DESK : बिहार की राजनीति कई बड़े बदलावों से गुजरी. एक और बदलाव के आसार बिहार में फिर दिख रहे हैं. जदयू-भाजपा सरकार टूटने के बाद राजद-जदयू की सरकार बनने से राजनीतिक परिदृश्य बदल गया है. सरकार से बाहर होने के बाद कमजोर दिख रही भाजपा ने अपनी गोटी सेट करनी शुरू कर दी है. इससे भाजपा अब मजबूत होती दिख रही है. पूरे परिदृश्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उनकी पार्टी जदयू कमजोर हुई है. राजद को फायदा हुआ है. राजद सत्ता में आ गयी और अब तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनाने की बात सामने आने लगी है.
चिराग के बाद उपेंद्र व मुकेश भी दिख रहे लाइनअप
इन सब के बीच सरकार से बाहर होने के बाद भाजपा अलग-थलग के साथ कमजोर भी दिख रही थी. मगर, लोजपा सुप्रीमो चिराग को साधने के बाद भाजपा थोड़ी तनावमुक्त लग रही है. इसके बाद भाजपा चुप नहीं बैठी और स्टेप-दर-स्टेप कई कदम उठाये गये. मुकेश सहनी और अब उपेंद्र कुशवाहा को भी लाइनअप करने में भाजपा कामयाब होती दिख रही है. इससे संभावना जतायी जा रही है कि भाजपा के रथ पर चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी सवारी करने के लिए तैयार हो गये हैं. बिहार की राजनीति को हम जाति के बाहर होकर नहीं देख सकते.
इस लिहाज से भाजपा के पास वर्तमान में अपने आधार वोट का 17 फीसदी (सवर्ण व बनिया), पासवान का छह व कुशवाहा का लगभग साढ़े छह प्रतिशत समेत मल्लाहों का डेढ़ फीसदी वोट जोड़ देते हैं तो यह आंकड़ा लगभग 30 फीसदी हो जाता है. अगर, वास्तव में भाजपा के साथ चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, मुकेश सहनी मिलकर 2025 में विधानसभा चुनाव में उतरते हैं तो सात पार्टियों वाले महागठबंधन की सरकार को मजबूत टक्कर देंगे. अभी हाल में सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने अपना एक इक्का भी चल दिया है. सम्राट विधान परिषद में बतौर प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर काफी मुखर रहते हैं. कई मुद्दों पर वह हार्ड लाइन भी लेते हैं, जो सरकार के विरोध में खड़े लोगों को काफी पसंद आता है. अकेली खड़ी भाजपा का कुनबा हाल के दिनों में जुड़ा है.
17 से 30 फीसदी वोट पर पहुंची भाजपा
17 फीसदी से भाजपा 30 फीसदी तक पहुंच गयी है. इस 30 में अगर 20 फीसदी भी कम करके आकलन करते हैं तो भाजपा के पास 24 फीसदी आधार वोट है. इसमें नरेंद्र मोदी का असर तथा महादलित समेत अतिपिछड़ों का वोट जोड़ना अभी शेष है. क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का अभी व्यापक असर नहीं देखा गया है. वोट पैटर्न से लगता है कि लोकसभा चुनाव में दलितों ने भाजपा को वोट किया है. मगर, विधानसभा में इसका मिश्रित असर होने से रिजल्ट भी मिलाजुला ही रहा है. कुल मिलाकर विधानसभा में दलितों के वोटों का बंटवारा है और यह थोड़ा महागठबंधन की ओर झुका है.
अतिपिछड़ों की राजद से दूरी मगर नीतीश से नजदीकी
अतिपिछड़ी जाति का वोट का पैटर्न थोड़ा अलग है. अतिपिछड़ी जाति के लोग जदयू को वोट तो करते दिखे हैं, मगर राजद को लेकर उनकी दिलचस्पी कम है. हालांकि महागठबंधन इस पर ज्यादा दावा करता है. लिहाजा, यह वोट प्रत्याशी और क्षेत्र केंद्रित हो गया है. जबकि निर्णायक वोट अतिपिछड़ों की मानी जा रही है. बिहार में महिला भी एक वोट बैंक बनकर उभरी थीं, जो कुछ कम हुई हैं. अगर, महिलाओं को वोट बैंक के तौर पर देखें तो नीतीश की पार्टी की तरफ इनका रूझान दूसरों से थोड़ा ज्यादा दिखेगा. अभी तो यह आकलन है. इसकी आजमाइश चुनाव परिणाम बाद होगी. फिलहाल, हाल में कमजोर दिख रही और वर्षों से नीतीश के पीछे चलने वाली भाजपा खुद बिहार का कैप्टन बनने के लिए रेस में दौड़ लगा रही है.
मनोज कुमार
पटना