कांग्रेस लहर के बीच डुमरांव के पूर्व महाराज कमल सिंह बक्सर से दो बार निर्दलीय प्रत्याशी सांसद चुने गए थे…कभी डुमरांव के पूर्व महाराज कांग्रेस को भी समर्थन व सहयोग मिलता था

बक्सर

बक्सर/ विक्रांत/कभी डुमरांव राज से पुराने शाहाबाद क्षेत्र की राजनीति तय होती थी। देश की आजादी के बाद जब पहली बार हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में कांग्रेस का परचम लहराया था। उन दिनों वर्ष 1952 एवं वर्ष 1957 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में डुमरांव के पूर्व महाराज कमल सिंह बक्सर से दो बार सांसद चुने गए थे. कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव में शिकस्त देने का काम किया था।

वर्ष 1962 के चुनाव में मिली हार के बाद डुमरांव के पूर्व महाराज ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया और किंग मेेकर की भूमिका निभाने लगे। डुमरांव के पूर्व महाराज द्वारा चुनावी महासमर से खुद को दूरी बना लेने के बाद इस क्षेत्र से कांग्रेस का रास्ता आसान हो गया। बाद में वाम पंथ (सीपीआई) से राजनीतिक तौर पर दूरी रखने वाले डुमरांव के पूर्व महाराज सह पूर्व सांसद लोक सभा चुनाव में अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी को समर्थन देने लगे। कांग्रेस को बेहतर परिणाम भी मिला।

वर्ष 1980 एवं वर्ष 1984 के लोक सभा चुनाव के दौरान डुमरांव के पूर्व महाराज के अप्रत्यक्ष तौर पर मिले सहयोग व समर्थन से प्रो.के.के.तिवारी ने चुनावी बाजी मार ली। इसी क्रम में डुमरांव के पूर्व महाराज सह पूर्व सांसद कमल सिंह किसी विषय को लेकर बक्सर के सांसद प्रो.के.के.तिवारी से नाराज हो गए थे। इसका असर बक्सर लोक सभा के चुनाव परिणाम पर भी पड़ा था।

बाद में प्रो. तिवारी चुनाव हार गए. बीच में बक्सर से सीपीआई के प्रत्याशी पेशे से वकील तेज नारायण सिंह दो बार सांसद चुने गए थे.भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष सच्चिदानंद भगत बताते है कि जनता पार्टी के टूट जाने के बाद क्षेत्र से प्रथम सांसद रह चुके भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश पति मिश्रा के आग्रह पर डुमरांव के पूर्व महाराज बक्सर सीट से पहली बार भाजपा के टिकट पर लोक सभा का चुनाव लड़े थे।

सीपीआई व कांग्रेस प्रभावित बक्सर संसदीय क्षेत्र से पहली बार भाजपा का प्रत्याशी डुमरांव के पूर्व महाराज को बनाया गया। भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष सच्चिदानंद भगत कहते है भाजपा प्रत्याशी के तौर पर भले ही डुमरांव के पूर्व महाराज चुनाव नहीं जीत सके। पर भाजपा के लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर गए. वर्ष 1989 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रो.के.के.तिवारी चुनाव हार गए। वर्ष 1991 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर लालमुनि चौबे चुनाव लड़ने का काम किया। पर वे चुनाव हार गए।

दोबारा वर्ष 1996 के हुए लोक सभा के चुनाव में लाल मुनि चौबे प्रत्याशी बनाए गए। जो लगातार चार बार बक्सर सीट से सांसद चुने गए। वर्ष 2014 में अश्विनी चौबे को भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया। जो दो बार चुनाव जीतने में कामयाब हो गए। चुनाव के दौरान उन्हें डुमरांव राज परिवार का खुलेआम सहयोग व समर्थन मिला था। कांग्रेस नेता दशरथ विद्यार्थी बताते है कि आज की तारीख में देश के प्रथम सांसद रहे डुमरांव के पूर्व महाराज कमल सिंह नहीं है. क्षेत्र के राजनीतिक परिवेश में काफी तब्दीली आ चुकी है.