-उस्ताद के पुत्र तबला वादक नाजिम हुसैन व पोता शहनाई वादक अफाक हैदर संग कई नाम चीन कलाकारों का होगा संगम …
बक्सर / बीपी। डुमरांव के ऐतिहासिक राज हाई स्कूल के मैदान में बुधवार को उस्ताद बिस्मिल्ला खां महोत्सव मनायें जाने को लेकर प्रशासनिक स्तर पर तैयारियों को अंतिम मुकाम प्रदान करने का कार्य जोरो पर है। अनुमंडलाधिकारी कुमार पंकज की निगरानी में महोत्सव की तैयारियों को अंतिम रूप देने का काम जारी है. महोत्सव में प्रख्यात गजलकार नवेंदु भट्टाचार्य, बालीवुड गायक अल्ताफ राजा, कौव्वाल बच्चा नसीम कौसर, मगध डांस ग्रुप पटना के अलावा शहनाई के शहंशाह बिस्मिल्ला खां के शहनाई वादक पोता एवं मशहूर तबला वादक पुत्र नाजिम हुसैन का भाग लेना तय है.
अनुमंडलाधिकारी कुमार पंकज ने बताया कि 21 फरवरी को राज हाई स्कूल मैदान में शाम 4 बजे महोत्सव कार्यक्रम प्रारंभ होगा। महोत्सव का आयोजन कला संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन ने संयुक्त रुप से किया है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2022 में भी डुमरांव के राज उच्च विद्यालय में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां महोत्सव का आयोजन किया गया था.
अनुमंडलाधिकारी कुमार पंकज ने बताया कि बुधवार 21 फरवरी को संध्या 4:00 बजे से कार्यक्रम का आयोजन रात्रि 9:30 तक किया जायेगा. वहां 4:00 बजे से 6:00 बजे तक स्थानीय कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे। वहीं 6:00 से 6:30 बजे तक औपचारिक उद्घाटन एवं भाषण का आयोजन किया जायेगा, जिसके बाद 6:30 से 9:30 बजे तक मुख्य समारोह होगा।
कार्यक्रम में शिरकत करने वाले कलाकारों में मुख्य रूप से मगध संगीत डांस ग्रुप, नबेंदु भट्टाचार्य गजल, बिस्मिल्लाह खां के परिवार के सदस्यों का प्रदर्शन, बच्चा नसीम कौसर की कव्वाली एवं अल्ताफ राजा के संगीत का प्रदर्शन किया जायेगा।
उस्ताद के साथ ही शहनाई की आवाज चली गई “
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म बक्सर जिले के डुमरांव नगर के भिरूंग राउत की गली निवासी पेशे से शहनाई वादक बचई मियां के घर में 21 मार्च 1916 को हुई थी। कभी बिस्मिल्ला खां के शहनाई की सुर के साथ ही डुमरांव स्थित बांके बिहारी मंदिर में सुबह शाम आरती शुरू होती थी.
आगे उस्ताद ने लोक वाद्य शहनाई को भारतीय शास्त्रीय संगीत का अभिन्न बनाकर पूरे विश्व में रौशन कर दिया. उस्ताद के अपने मामा अली बख्श के साथ डुमरांव से अपने ननिहाल वाराणसी चले जाने के बाद यहां से शहनाई की आवाज भी चली गई .
स्थानीय नागरिक उस्ताद बिस्मिल्ला खां की प्रसिद्धि को बांके बिहारी की असीम कृपा मानते है. साल 2001 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। पर स्मृति के अभाव में वर्तमान युवा पिढ़ी शहनाई के शहंशाह को भूलने लगा है.उस्ताद ने 21 अगस्त 2006 को वाराणसी में अंतिम सांस ली थी.