मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। एआईकेएमएस ने गेहूं खरीद पर 500 से 1000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोनस भुगतान, सभी किसानों को डीजल और उर्वरक वृद्धि के मुआवजे का भुगतान, खाद्य मुद्रास्फीति और बेरोजगारी की भरपाई के लिए 10 किलो प्रति यूनिट प्रति माह मुफ्त राशन वितरण और मनरेगा के तहत 200 दिन के काम की तथा डीएपी की खुली आपूर्ति और उसकी कालाबाजारी पर प्रतिबंध की मांग की है।
एमएसपी समिति : एआईकेएमएस ने मांग की है कि सरकार को सभी किसानों से सभी फसलों के लिए सी2$50 प्रतिशत एमएसपी की गारंटी के लिए समिति घोषित करने से ध्यान हटाना बंद कर देना चाहिए और समिति की शक्ति, उसकी संरचना और टर्म्स ऑफ रेफेरेन्स को स्पष्ट रूप से घोषित करना चाहिए तामि एसकेएम इसके लिए अपने प्रतिनिधियों के नाम भेज सके।
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गेहूं 4100 रुपये प्रति क्विंटल बिक गया है। ये दोनों देश मिलकर विश्व के 40 फीसदी गेहूं की आपूर्ति करते हैं। भारत के किसानों को इस मूल्य वृद्धि से लाभान्वित होने से रोकने के लिए, भारत सरकार अपने घोषित एमएसपी 2015 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं बेचने के लिए उन्हें मजबूर कर रही है, जो कि सी 2 ,प्लस 50 फीसदी, यानी 2600 से 2700 रुपये प्रति क्विंटल से बहुत कम है।
अंतरराष्ट्रीय कीमतों के साथ गेहूं की कीमतों को जोड़ने में सरकार की विफलता, जबकि दुनिया में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण वह लगातार डीजल की कीमतें बढ़ाती जा रही है, दिखाता है कि वह किसानों के प्रति सौतेला व्यवहार कर रही है। जाहिर है, तेल में अंतरराष्ट्रीय समूह शामिल हैं जबकि गेहूं में गरीब किसान अकेला खड़ा है।
सरकार ने मोगा, पंजाब और ढांड, कैथल, हरियाणा जैसे कई स्थानों पर अडानी के साईलोस को किराए पर ले लिया है और यहा वह गेहूं खरीद और भंडारण कर रही है, जिससे किसानों को एमएसपी पर बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय कीमतों का आधा है। गेहूं के निर्यात से होने वाला लाभ राज्य व्यापार निगम को तथा उन बड़े निजी निर्यातकों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को जाना तय है जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए राज्य सरकारों से गेहूं खरीदते हैं। किसानों से खरीद मूल्य कम रखने के लिए सरकार और बड़े व्यापारियों के बीच सांठगांठ है।
भारत से गेहूं का निर्यात ’20-’21 में 21 लाख टन से बढ़कर ’21-’22 में 78.5 लाख टन हो गया और इस वित्त वर्ष में 120 लाख टन तक बढ़ने की उम्मीद है। गेहूं के निर्यात से 2600 रुपये से 4100 रुपये प्रति क्विंटल के बीच उच्च कीमतें प्राप्त हुई हैं।
धान खरीद : तेलंगाना सरकार द्वारा 1940 रुपये प्रति क्विंटल के घोषित एमएसपी पर सभी धान की फसल खरीदने की घोषणा का स्वागत करते हुए एआईकेएमएस ने मांग की है कि सरकार को उन सभी किसानों को मुआवजा देना चाहिए, जिन्हें सरकार की घोषणा में देरी के कारण मार्च अंत से अपने लगभग 2 लाख मीट्रिक टन धान को निजी मिलर्स को 1500 से 1600 प्रति क्विंटल रुपये में बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा।
केंद्रीय जिम्मेदारी : एआईकेएमएस ने सामान्य और उबले चावल के बीच भ्रम पैदा करने की कोशिश करके राज्य में धान खरीद के लिए सहायता प्रदान नही करने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की है। केंद्र और तेलंगाना सरकार दोनों आपसी आरोप-प्रत्यारोप में लगे हुए थे जबकि किसानों को इसका नुकसान हुआ। खरीद, खाद्य भंडार और पीडीएस वितरण की जिम्मेदार केंद्र सरकार की है और वह धीरे-धीरे इससे कन्नी काट रही है।
उर्वरक : एआईकेएमएस ने लागत सामग्री की कीमतों में वृद्धि की कड़ी आलोचना की है, विशेष रूप से डीजल की, जिसमें बड़ा हिस्स सरकारी करों का है और डीएपी व फॉस्फेटिक उर्वरकों की, जिसकी सत्ताधारी दल के करीबी बड़े व्यापारियों द्वारा खुले तौर पर कालाबाजारी की जा रही है।
सरकार उसी तरह के आपदा पथ पर आगे बढ़ रही है, जिस तरह श्रीलंका सरकार ने रासायनिक मुक्त जैविक खेती को बढ़ावा दिया और उर्वरक आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत में डीएपी, एमओपी और अन्य फॉस्फेट का आयात रुका हुआ है, जबकि स्टॉक तेजी से गिर रहा है और जमाखोर अत्यधिक सक्रिय हैं। आने वाले सत्र में भारी मात्रा में उर्वरक की कमी और संकट का खतरा मंडरा रहा है।
गरीबी, खाद्य और नौकरी की सुरक्षा : सरकार समर्थक बुद्धिजीवियों द्वारा तैयार किए गए आईएमएफ वर्किंग पेपर के इस दावों की आलोचना करते हुए कि भारत में गरीबी घट रही है, एआईकेएमएस ने दाल, वनस्पति तेल और चीनी के साथ-साथ राशन में प्रति माह 10 किलोग्राम प्रति यूनिट मुफ्त अनाज बढ़ाने की मांग की है।
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साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत 200 दिन के काम की भी मांग की है। ग्राउंड रिपोर्ट और कई अध्ययनों से पता चलता है कि देश में भूख, भुखमरी और बेरोजगारी बढ़ रही है। एआईकेएमएस की केंद्रीय कार्यकारी समिति ने देश के सभी किसान यूनियनों से उपरोक्त मांगों पर एक लंबे संघर्ष के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है ताकि केंद्र सरकार को अपनी कॉर्पाेरेट समर्थक, किसान विरोधी नीतियों को वापस लेने के लिए मजबूर किया जा सके।