शहादत दिवस पर विशेष : शोषणमुक्त, वर्ग विहीन समाज व्यवस्था स्थापित होने तक भगत सिंह याद किए जाते रहेंगे

विचार

 ब्रह्मानन्द ठाकुर :

आज भगत सिंह ,राजगुरु और सुकदेव का 91 वां शहादत दिवस है। 1931  मे आज ही के दिन लाहौर सेन्ट्रल जेल में देश के इन तीन महान सपूतों को फांसी दी गई थी। भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के गैर समझौतावादी धारा के जांबाज सिपाही थे। उनका उद्देश्य आजादी हासिल करने के बाद देश मे उच्च नीति – नैतिकता और संस्कृति के आधार पर एक ऐसी समाज व्यवस्था का निर्माण करना था जिसमें मनुष्य का मनुष्य के द्वारा किसी भी तरह के शोषण की गुंजाईश न रहे। एक ऐसी समाज व्यवस्था जिसमें बिना किसी भेदभाव के सबको शिक्षा ,सबको स्वास्थ्य और सबको रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सके। भले ही हमारा देश आज आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ,मगर भगत सिंह ,राजगुरु ,सुकदेव  जैसे महान क्रांंतिकारियों का सपना आजतक अधूरा है। 

यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटें तो यह   बात सामने आती है कि हर युग में शोषण ,उत्पीडण और अनाचार – अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने वालों को भारी कीमत चुकानी पडी है। उस समय के सत्ताधारी शोषक वर्ग ने उनपर ढेरो अत्याचार किए हैं। भगत सिंह भी इसके अपवाद नहीं रहे। ताज्जुब तो तब होता है कि भगत सिंह और उनके विचारों का विरोध करने वाले वामपंथी और गांधीवादी भी आज उनको अपने – अपने तरीके से याद कर रहे हैं ,उन्हें श्रद्धांंजली अर्पित कर रहे हैं मगर उनकी भावधारा से उनका कोई वास्ता नहीं है। जाहिर है कि ऐसे आयोजनो के पीछे उनका उद्देश्य भगत सिंह के विचारों को जनजन तक फैलाना नहीं , बल्कि आम जनता , खास कर छात्र – नौजवानों के दिल व दिमाग  मे क्रांतिकारी विचारधारा की प्रासंगिकता को धुमिल बनाना है।  

भगत सिंह का  कहना था कि छात्र जीवन का मूल उद्देश्य सिर्फ पढाई- लिखाई कर ,स्वर्णपदक प्राप्त करना और अच्छी नौकरी पाना नहीं,बल्कि एक ऐसी राह तलाशनी है जिस पर चलकर समाज को हर तरह के शोषण – उत्पीडण से मुक्ति  दिलाई जा सके।भगत सिंंह ने ऐसा न सिर्फ कहा ,बल्कि खुद के जीवन को इसी राह की खोज में न्योछावर भी कर दिया। क्या आज की युवा पीढी का यह दायित्व नहीं है कि  वे  ऊंचे ओहदे ,शोहरत , दौलत और  अय्याशी की जिंदगी  जिसे भगत सिंह निकृष्ट जिंदगी मानते थे , को  त्याग एक ऐसी जिंदगी  जीने का रास्ता खोज निकालें जिसपर चल कर सम्पूर्ण मानव जाति को  शोषण से मुक्ता हासिल हो सके।

हमारी आजादी के 75 साल  हो रहे हैं। भगत सिंह समेत  अनेक क्रांतिकारी देशभक्तों ने आजाद भारत का जो सपना देखा था ,वह  साकार नहीं हो पाया है। अशिक्षा ,बेरोजगारी ,गरीबी ,शोषण ,भ्रष्टाचार ,नैतिक और सांस्कृतिक पतन चरम पर है। कर्ज के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं।इसके विरोध की आवाज को बेरहमी से कुचला जा रहा है। तंत्र के समक्ष ‘ लोक ‘  आज नतमस्तक है।  सवाल लाजिमी है कि क्या यह वही लोकतंत्र है जिसकी कल्पना आजादी आंदोलन के दौरान  क्रांतिकारी शहीदों ने की  थी? आज हालात ये है कि लम्बे संघर्ष और कुर्बानियोंके बाद मजदूरों द्वारा हासिल  किए गये अधिकार एक -एक कर छीने जा रहे हैं। हर वक्त उनके सिर पर छंटनी और तालाबंदी की तलवारें लटकी रहती हैंः नौकरी बचे रहने की कोई गारंटी नहीं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं बाजार के हवाले कर दिए जाने से आम आदमी के लिए इसे हासिल कर पाना असम्भव हो गया है।

आज जीवन की तमाम मूलभूत जरूरतें बाजार के हवाले कर दी गईं है। महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर है। ऐसे दमघोंटू हालात के खिलाफ छात्र और नौजवां अपनी आवाज ंंनहीं उठा सके इसके लिए उसे शराब ,गांजा ,ड्रग्स ,यौनिकता जैसी कुप्रवृतियों का शिकार बनाया जा रहा है।  विभिन्न माध्यमों से धडल्रले से अश्लीलता  परोसा जा रहा है।  घर  से लेकर खेत- खलिहान और दफ्तर तक  महिलाएं महफूज नहीं हैं। देशव्यापी घुटन भरे इस माहौल  के  विरुद्धध भगत सिंह ,खुदीराम बोस ,चंद्रशेखर आजाद , जैसे क्रांतिकारियों के विचारों से लैस  युवा वर्ग ही सशक्त प्रतिरोध खडा कर सकता है।  इस प्रकार जबतक शोषणमुक्त वर्गविहीन समाज की स्थापना का भगत सिंह का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता ,उनकी प्रासंगिकता कायम रहेगी।