बक्सर/बिफोर प्रिंट। बक्सर-पटना फोरलेन मार्ग से सटे प्रताप सागर स्थित मेथोडिस्ट अस्पताल बक्सर जिले में प्रधानमंत्री यक्ष्मा मुक्त भारत अभियान में अग्रणीय भूमिका निभा रहा है। यक्ष्मा रोगियों के ईलाज की दिशा में यह अस्पताल वर्ष 166 साल से संचालित है। इस अस्पताल में साल भर यक्ष्मा रोग से पीड़ित उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया, सोनभद्र, मिर्जापुर एवं गाजीपुर, सूबे के रोहतास,कैमूर, भोजपुर व बक्सर जिला के अलावा पश्चिम बंगाल तक वके रोगी ईलाज कराने पहंुचते है।
इन दिनों र इस अस्पताल में सर्पदंश की दवा व चिकित्सा सुविधा के अलावा फेफड़े की ईलाज व आंख की जांच अत्याधुनिक उपकरण से किया जाता है।
अस्पताल का अतीत-डुमरांव महाराजा सह बक्सर के पूर्व सांसद स्वर्गीय कमल सिंह ने यक्ष्मा रोग के ईलाज को मेथोडिस्ट अस्पताल की स्थापना को करीब 25 एकड़ जमीन का दान देने का कार्य किया था। उन दिनों यक्ष्मा रोग एक असाध्य रोग माना जाता था।
अज्ञानता के अभाव के चलते सामान्य तौर पर लोग इस यक्ष्मा रोग को छूआ-छूत सें जुड़ा हुआसह समझते थे। उन दिनों चिकित्सकीय सुविधा के अभाव के चलते गरीब व असहाय परिवार को यक्ष्मा रोग का ईलाज करना कठिन था।यक्ष्मा रोग से अधिकांश गरीब परिवार के सदस्य पीड़ित पाए जाते थे। क्षेत्र का बतौर सांसद के अलावा पूर्व महाराजा की हैसियत के नाते स्वर्गीय कमल सिंह ने असाध्य बने यक्ष्मा रोग के ईलाज के लिए क्षेत्र में अस्पताल का निर्माण कराए जाने को मन बना लिया।खोज शुरू कर दी।
इसी क्रम में उन दिनों डुमरांव महाराज सह सांसद के संपर्क में मिशन समाज के चिकित्सकों में डा.लांयग्र,डा.हाॅफरमैन, डा.सीएम जोशी एवं डा.एस.के.सिंह आ गए। मिशन के चिकित्सकों द्वारा पुराने शाहाबाद जिले में यक्ष्मा रोग(टीबी) के ईलाज को लेकर अस्पताल खोले जाने को लेकर क्षेत्र के सांसद सह डुमरंाव महाराज के समक्ष प्रस्ताव रखा गया।
बक्सर के सांसद सह डुमरांव महाराजा प्रसन्न हो उठे और उन्होनें निःशुल्क जमीन दान देने को राजी हो गए। महाराजा ने उन दिनों असाध्य व छूआ छूत का कारण बने यक्ष्मा रोग(टीबी) के ईलाज के लिए करीब 25 एकड़ जमीन दान देने का काम किया। महाराजा द्वारा प्रदत जमीन पर अस्तपताल का भव्य भवन वर्ष 1958 में बन कर तैयार हो गया। उन दिनों अस्पताल के प्रथम अधीक्षक बने डा.लायंग्र के नेतृत्व में अस्पताल में यक्ष्मा रोग के ईलाज शुरू हो गई।
पुराने शाहाबाद के लोगों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। धीरे धीरे अस्पताल का चिकित्सकीय स्वरूप बदलते चला गया। डा.लायंग्र के बाद दो अन्य चिकित्सक ने अधीक्षक का कमान संभाला। पर कुछ ही दिनों के बाद डुमरांव महाराज के करीबी माने जाने वाले चिकित्सक डा.एस. सिंह अधीक्षक बनाए गए। इस अस्पताल का अधीक्षक के तौर पर कार्यभार संभालते ही डा.सिंह ने मेथोडिस्ट अस्पताल में यक्ष्मा रोगियों के ईलाज की दिशा में कई चिकित्सकीय सुविधाआंें का विस्तार हुआ।
सर्पदंश से परेशान रहने वाले क्षेत्र के किसानों व ग्रामीणों की मांग पर इस अस्पताल में सर्पदंश की दवा व उपचार की व्यवस्था की गई। आपातकालिन इलाज के लिए रोगी वार्ड की स्थापना की गई।रोगियों के बेहतर उपचार को अत्याधुनिक उपकरण लाए गए। मिशन समाज में पुर्ननिर्माण सर्जरी के प्रथम भारतीय विशेषज्ञ होने का गौरव पाने वाले डा.सिंह ने मेथोडिस्ट अस्पताल को यक्ष्मा रोग से पीड़ित मानव के ईलाज को लेकर उपलब्धि दिलाई।
अस्पताल के विकास व विस्तार की मंशा पाले उन दिनों अस्पताल अधीक्षक चिकित्सकीय सेवा के साथ ही कई सामाजिक संगठनों के माध्यम से जनसेवा में जुटे रहे।
कोरोना काल में चर्चा का बना केंद्र बिंदु- यह अस्पताल कोरोना काल 2019 में विशेष चर्चा का केंद्र बिंदु बना रहा। कोरोना काल में बक्सर-पटना रोड के बीच तमाम प्राईवेट नर्सिंग होग व अस्पताल का दरवाजा बंद हो गया। पर प्रतापसागर के इस अस्पताल का दरवाजा रोगियों के ईलाज को लेकर खुला रहा।
शासन व प्रशासन के आदेशानुसार अस्पताल प्रबंधन द्वारा कोरोना काल में करीब 4 हजार से अधिक रोगियों को आक्सीजन प्रदान करते हुए ईलाज किया गया। सैकड़ो सर्पदंश से पीड़ित रोगियों को इजेंक्शन देकर उनकी जान बचाने में अस्पताल ने भूमिका निभाई थी।
अभी हाल के दिनों में यक्ष्मा रोग के रोगियों के बेहतर ईलाज व प्रधानमंत्री यक्ष्मा मुक्त भारत अभियान में उत्कृष्ट योगदान को लेकर राज्य सरकार के स्वास्थ मंत्री मंगल पांडेय द्वारा पटना में आयोजित एक समारोह के बीच वर्तमान अस्पताल अधीक्षक डा. आर.के.सिंह को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है।