ड्रैगन फ्रूट पोल डिगर हेतु कृषि विश्वविद्यालय को मिला पेटेंट

भागलपुर

डेस्क। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने 2025 का पहला पेटेंट प्राप्त कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह पेटेंट “ड्रैगन फ्रूट पोल डिगर” के लिए प्राप्त हुआ है, जो ड्रैगन फ्रूट की खेती में उपयोग किए जाने वाले खंभों के लिए गड्ढा खोदने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
ड्रैगन फ्रूट, जो एक कैक्टस प्रजाति का पौधा है, को खंभों के सहारे की आवश्यकता होती है। इन खंभों के सहारे पौधा कई वर्षों तक उत्पादक बना रहता है।

दीमक प्रतिरोधी गुणों के कारण सीमेंट के खंभों को प्राथमिकता दी जाती है। इस नवोन्मेषी पोल डिगर के विकास में डॉ. शमीम, डॉ. महेश, डॉ. वसीम, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. फोजिया, डॉ. सनोज कुमार, डॉ. अनिल कुमार सिंह और डॉ. डी. आर. सिंह सहित वैज्ञानिकों की टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

यह उपकरण कम लागत वाला, टिकाऊ और किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। इसके उपयोग से ड्रैगन फ्रूट बागानों में दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि होगी। इस उपलब्धि के संदर्भ में बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, डॉ. डी. आर. सिंह ने कहा:
“ड्रैगन फ्रूट पोल डिगर के माध्यम से खेतों में श्रम लागत कम होगी, दक्षता बढ़ेगी, और पौधों की उत्पादकता में सुधार होगा।

सरकार की 40% सब्सिडी योजना भी इस पहल को और अधिक मजबूती प्रदान करेगी।” इसी क्रम में, बिहार कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक शोध, डॉ. अनिल कुमार सिंह ने इस पेटेंट को विश्वविद्यालय की नवाचार क्षमता का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह किसानों के लिए एक उपयोगी तकनीकी समाधान होगा।

बिहार सरकार ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है, जिसके तहत 21 जिलों में बड़े पैमाने पर खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को 40% सब्सिडी दी जाएगी। इससे न केवल किसानों की आय और उत्पादकता में वृद्धि होगी, बल्कि राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
ड्रैगन फ्रूट पोल डिगर को किसानों तक पहुंचाने हेतु विश्वविद्यालय के प्रयास:

  1. स्टार्टअप और इनक्यूबेशन सपोर्ट: बीएयू का SABAGRIs स्टार्टअप सेल और इनक्यूबेशन सेंटर इस नवाचार को स्टार्टअप के रूप में विकसित करने में सहायता करेगा, जिससे स्थानीय उद्यमियों और कृषि नवाचार कंपनियों को इसका व्यावसायिक उत्पादन करने का अवसर मिलेगा।
  2. उद्योग साझेदारी: किसी कृषि उपकरण निर्माता या MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) से करार कर इस उपकरण का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाएगा।
  3. सरकारी अनुदान और योजना समावेश: इसे बिहार सरकार की ड्रैगन फ्रूट योजना में शामिल किया जाएगा ताकि किसानों को सब्सिडी के साथ यह उपकरण उपलब्ध हो सके।
  4. प्रायोगिक प्रदर्शन (डेमो): किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और किसान मेलों में इसका प्रदर्शन किया जाएगा।
  5. पेटेंट-आधारित रॉयल्टी मॉडल: विश्वविद्यालय इसे एक लाइसेंस मॉडल में बदल सकता है, जहां कोई भी कंपनी इसे उत्पादित कर किसानों को बेचे और विश्वविद्यालय को पेटेंट रॉयल्टी मिले।
    बिहार कृषि विश्वविद्यालय के इस नवाचार से न केवल किसानों को लाभ मिलेगा बल्कि राज्य की कृषि प्रगति को भी एक नई दिशा मिलेगी |