पटना, पुलिन त्रिपाठी। बिहार में मची सियासी घमासान ने तो एक बार फिर (आठवीं बार) नीतीश कुमार की ताजपोशी कर दी। तेजस्वी यादव भी डिप्टी सीएम बनकर इतने गदगद हैं कि चलो ओपेनिंग बेट्समैन न सही पर नॉन स्ट्राइकर एंड से उनकी पारी तो शुरू हुई। वहीं भाजपा भी अपनी बॉलिंग से नीतीश एंड पार्टी को हराने के फुल मूड में हैं। जगह जगह चल रहे धरने इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। अब चाचा-भतीजे की जोड़ी पिच पर है तो धरनों-फरनों से क्या डरना।
बीजेपी राग अलाप रही है कि नीतीश कुमार ने बिहार में एनडीए को मिले जनादेश का अपमान कर महागठबंधन बनाया है। तभी तो उनके सिपहसालार महागठबंधन की सरकार के खिलाफ सभी जिलों में महाधरना दे रहे हैं। उधर लालू यादव को भी तेजस्वी के रूप में अपना एक फाइटर सरकार में मिल ही गया है।
तभी तो जैसे ही कल (शुक्रवार को) तेजस्वी दिल्ली रवाना हुए उन्होंने बेटे के कान में गुरुमंत्र फूंक दिया कि बच्चा जा ही रहे हो तो चाहे सोनिया गांधी हों या सीताराम येचुरी या फिर डी राजा सबसे मुलाकात करना और ऐसी बात करना की कल को दिल्ली के तख्त पर भी दावा करने से कोई रोक न सके। आखिर (वि)पक्ष को साधना भी तो राजनैतिक ककहरा पढ़ना-पढ़ाना ही है।
उधर बाहर से भले भाजपाई हर जिले में महाधरना दे रहे हैं कि सर-सर नीतीश कुमार ने चीटिंग कर ली। एनडीए सरकार को बहुमत मिला था। पर अंदरखाने की बात तो यह है कि तमाम बीजेपी नेता भी चाहते हैं, चलो अच्छा हुआ कि दूध का दूध और पानी का पानी हो गया (कौन दूध है और कौन पानी यह पाठक फैसला करें)।
सत्ता से बेदखल होने का मलाल भाजपाइयों को जरूर है, लेकिन इस बात की खुशी भी है कि अब उन्हें भी बिहार की सियासत की पिच पर खुलकर बैटिंग करने को मिलेगी। तब तक बॉलिंग ही सही। तमाम कार्यकर्ता यही मान रहे थे कि नीतीश कुमार के कारण पार्टी बिहार में खड़ी नहीं हो पा रही थी। अब तो बीजेपी का सारा प्लान ऑफ एक्शन ही बदल गया है। बीजेपी नीतीश कुमार के महागठबंधन के साथ जाने के बाद से ही जदयू और राजद के किले को ध्वस्त करने को लेकर रणनीति बनाने में जुट गई है।
जैसे ही नीतीश महागठबंधन के लिए आग बढ़े बीजेपी ने दो दिनों के अंदर जहां कोर कमेटी की बैठक कर डाली। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने सांसदों और विधायकों के साथ भी बैठकर विचार विमर्श किया। अब तो तारा किशोर नीतीश की टांग खींच रहे हैं तो तेजस्वी गिरिराज की चुट्टइया पर तंज कस रहे हैं।
जदयू से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। भाजपा भी इसे जदयू के वोट बैंक में सेंध के रूप में देख रही है। वहीं बीजेपी की कोशिश है कि वह नीतीश के सुशासन को चुनौती देते हुए उसका स्याह पक्ष सामने लाएं पर दिक्कत यहां पर यही फंस रही है कि अभी तक सुशासन बाबू का राग अलाप रही बीजेपी जब ऐसा करेगी तो क्या दाग की छींटे उसके दामन पर नहीं पड़ेंगे। आखिर नीतीश की पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री से लेकर तमाम अहम ओहदे तो भाजपा के पास भी थे।
एक समीकरण बीजेपी और लगाना चाह रही है वह है लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान को अपने खेमें में शामिल करने का। अगर बीजेपी के झुरंधर ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो दलितों के बीच जरूर पार्टी की अच्छी पैठ बन सकती है। पर ऐसा होगा कि नहीं और अगर होगा तो कैसे? यह तो वक्त ही बताएगा।