Bihar : हिंदी दिवस पर एक व्यंग, आज हिंदी दिवस पर एक हिंदी प्रेमी का भाषण

बिहार मुजफ्फरपुर

Muzaffarpur, Brahmanand Thakur : शहर के एक शानदार होटल का मिटींग हाल खचाखच भरा हुआ है। पुरुष, महिला, किशोर वय युवा, युवतियां रंग बिरंगे परिधानों में सजे-संवरे, गर्दन उठाए, सीना थाने कुर्सियों पर जमे हुए हैं। मंच के बीचोबीच हिंदी डे का लोगो सजाया गया हे और दाईं तरफ एक किनारे वक्ता के सीने तक ढकने वाला स्पीच टेबुल रखा हुआ है।संचालक माईक से उद्घोषणा कर रहे हैं-देवियों और सज्जनों!हमारी इंतजार की घड़ियां अब खत्म हो चुकीं हैं।हमारे चीफ गेस्ट पधार चुके हैं। अभी वे प्रसाधन कक्ष में हैं। बस कुछ ही मिनटों में वे हम सब के बीच होंगे।

आडिएंस में फुसफुसाहट शुरू हो जाती है। इसी बीच संचालक की घोषणा सुनाई पड़ती है-जिसका तुझे था इंतज़ार, वो घड़ी आ गई, वो घड़ी आ गई। और मंच के बगल की कठ सीढ़ी लांघते हुए एक दीर्घकाय महापुरुष स्पेशल जिंस पैंट और इम्पोर्टेड-सा दिखता टीशर्ट पहने मंचासीन होते हैं। बगल में उनकी प्रतीक्षा में मंच पर खड़े कुछ लोग दांत चियार कर ही- ही-ही करते मुख्य अतिथि का स्वागत करते हैं। संचालक बारी बारी से आडिएंस में बेठे सात हिंदी प्रेमियों का नाम पुकार मंच पर उनको कुर्सियासीन करते हैं। फिर सभी मिलकर चमचमाते स्टैंड पर सजे दीप को जलती मोमबत्ती के सहारे प्रज्वलित करते हैं। ऐसे में मंच के शेष लोग एक दूसरे का पहुंचा या हथेली जो धरा गया उसे टच करते हुए दीप प्रज्वलन में सहयोग करते हैं। एक अद्भुत और मनोहारी छटा !

संचालक हंस की चाल चलते हुए सीने तक ढकने वाले टेबुल के सामने खड़े होकर हाथ में माईक थामे उद्घोषणा करते हैं-आडिएंस में बैठे देवियों और सज्जनों, देश के होनहार युवाओं और हिंदी पट्टी की बगिया में खिले हमारे नौ निहालो ! आज हिंदी डे पर आप सबों का बेलकम है, हम आपका खैर मकदम करते हैं और आपकी ग्लोरियस उपस्थित को सलाम करते हैं। आज के हिंदी डे आयोजन के चीफ गेस्ट मंच पर पधार चुके हैं। हम बिना समय इन्वेस्ट किए उनको इनभाइट करते हैं कि आज वे आपको हिंदी डे के महत्व के बारे में डिटेल जानकारी दें। हाल तालियों से गूंज उठता है और चीफ गेस्ट मंद मंद मुस्कुराते हंस की चाल से चलते हुए माईक थामते हैं।

‘लेडीज एंड जेंटिलमेन ! हम सौभाग्यशाली हैं कि आज आपके समक्ष हमें हिंदी डे पर अपना कंसेप्ट आपसे साझा करने का मौका मिला है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। हम इसमें कविता, कहानी, लेख, संस्मरण, आत्मकथा, नाटक सभी विधाओं में आसानी से अपना विचार व्यक्त कर सकते हैं। जिसेए पढ़कर आध्यात्मिक ऊंचाई को छुआ जा सकता है। यह विचारों की बड़ी सशक्त वाहिका है। दूसरी किसी भाषा में इतनी ताकत नहीं कि आम आदमी उसमें खुद को अभिव्यक्त कर सके।इसलिए हिंदी को हमारी सरकार ने आजादी के तुरंत बाद राजभाषा बना दिया। हम हर साल इसी खुशी में हिंदी डे मनाते हैं। कुछ सिरफिरे लोग हिंदी को मजबूरों, बंचितों, असहायों की भाषा कहने से नहीं चूकते। ऐसे लोग हिंदी के दुश्मन हैं। इतिहास के पन्ने पलटिए। चरक, सुश्रुत से लेकर आर्यभट्ट तक ने हिंदी के माध्यम से ही शोध किया और इनके ही शोध से हमारे देश का ज्ञानभंडार समृद्ध हुआ। (तालियां)

विश्व में आज कोई भी ऐसी दूसरी भाषा नहीं जिससे हिंदी की तुलना की जा सके। कुछ लोग हिंदी को ज्ञान विज्ञान और रोजी रोजगार की भाषा बनाने की बात कहते हैं। मैं उनसे सहमत नहीं हूं। हमारे पूर्वजों ने हिंदी माध्यम से ध्यान लगाकर जो आध्यात्मिक शक्ति पाई है, वह अद्भुत है। उसके सामने आधुनिक ज्ञान विज्ञान भी बौना है। हिंदी हमें आदि काल से आध्यात्मिक ऊंचाई प्रदान करती रही है। रोजी-रोजगार और ज्ञान-विज्ञान भ्रम है। अध्यात्म ही सत्य है। अध्यात्म हमें संतोष देता है और संतोष ही परम सुख है।हिंदी को अपनाइए और परम सुख प्राप्त करिए।

आज इतना ही। शेष फिर अगले हिंदी डे पर। आप सभी को मेरा भेरी भेरी क़ंग्राच्युलेशन।