।’
आज राष्ट्रकवि की 48 .वी पुण्य तिथि है। इस अवसर पर समाज मे व्याप्त आर्थिक असमानता को खतँम कर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांंजली होगी।