बापू के आगमन के साथ डुमरांव में आजादी की क्रांति का हुआ था आगाज।वर्तमान पिढ़ी त्रिकोनियां मैंदान से है अनभिज्ञ।
बक्सर, विक्रांत। आप मानें अथवा नहीं मानें। पर यह कटु सत्य है।इतिहास गवाह है। पुराने शाहाबाद जिला का डुमरांव देश को गुलामी की दासता से मुक्ति दिलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के लिए केन्द्र बिंदु था। इसी कारण से महात्मा गांधी जैसे शख्सियत को बिहार के डुमरांव में आना पड़ा था। बापू के असहयोग एवं स्वदेशी अपनाओ आंदोलन के दरम्यान विगत 11 अगस्त सन् 1921 को डुमरांव में आने के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांति का आगाज हुआ था। डुमरांव रेलवे स्टेशन के पश्चिमी-केबिन से उतर दिशा में उन दिनो मौजूद त्रिकोनियां मैंदान (अब त्रिकोनिया मोड़) में बापू की जनसभा आयोजित हुईथी।
‘सभा कुमारी बाबा एवं चुटुर राय के नेतृत्व में हुई थी‘
त्रिकोनियां मैंदान में बापू की सभा नगर के स्वतंत्रता सेनानी राम कुमार तिवारी उर्फ कुमारी बाबा, ब्रहदेव राय उर्फ चुटुर राय के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों में प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद, जवाहर लाल श्रीवास्तव, हरिहर प्रसाद गुप्ता, बिहारीलाल केशरी एवं शिवपूजन प्रसाद सिंह आदि के सहयोग से आयोजित हुई थी। उन दिनों बापू की सभा के लिए हरे भरे आम के वृक्ष के बीच हरियाली बिखेरती त्रिकोनिया मैंदान में अपार भीड़ जुटी हुई थी। उमड़ी भीड़ को संबोधित करते हुए जब महात्मा गांधी (बापू) ने ‘स्वदेशी बस्त्र अपनाओ विदेशी बस्त्रों का परित्याग करो‘ के नारा का ज्यों-हि उद्घोष किया। मौके पर हजारो देश भक्त जवानों ने बदन पर धारण किए विदेशी बस्त्र को उतार फेंका था।
विदेशी बस्त्रों को आग के हवाले करना शुरू कर दिया था। बापू के भाषण का प्रभाव सामान्य लोगों पर इस कदर पडा था कि बदन पर खादी का कपड़ा पहनने का मानो प्रचलन बन गया हो। सभा मंच पर डुमरांव के युवक प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद ने भोजपुरी गीत‘सुंदर सुघर भूमि भारत के रहे हो रामा, आज इहे भईल मसान रे फिरंगिया। जुल्मी कानून आ टिक्सवा के रदद् कर दे। भारत के दे-दे ते। स्वराज रे फिरंगिया… प्रस्तुत कर समा बांध दिया था। बल्कि बापू उनके इस गीत से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने साथ सूबे का चंपारण लेते गए। डुमरांव में बापू के आगमन का उल्लेख प्रख्यात इतिहासकार काली किंकर दत की पुस्तक ‘गांधी जी इन बिहार‘में भी की गई है।
‘भाषण ने क्रांतिकारियों के बीच जुनून पैदा कर दिया‘
बापू के आगमन एवं सभा संस्मरण के आधार पर नगर के राजगढ़ चैक निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय दुर्गा प्रसाद सिंह के उत्तराधिकारी भतिजा वयोवृद्ध सत्यनारायण प्रसाद उर्फ दादा नें बताया कि बापू द्वारा सभा में दिए गए भाषण से क्रांतिकारियों के आलावे सामान्य लोगो के दिलो-दिमाग में आग लग गई थी। स्थानीय नवजवानो के बीच गुलामी की दासता से देश को मुक्त कराने का जुनून सा सवार हो गया था। इसकी जागता मिशाल डुमरांव थाना पर तिरंगा झंडा फहराने के क्रम में 16 अगस्त सन् 42 को डुमराव थाना पर तिरंगा लहरानें के क्रम में अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मी दारोगा के रिवाल्वर की गोली खाकर एक साथ चार जवानों में कपिल मुनि, रामदास विश्वकर्मा, गोपाल जी प्रसाद एवं रामदास सोनार की शहीद हो जानें की घटना है। जब कि गोली से अन्य कई स्वतंत्रता सेनानियों घायल हो जानें की घटना है।
बापू की सभा स्थल उपेक्षितः त्रिकोनियां मैंदान में बापू के आए करीब एक शताब्दी से अधिक साल गुजर जाने के बाद भी इस शहर में उनके ऐतिहासिक सभा स्थल त्रिकोनियां मैंदान (अब त्रिकोनिया मोड़) को शासन व प्रशासन यादगार बना पानें में विफल है। महात्मा गांधी के डुमराव स्थित सभा स्थल त्रिकोनिया मैंदान से वर्तमान पिढ़ी बिल्कुल अंजान है। वहीं बापू के शिष्य महान स्वतंत्रता सेनानी कुमारी बाबा एवं चुटुर राय की स्मृति को संजोनें की दिशा में शासन प्रशासन अब तक विफल है। यहां यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुमारी बाबा एवं चुटुर राय अपनों के बीच अब तक उपेक्षित है।