-पटना के बाद आजादी के लिए शहादत देने वाले में डुमरांव के लोग शामिल।
-सन् 42 के 16 अगस्त को गोरी पुलिस ने की थी गोलियों की बारिस।
-17 अगस्त को आजादी के दीवानों ने डुमरांव थाना को कर दिया था आग के हवाले।
बक्सर, विक्रांत। इतिहास के पन्नें में स्वर्णाक्षरो में अकिंत है। बिहार की राजधानी पटना के बाद डुमरांव के वीर सपूतों ने देश को जंग ए आजादी में शहादत देकर यहां के लोगो को गौरवान्वित करने का काम किया है। सन् 42 की जंग ए आजादी के दरम्यान 16 अगस्त को डुमरांव के चार वीर सपूतों में कपिल मुनि, रामदास सोनार, गोपाल जी एवं रामादास लोहार ने एक साथ गोरी पुलिस के दारोगा देवनाथ सिंह के सर्विस रिवाल्वर की सीनें पर गोली खाई और मातृभूमि की गोद में सदा के लिए सो गए थे। सन् 42 के 16 अगस्त को ब्रिटीश हुकूमत की गोरी पुलिस द्वारा आजादी के दीवानों पर बंदूक की गोलियों की बारिस की गई थी। शेष 17 देश भक्त जवान गोरी पुलिस की फायरिंग में जहां तहां बलिदान हो गए थे।
‘देशभक्तों के बीच थाना पर तिरंगा फहरानें की जुनून सवार था‘
बात उन दिनों की है सन् 42 की 15 अगस्त की देर शाम आकाशवाणी रेडियो पर यह सूचना प्रसारित हुई कि नई दिल्ली स्थित आंगा खां महल में महात्मा गांधी के निजी सचिव मनमोहन देसाई का निधन हो गई। इस खबर को सुनकर स्थानीय देशभक्त जवानों के बीच शोक की लहर दौड़ दौड़ गई और आजादी के दीवानों द्वारा अगले ही दिन 16 अगस्त को कांव नदी के तट पर एक शोक सभा आयोजित की गई। शोक सभा समाप्त होते ही आजादी के दीवाने देश भक्तों द्वारा डुमरांव थाना पर तिरंगा लहरानें को ठान लिया। फिर क्या थी। आजादी के दीवानांें का हुजूम कांव नदी के तट से पुराना डुमरांव थाना पर तिरंगा लहरानें के लिए चल पड़ा। इस बात की भनक ब्रिटीश हुकूमत की स्थानीय पुलिस को लग गई।
ब्रिटीश काल का थानेदार दल-बल के साथ हुजूम को थाना के पास पंहुचने से रोकने को लेकर सर्तक हो गया। उधर थाना पर तिरंगा फहरानें को बेताब आजादी के दीवानांें की हुजूम रास्ते में भारत माता की जय। अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारे लगाते हुए थाने की ओर बढ़ रही थी। देखते ही देखते आजादी के दीवानों की हुजूम सूर्यास्त काल के दरम्यान थाना के पास मोड़ पर पंहुच गई। वहां पहले से दल बल के साथ तैनात थानेदार हुजूम को आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास करता है। चंद देर के लिए हुजूम रूक जाता है। इसी बीच जमा हुजूम को चिरते हुए एक युवक कपिलमुनि कहता है- आप भी हिंदुस्तानी है। आप हमारे भाई हैं। रास्ते से हट जाईए।
हम थाना पर तिरंगा झंडा फहराएंगें। पर तैनात थानेदार पर उक्त युवक से कहता है। आगे बढ़ने पर गोली मार देगें। थानेदार की बात सुनकर आजादी का दीवाना युवक कपिलमुनि आगे बढ़ते हुए अपना सीना तान देते है और कहते है गोली मार दो। फिर क्या ब्रिटीश काल का थानंेदार देवनाथ सिंह नजदीक से अपनी सर्विस रिवाल्वर से युवक के सीनें में गोली मार देता है।गोली से जख्मी साथी के कदम से कदम मिलाकर गोपाल जी, रामदास लोहार एवं रामदास सोनार आगे की ओर बढ़ते है। उन्हें भी थानेदार नें रिवाल्वर से गोली मार दी।
शांतिपूर्ण निहत्थें आजादी के दीवानों की हुजूम पर थानेदार की अगुवाई में ब्रिटीश हुकूमत क गोरी सिपाहियों द्वारा दर्जनों राउंड गोलियां चलाई गई। उस समय हुजूम मेें शामिल भीखी लाल, कोकिल प्रसाद, बिहारी लाल एवं प्रदुमन लाल सहित अन्य कई आजादी के दीवानें जख्मी हो गए। आजादी के दीवानों की खून से पुराना थाना रोड का रंग लाल हो गया। यह सनसनी खेज घटना बिजली की तरह पूरे नगर में फैल गई।
‘17 अगस्त को भीड़ नें थाना को आग के हवाले कर दिया था‘
डुमरांव के इस अविस्मरणीय जंग ए आजादी की घटना का संस्मरण करते हुए स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा प्रसाद सिंह के भतिजा व उत्तराधिकारी वयोवृद्ध सत्यनारायण प्रसाद उर्फ दादा बताते है कि वे खुद बाल्य अवस्था में अपने बड़े पिता जी स्व.दुर्गा प्रसाद सिंह के साथ आजादी के दीवानों की भीड़ में शामिल थे। उन्होनें नम आंखो से बताया कि शहीदों की लाश को लेनें एवं जख्मी लोगो की तिमारदारी के लिए विसू राय के नेतृत्व में सैकड़ो लोग आगे आ गए। जख्मी लोगों का इलाज कराने में जुट गए। नागरिकों की उमड़ी भीड़ का थाना के चारो तरफ से बढ़ते दबाव को देख अंग्रेजी शासन के गोरी सिपाहियों की गोली की बौछार बंद हो गई।
आगे श्री प्रसाद बताते है कि इस घटना की खबर सुनकर दुसरे दिन 17 अगस्त को नगर सहित आस पास के ग्रामीण इलाके में कोरान सराय, ढ़काईच, आथर, नावाडेरा एवं गोपाल डेरा आदि गांव के आक्रोशित आजादी के दीवानांें की अपार भीड़ थाना के पास जुट गई और डुमरांव के पुराना थाना को आग के हवाले कर दिया। गोली चलाने के औचित्य सिद्ध करने के लिए उसी दिन आजादी के दीवानों पर मुकदमा किया गया था। आज की तारीख में पुराना थाना के पास जंग ए आजादी में अमर शहीद चार जवानों की याद में निर्मित शहीद पार्क में प्रतिमा व सटे आजादी के दीवानों की स्तूप मौजूद है। हरेक साल अमर शहीदों की याद में 16 अगस्त को राजकीय समारोह आयोजित किया जाता है।
‘ब्रिटीश पुलिस का ग्रामीण क्षेत्रों में दमन शुरू हो गया’
सन् 42 के 17 अगस्त को आजादी के दीवानों द्वारा डुमराव थाना को आग के हवाले किए जाने की प्रतिशोध में ब्रिटीश पुलिस नें ग्रामीण क्षेत्रों में दमन का चक्र चलाना शुरू कर दिया था। दमन चक्र में बंदूक से फायरिंग तक करना शुरू कर दिया था। दुष्परिणाम ब्रिटीश पुलिस की फायरिंग में कई आजादी के दीवानें बलिदान हो गए। स्वतंत्रता सेनानी के उतराधिकारी व वयोवृद्ध सत्यनारायण प्रसाद बताते है कि इस घटना का अगस्त क्रांति केन्द्रीय अभिलेखागार पटना में भी जिक्र किया गया है।
पहली घटना-डुमरांव के अब्दुल रहीम नालबंद की अंग्रेज पुलिस की बर्बर पीटाई के बाद जेल में बतौर बंदी बलिदान हो गए। दुसरी-डुमरांव अंचल अंर्तगत कोरान सराय के गोधन राम, सुखारी लोहार एवं भीखारी कमकर की 19 अगस्त को को गोरी पुलिस की फायरिंग में बलिदान हो गए। तीसरी घटना-नावानगर अंचल क्षेत्र के आथर निवासी शिवपूजन नट, रामेश्वर पांडेय, शिवपूजन राम, चंगन अहीर, तपेश्वर पांडेय, विश्वनाथ अहीर एवं दुलार लोहार सन् 42 के 19 अगस्त को आथर में ब्रिटीश पुलिस के साथ हुए मुठभेड़ के दरम्यान भारत माता की बलिवेदी पर चढ़ गए।
चौथी घटना- डुमरांव अंचल क्षेत्र के नावाडेरा गांव के साधुशरण अहीर सन् 42 के 20 अगस्त को ब्रिटीश काल के कंमाडेंट मिस्टर इलियट के नेतृत्व में हुए फायरिंग के दरम्यान देश की आजादी के लिए बलिदान हो गए। पांचवीं घटना-डुमरांव अंचल क्षेत्र के ढ़काईच गांव के निवासी बालेश्वर दुबे सन् 42 के 19 अगस्त को चार औरतों के साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए बलात्कार की घटना का विरोध करने के दरम्यान उनके द्वारा किए गए फायरिंग की घटना में बलिदान हो गए।