ब्रह्मानन्द ठाकुर। कांग्रेस ने 8 एवं 9 अगस्त ,1942 को बम्बई में एक अधिवेशन आयोजित किया था। इसी अधिवेशन में स्वराज के लिए व्यापक जनांदोलन शुरू करने का प्रस्ताव पारित हुआ। ,’करो या मरो’एवं,’ अंग्रेजों भारत छोडो’ नारे के साथ देश भर में आंदोलन की शुरुआत हो गई । 9अगस्त की सुबह ही देश के तमाम बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
सरकार ने कांग्रेस सहित इससे जुड़े अन्य संगठनों को गैरकानूनी घोषित कर दिया। नेताओं की गिरफ्तारी की खबर देश भर में जंगल में आग की तरह फ़ैल गई । फिर 11अगस्त को पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने के दौरान अंग्रेजों की गोली से सात छात्र शहीद हो गये और25 घायल हो गये। इस घटना ने बिहार के छात्र -युवाओं में आक्रोश की लहर पैदा कर दी। आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया।
मुजफ्फरपुर-दरभंगा (अब समस्तीपुर)जिला सीमा पर अवस्थित पूसा आंदोलनकारियों का केन्द्र बन गया। यहां ब्रिटिश हुकूमत की अनेक संस्थाएं कार्यरत थीं।अंग्रेजों ने1912 में पूसा में एक हाईस्कूल की भी स्थापना की हुई थीं जहां आसपास के क्षेत्र के विद्यार्थी पढ़ने आते थे। 11अगस्त को पटना में हुए गोलीकांड और सात छात्रों की शहादत के बाद छात्रों का आक्रोश चरम पर था। पूसा भी छात्र आंदोलन का केन्द्र बन चुका था जहां आसपास के गांवों से प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग जुटने लगे थे।
आज से 80साल पहले आज ही के दिन(12अगस्त,1942 को) पूसा में आंदोलनकारियों की गुप्त बैठक हुई।बैठक में पूसा के लाल कोठी (जिसका कुछ अवशेष अब भी मौजूद है) पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया। यहां कृषि विभाग के उप निदेशक का मुख्य कार्यालय हुआ करता था। इस निर्णय की जानकारी ब्रिटिश हुकूमत को मिल गई। करीब आधा किमी रास्ते को मोटी रस्सी से घेर रास्ता अवरुद्ध कर दिया गया और अंग्रेजी पुलिस बड़ी संख्या में तैनात कर दी गई।
बाबजूद इसके सैंकड़ों की संख्या में छात्र -नौजवान नियत समय पर वहां पहुंच गये। इन्कलाब जिंदाबाद ,अंग्रेजों भारत छोड़ो और बंदे मातरम की गगनभेदी नारों के साथ भीड़ ने गोरे सिपाहियों को घेर लिया। देखते देखते भीड़ बढ़ती गई ।सारे अवरोध तोड़ते हुए आंदोलनकारी बिना सीढ़ी के ही लाल कोठी की छत पर चढ़ गये और तिरंगा फहरा दिया।
कल पढ़िए , आंदोलन का दूसरा चरण -पूसा टेक्निकल लूट काड