सामाजिक न्याय के पुरोधा एवं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की 99वीं जयंती पर उन्हें शत्-शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

बक्सर

-गज़ब की यादाश्त थी जननायक की

डॉ. विनोद कुमार सिंह : बिहार के समस्तीपुर जिलान्तर्गत पितौंझिया सम्प्रति कर्पूरी ग्राम में कर्पूरी ठाकुर जी का जन्म एक बहुत ही गरीब नाई परिवार में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। इनके पूज्य पिताका नाम गोकुल ठाकुर और ममतामई माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था तो इनकी पत्नी का नाम फुलेश्वरी देवी था। आज उनका परिनिर्वाण दिवस है। वैसे तो पूरा देश लेकिन बिहार का हर व्यक्ति आज कर्पूरी जी के परिनिर्वाण दिवस को अपने अपने तौर तरीके से याद करता है और जनता द्वारा मिली “जननायक” की उपाधि से ही उन्हें संबोधित भी करता है।

वर्ष 1988 के फरवरी महीने की 14 तारीख थी। रोहतास जिला अंतर्गत दिनारा प्रखंड के नटवार बाजार पर खुदरा व्यवसायियों पर होने वाले जुल्म के खिलाफ एक आम सभा होने वाली थी, जिसे जननायक कर्पूरी जी संबोधित करने वाले थे। शाहाबाद प्रक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता एवं दल के दिनारा विधानसभा के प्रत्याशी रह चुके श्री रामधनी सिंह जी, जिन्होंने बाद में दिनारा विधानसभा का लगातार तीन बार प्रतिनिधित्व भी किया, उस सभा के आयोजक थे। उनके साथ मैं भी जननायक कर्पूरी जी की अगवानी में खड़ा था। दिन 2:00 बजे के करीब वे आ धमके। माल्यार्पण की भीड़ उमड़ी । सबसे कर्पूरी जी ऐसे मिले जैसे वे सभी चिर परिचित हों। बगल के गांव नौवां – बिसंभरपुर के सामाजिक कार्यकर्ता समाजवादी श्री गणपति मंडल जी, जो बक्सर में एडवोकेट हैं और बक्सर में ” जननायक कर्पुरी ठाकुर विधि महाविद्यालय” के संस्थापक हैं, उन्होंने जननायक कर्पूरी जी से मेरा परिचय कराते हुए बतलाया कि यह विनोद जी हैं जो उस समय आपके विरोधी दल के नेता पद से हटाए जाने के विरोध में हम लोगों के साथ धरना पर बैठे थे, तथा हर कदम पर संघर्ष में आपके साथ रहते हैं ।

इस पर कर्पूरी जी ने कहा, मैं इनको अच्छी तरह पहचानता हूं । पुनः उन्होंने पूछा आजकल क्या कर रहे हो ? क्या केवल धरना प्रदर्शन ही करते हो या पढ़ते-लिखते भी हो ? मेरे कहने पर कि पढ़ने लिखने के साथ-साथ कुछ सामाजिक कार्यों में भी भाग लेता हूं, कर्पूरी जी बोले अभी तुम नौजवान हो पढ़ने-लिखने में मन लगाओ तब समाज व राष्ट्र निर्माण की सेवा में। समाज व राष्ट्र निर्माण के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व को सफल बनाना बहुत जरूरी है, क्योंकि खोखले व्यक्तित्व से समाज व राष्ट्र की सेवा नहीं हो सकती है। मैं उनकी विचारधारा से काफी प्रभावित हुआ। लेकिन दुःख है कि जननायक से मेरी यह भेंट अंतिम भेंट बन कर रह गई। 2 दिन बाद 17 फरवरी1988 को उनके निधन का समाचार देश सहित पूरे बिहार वासियों को शोक में डुबो दिया। वाह रे चिंतक ! जो व्यक्तित्व के निर्माण के साथ-साथ समाज व राष्ट्र के निर्माण की बात सोचता हो। उनकी विचारधारा SIR DAVID LOW के विचारों से मिलती है जिसके तहत् उन्होंने विद्यार्थियों को परामर्श दिया था कि विद्यार्थियों को राजनीतिशास्त्र के सिद्धांतों का अध्ययन करना चाहिए न की राजनीति की धारा में अपने को बहा ले जाना चाहिए, अन्यथा छात्र जीवन अधूरा बन जाएगा और वह देश का सच्चा नागरिक नहीं बन पाएगा। जननायक का यह उपदेश आज भी हम छात्र नौजवानों के लिए मार्गदर्शक है।

कर्पूरी जी ने 1940 में मैट्रिक और 1942 में इंटर की परीक्षा पास की। लेकिन जब 1942 में गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया तो वे स्नातक की पढ़ाई छोड़ आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। वर्ष 1943 में गिरफ्तार हुए। 1952 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते तथा तब से लगातार मृत्यु पर्यंत किसी न किसी सदन का सदस्य बने रहे। 1967 में गैर कांग्रेसी सरकार महामाया जी के नेतृत्व में बनी तो कर्पूरी जी उप मुख्यमंत्री बने और 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1973-74 में जब बिहार में जयप्रकाश नारायण जी के नेतृत्व में छात्र आंदोलन हुआ तो कर्पूरी जी विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर आंदोलन में कूद पड़े। पुनः 1977 में दूसरी बार कर्पूरी ठाकुर जी बिहार के मुख्यमंत्री बने।
एक बार जब कर्पूरी ठाकुर जी पर हिंसा भड़काने का आरोप लगा तो उन्होंने 30 जनवरी,1985 को बिहार विधानसभा में जो संवोधन किया वह आज की इस वर्तमान परिस्थिति में पठनीय और अनुकरणीय दिखता है।

उस भाषण का अंश कुछ इस प्रकार है :
वे कहते हैं, “……. मैं देखता हूं कि वोट के समय जब बम, पिस्तौल, रिवाल्वर वाले पहुंच जाते हैं बूथों पर कब्जा करने के लिए तो कमजोर लोग भाग खड़े होते हैं। यह है बुजदिली। मैंने अपने भाषण में साफ कहा है कि आपको हमले की जगह बम, पिस्तौल, रिवाल्वर और बंदूक की जगह संगठित शक्ति और अहिंसक शक्ति से लड़ना चाहिए। आपको प्रयास करना चाहिए कि जनता को जागृत और जनशक्ति को संगठित करके लुटेरों के मंसूबे को चकनाचूर कर दें। आप ऐसा नहीं कर सकते तो आप भागिए नहीं । आप वोट लूटने मत दीजिए बल्कि लुटेरों से मुकाबला कीजिए। मैं इस बात को दोहराना चाहता हूं। मैं इससे भाग नहीं सकता। मैं सच्चाई और ईमानदारी के आधार पर काम करने वाला हूं। इसलिए मैंने जो कुछ कहा है उससे इंकार नहीं कर सकता। मैं नहीं चाहूंगा कि देश के लोग खासकर गरीब और कमजोर लोग अपने अधिकार से वंचित कर दिए जाएं । उनके हक लूट लिए जाएं । उनके अधिकार छीन लिए जाएं । मेरे हाथ में क्रिमिनल एक्ट नामक किताब है। इसमें लिखा हुआ है कि हर नागरिक को भारत में आत्मरक्षा का अधिकार है । अगर हमारी जान लेने की कोई कोशिश करे या हमारे शरीर से कपड़े छिनने की कोशिश करे तो प्रत्येक नागरिक को अधिकार है कि हिंसा के द्वारा भी छिननेवाले को मार भगाए ।

अगर घर में डकैत आ जाए तो डाकू को हम मार सकते हैं। इसके लिए खून का मुकदमा उस नागरिक पर नहीं चलेगा बल्कि दिल्ली सरकार और बिहार सरकार के द्वारा ऐसे डकैतों को मारने की खातिर उसे इनाम मिलेगा। यह हमारे यहां राइट ऑफ सेल्फ डिफेंस है। यह कानूनी अधिकार है। बूथ पर पांच सौ या एक हजार आदमी वोट देने के लिए जाते हैं। वह उनका सामूहिक अधिकार है। ना तो व्यक्तिगत अधिकार का हनन किया जा सकता है और ना सामूहिक अधिकार का। कोई लुटेरा वोट लूटने के लिए पहुंच जाता है , बूथों पर कब्जा करने की खातिर तो वोटरों का अधिकार है कि उसको हथियार से मार भगाए। मैं कानून के तहत् कहता हूं । कानून के खिलाफ नहीं कहता। अगर सरकार समझे कि कर्पूरी ठाकुर गैरकानूनी काम कर रहा है तो मुझको अदालत भेज दे । मुकदमा चलाए। मैं अदालत के सामने इस बात को स्वीकार कर लूंगा कि मैंने ऐसा कहा है। मैंने हिंसा भड़काने का काम कभी नहीं किया है । ना पहले किया है, न आज करता हूं और ना आगे करूंगा। लेकिन कानून ने इस देश के नागरिकों को बालिग मताधिकार दे रखा है। अपने अधिकार की रक्षा, जान-जायदाद की रक्षा का अधिकार प्राप्त है हमें। इसके लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ेगा तो लें। इसलिए हथियार उठाने को कहा है। मैंने ऐसा कह कर सरकार की मदद की है। क्या सरकार चाहती है कि नाजायज ढंग से इस देश में जनतंत्र चले । हमारे देश में जो ‘आर्म्स एक्ट’ है उसे रिपील कर दिया जाए।

इसकी जरूरत नहीं है । यह आर्म्स एक्ट विल्कुल खोखला है। ……यू सारे बिहार में अवैध हथियार है । जो सज्जन हैं उनके पास हथियार नहीं है और वे बिपत्ति से घिरे हुए हैं । वे ऐसे रहते हैं जैसे 32 दांतो के बीच बेचारी जीभ रहती है। जो अपराध कर्मी हैं, अराजक तत्व हैं, उनके पास हथियार है। तो सज्जन कैसे जिएंगे । प्रशासन निकम्मा है। नपुंसक है । प्रशासन के द्वारा किसी के जान जायदाद की हिफाजत नहीं हो सकती है। तो नागरिक कैसे जीवित रहेंगे ? जो कानून और संविधान के अनुसार चलते हैं, जो ‘लॉ एबाइडिंग’ लोग हैं, कैसे बच सकेंगे ?इसलिए मैंने कहा है कि आर्म्स एक्ट को रिपील कर दिया जाए । जिनके पास पैसा होगा हथियार खरीदेंगे और हथियार खरीदने के के बाद रजिस्ट्रेशन करा देंगे। जिस तरह रेडियो का रजिस्ट्रेशन होता है, उसी तरह इसका भी रजिस्ट्रेशन होगा।

आज देश की परिस्थिति भिन्न है और अराजक तत्व हावी हैं। राज्य में प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं है , तो हथियार रखने की आजादी कानून द्वारा मिलनी चाहिए। देश में जब बैलेट सिस्टम फेल होगा तो बुलेट प्रीवेल करेगा। प्रबल होगा। बहुत लड़ाई , आंदोलन और संघर्ष के बाद बालिग मताधिकार मिला है, उसको छीना जा रहा है। यह खतरनाक स्थिति है । जनतंत्र में विश्वास रखने वाली पार्टियों को साथ मिलकर यह काम करना चाहिए । तभी जनतंत्र बचेगा। नहीं तो जनतंत्र बचने वाला नहीं है । जाने वाला है और खून-खराबे का जमाना आने वाला है।”

लेखक :
डॉ. विनोद कुमार सिंह
सचिव
जननायक कर्पूरी ठाकुर विधि महाविद्यालय, बक्सर
सीनेट सदस्य
वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा