-सरकार के कृषि विभाग द्वारा नीलगाय पर शोध कार्य मद में राशि आंवटित किए जाने से वैज्ञानिको का बढ़ा हौसला
बक्सर/विक्रांत। राज्य सरकार ने सूबे के किसानों को ‘नीलगाय‘ की समस्या से छूटकारा दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। कृषि विभाग द्वारा नीलगाय की सुरक्षा व पालतू जानवर बनाए जाने की दिशा में शोध के लिए करीब 50 लाख की राशि आंवटित किया गया है।
सरकार के कृषि विभाग द्वारा नीलगाय पर शोध करने को लेकर राशि उपलब्ध कराए के बाद शोधार्थी जीव-जंतु वैज्ञानिको का हौसला बुलंद हो है। बिहार कृषि विश्व विद्यालय, सबौर(भागलपुर) द्वारा सर्वाधिक नीलगाय प्रभावित बक्सर जिला के डुमरांव स्थित वीर कुंवर सिंह कृषि महाविद्यालय के प्रांगण में नीलगाय अनुसंधान केन्द्र स्थापित करने की प्रक्रिया जारी है।
‘बकरी एवं हिरण का लक्ष्ण नीलगाय में पाया जाता है‘-
करीब तीन साल पहले नीलगाय पर शोध कार्य शुरू करने वाले भोला शास्त्री कृषि कालेज मे पदस्थापित जीव जंतु वैज्ञानिक डा.सुदय प्रसाद ने बताया कि नीलगाय के नाम के साथ गाय शब्द जरूर लगा है। लेकिन यह पशु गाय का नहीं। बल्कि बकरी एवं हिरण की प्रजाति का नीलगाय है।
नीलगाय के बहुत सारे लक्ष्ण बकरी एवं हिरण से मिलती जुलती है। उन्होनें बताया कि बकरी एवं हिरण में दो थन पाए जाते है। इसी प्रकार नीलगाय के भी दो थन होते है। बकरी एवं हिरण 2 से 3 बच्चे को जन्म देती है। नीलगाय भी सामान्य तौर पर दो से तीन बच्चे को जन्म देते है। नीलगाय का मल भी बकरी एवं हिरण की गड़ारी की तरह होता है।
आगे, जीव जंतु वैज्ञानिक डा.सुदय प्रसाद बताते है कि सूबे का 31 जिला नीलगाय से प्रभावित है। नीलगाय को मार देना समस्या का स्थाई समाधान नही हो सकता है। नीलगाय को मारने से पर्यावरण असंतुलित हो सकता है। वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज डुमरांव (संप्रति भोला शास्त्री कृषि कालेज, पूर्णिया) के जीव-जंतु वैज्ञानिक डा.सुदय प्रसाद ने दावे के साथ कहा कि नीलगाय लक्ष्ण से बकरी एवं हिरण की प्रजाति का है।
नीलगाय के मांस एवं दूध में कई जरूरी तथ्य छूपे हो सकते है।नीलगाय को पालतू जानवर बनाकर रोजगार एवं अर्थोपार्जन किया जा सकता है।वैज्ञानिक डा.सुदय ने बताया कि बक्सर जिला में सर्वाधिक नीलगाय पाए जाने के चलते विभाग द्वारा डुमरांव स्थित वीर कंुवर सिंह कृषि कालेज प्रांगण में ‘नीलगाय शोध केन्द्र‘ की स्थापना जल्द शुरू किए जाने की संभावना है।