Vikrant: बिहार बजट सत्र के चौथे दिन वित्तीय वर्ष के बजट पर वाद-विवाद के दौरान विधानसभा में भाकपा-माले से डुमराँव डॉ० अजीत कुमार सिंह ने पार्टी के तरफ से मंतव्य प्रस्तुत किया । विधानसभा के ‘शून्यकाल’ सत्र में बी.एस.एस.सी द्वारा 2014 में आयोजित प्रथम इंटर स्तरीय परीक्षा के 8 साल बाद घोषित रिजल्ट में कुल 13120 पदों के विरुद्ध योग्यता के बावजूद मात्र 11329 पदों के लिए ही अभ्यर्थियों का चयन के बाद शेष 1778 कॉउंसलिंग कराए अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने की मांग के बाद सदन के दूसरे सत्र में मंतव्य प्रस्तुत किया । इस दौरान माननीय डुमराँव विधायक ने कहा कि महागठबंधन की सरकार ने बीपीएससी / एसएससी आदि विभागों में पद सृजन की घोषणा की है । यह अच्छा कदम है । शिक्षा विभाग के लिए 22,200 (22%) राशि का प्रावधान किया गया है इसके लिए सरकार को धन्यवाद।
लेकिन विश्वविद्यालयों और प्लस टू विद्यालयों में कार्यरत अतिथि शिक्षकों के समायोजन, लंबित शिक्षक बहाली शुरू करने, बहाली की प्रक्रिया को पारदर्शी व सुगम बनाने तथा विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक माहौल को ठीक करने व सत्र के नियमितीकरण, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के साथ-साथ संबद्ध महाविद्यालयों में दशकों से कार्यरत शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को अतिथि शिक्षक को मिलने वाली न्यूनतम राशि देने आदि सवालों को आवश्यकतानुसार समावेशित नहीं किया गया है। बजट पर भाजपा को बोलने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है । मोदी सरकार द्वारा हाल ही में पेश किया गया केंद्रीय बजट पूरी तरह कारपोरेटपरस्त और देश की आम जनता के अधिकारों में कटौती करने वाला बजट है । पांच सोशल वेलफेयर स्कीमों के लिए आवंटित राशि में इतनी कटौती हुई है कि ये 20 साल पहले के स्तर पर पहुंच गई है। जपा नेता गिरिराज सिंह बिहार में मनरेगा की राशि रोक देने की ही धमकी दे रहे हैं । बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के सवाल से भाजपा पहले ही भाग चुकी है। भाजपा के झांसे को बिहार की जनता अच्छे से समझती है। सरकार का दावा है कि अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की भूमिका सर्वप्रमुख है । बजट में कृषि विभाग के लिए 2,782 करोड़ की ही व्यवस्था की गयी है जो बजट का महज 2.8% है।
बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्य के लिए ये नाकाफी है । किसानों के हित में सरकार को एपीएमसी ऐक्ट की पुनबर्हाली की मांग पर विचार करना चाहिए । यदि किसानों को उनके फसलों का सही दाम मिलेगा तभी हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी । हर घर बिजली योजना की चर्चा हो रही है, लेकिन आम जनता प्रीपेड मीटर और कई गुना ज्यादा राशि वाला बिजली बिल भुगतान से परेशान है । बिजली विभाग की लापरवाही के कारण पहले वर्षो तक बिजली का बिल ही उपभोक्ताओं को नहीं भेजा गया और आज एक ही बार में 20 हजार से एक लाख रुपये तक के बिल गरीबों के घर भेजे जा रहे हैं । गांव-गांव में सैकड़ों दलित-गरीब बस्तियों के घरों का बिजली कनेक्शन काटे जाने और उपभोक्ताओं पर मुकदमा दर्ज करने की घटनायें हुई हैं । सरकार को सभी पुरानी बिजली बिलो के भुगतान में गरीबों को रहत देनी चाहिए। महागठबंधन की हमारी सरकार 10-20 लाख नौजवानों को नौकरी व रोजगार के अपने वादे को पूरा करने को प्रयासरत है, इसकी टाइम प्लानिंग योजना को भी सामने रखना चाहिए। बिहार को तेज गति से विकास करने के लिए इसके औधोगिकरण की आवश्यकता है।
कृषि उत्पाद से सम्बंधित बड़े उद्योग को स्थापित करने पर जोर देना होगा । बिहार के कई फलों को विश्व में प्रसिद्धि हासिल है। राज्य में बिजली की दर अधिक है। हमारे पड़ोसी राज्य झारखंड में 4 रुपये प्रति यूनिट है, लेकिन बिहार में 8 रुपये प्रति यूनिट बिजली मिलती है जिससे बड़ी इंडस्ट्रीज को दिक्कत होती है। राज्य में चीनी मीलों के बंद होने का एक प्रमुख कारण बिजली भी है । राज्य के बंद पड़े चीनी मीलों को शुरू करने की भी पहल करनी चाहिए। हम सरकार से आग्रह करना चाहते हैं कि उद्योग स्थापित करने के लिए पहल को और बढ़ाये तथा ससम्मान व्यवसासियों को भरोषा दिलाया जाये। साथ ही साथ हमें घरेलु छोटे-मझौले उधोगों को भी बढ़ावा देने की आवश्यकता हैं। इसके लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना का आकर और बढ़ाया जा सकता है। राज्य में स्वस्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ‘राइट टू एजुकेशन’ की तरह ‘राइट टू हेल्थ’ जैसी योजना पर काम करने की आवश्यकता है जिसके लिए बड़ी संख्या में डॉक्टर बहाल करने होंगे। स्वास्थ्य विभाग के लिए 7,117 करोड़ का बजट को और बढ़ाये जाने की जरुरत है बिहार की जनता को राहत मिले। यह अच्छी बात है कि नए मेडिकल कॉलेज अस्पताल तथा इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने का काम बिहार में हो रहा है । लेकिन आम जनता तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुँचाने के लिए ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है।