क्रांति दिवस : सन् 42 के आंदोलन का हीरो कोकिल प्रसाद कई साल तक गुमनाम जीते रहे

बक्सर

बक्सर,विक्रांत। सन् 42 के आंदोलन का हीरो डुमरंाव का लाल कोकिल प्रसाद आजादी मिलने के बाद भी कई दशक तक रोहतास जिला के डालमिया नगर में गुमनामी की जिंदगी जीते रहे। डुमरांव नगर के छठिया पोखरा के एक निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए स्वतंत्रता सेनानी कोकिल प्रसाद ने ईलाहाबाद विश्व विद्यालय से अंग्रेजी एवं भूगोल बिषय की पढ़ाई एम.ए. तक की थी। उनके नाम के अनुरूप ही उनकी कोकिल कंठ की सुरीली धारा प्रवाह अंग्रेजी एवं हिंदी में होने वाले भाषण से श्रोताओं के बीच जोश का संचार पैदा हो जाया करता था।

उन्होनें इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी के मिले आफर को ठुकरा कर पंडित नेहरू एवं लाल बहादुर शास्त्री के संर्पक आकर स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े थे। बाद में स्व.कोकिल प्रसाद अपने जन्म स्थली डुमरांव लौट आए। सन् 42 के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होकर वतन को गुलामी की दासता से मुक्ति दिलानें की दिशा में बल प्रदान करने में जुट गए। इनके सहयोगी स्वतंत्रता सेनानी साथियों में रामनरेश सिंह(डुमरांव) छोटक सिंह, शिव प्यार सिंह, मुन्नी सिंह, रामानंद सिंह(डाफाडिहरी) शिव प्रसाद सिंह(नई बाजार बक्सर) दुर्गा सिंह(डुमरंाव) देवी सिंह, नवाब सिंह(केसठ) का नाम शामिल है। जो अब इस दुनिया में नहीं रहे।

‘कोकिल के आने के बाद ब्रिटीश हुकूमत की बैचेनी बढ़ गई थी‘
पढ़े लिखे युवक कोकिल प्रसाद के डुमरांव आगमन के बाद ब्रिटीश हुकूमत एवं उनका साथ देने वाले तत्वों की बैचेनी बढ़ गई। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम से हटाने के लिए प्रलोभन और धमकियां दी गई। बावजूद कोकिल प्रसाद देश की आजादी के आलावे सामाजिक समानता एवं समानता समरस समाज की स्थापना करने को लेकर प्राण हथेली पर लेकर आंदोलन की धार को तेज करने में लगे रहे। हर घर से एक नवजवान का आह्वान करते रहे।

आखिर ब्रिटीश हुकूमत की साजिश के तहत एक दिन वर्ष 1941 में स्व.प्रसाद पर लठैतों द्वारा जानलेवा हमला किया गया। पर वे बच निकले। इस घटना से आक्रोशित हजारो नागरिक सड़को पर उतर आए। स्व.श्री प्रसाद पर हमला करने वाले तत्वों का हौसला पस्त हो गया और कभी उनके प्रति गलत भाव से देखने की हिम्मत नहीं हुई। स्वतंत्रता सेनानी कोकिल प्रसाद की मुहिम बंद नहीं हुई। सन् 42 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होनें बढ़ चढ़ कर न सिर्फ भाग लिया। बल्कि देश भक्त नवजवानों को कभी भूमिगत होकर तो कभी खुलेआम संगठित करते रहे।

‘कोकिल प्रसाद डुमरंाव थाना बर्निंग केस का अभियुक्त बनाए गए‘
इस शहर में स्वतंत्रता आंदोलन के दरम्यान 16 अगस्त सन् 42 को एक साथ चार जवानों की शहादत की घटना से आक्रोशित आजादी के दीवानों ने विगत 17 अगस्त सन् 42 को डुमरांव थाना को आग के हवाले कर दिया था। उक्त ऐतिहासिक घटना डुमरांव थाना बर्निंग केस में कोकिल प्रसाद को अभियुक्त बना दिया गया। उसके बाद से ब्रिटीश हुकूमत की पुलिस मुठभेड़ दिखाकर उनकी हत्या करने की योजना बना रखी थी।

ब्रिटीश हुकूमत द्वारा उन्हें जिंदा अथवा मुर्दा हाजिर करने का ऐलान कर दिया था। बावजूद कोकिल प्रसाद भूमिगत होकर आजादी के आंदोलनात्मक काम को करते रहे। वहीं उनके पैतृक घर को ब्रिटीश हुकूमत द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। घर का सामान तक कुर्क कर लिया गया। परिवार के सदस्य खानाबदोश की भांति जीवन जीने पर मजबूर हो गए। अपने परिवार के लोगो के साथ दमन की साया के नीचे फटेहाली में जीवन जीते हुए वीर जवान कोकिल प्रसाद नें जंगे-ए-आजादी से कभी मुंह नहीं मोड़ा।

‘आजादी मिलने के बाद भी कई दशक तक गुमनाम जीते रहे’
क्षेत्रीय इतिहास के जानकार स्वतंत्रता सेनानी के उतराधिकारी वयोवृद्ध सत्यनारायण प्रसाद उर्फ दादा, पूर्व राज्य सभा सदस्य सह पत्रकार अली अनवर,पत्रकार प्रियरंजन राय एवं वर्ष 74 छात्र आंदोलन के अग्रज नेंता दशरथ प्रसाद विद्यार्थी बताते है कि वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद भी जंगे-ए-आजादी का हीरो कोकिल प्रसाद रोहतास जिला के डालमिया नगर में गुमनाम जिंदगी जीते रहे। डालमिया नगर में ट्यूशन पढ़ाकर खुद एवं परिवार के अन्य सदस्य का परवरिश करते रहे।

स्वतंत्रता सेनानी कोकिल प्रसाद को डालमिया नगर मेें मास्टर साहब के नाम से पहचान है। स्थानीय देश भक्त सामाजिक कार्यकर्ताओं को काफी दिनों के बाद जानकारी मिला कि कोकिल प्रसाद जिंदा हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता बेताब हो गए और स्वागत समिति बनाकर डुमरांव में विगत वर्ष 1994 के 13 अगस्त 14 अगस्त एवं 15 अगस्त को लगातार तीन दिनों तक भव्य नागरिक अभिनंदन किया गया था। उनके एकलौता बेटा शिव कुमार प्रसाद है। जो डालमिया नगर में अभी तक घर विहीन है।