महात्मा गांधी के आगमन के साथ ही डुमरांव में हुई थी आजादी की क्रांति का आगाज….11 अगस्त सन् 1921 को डुमरांव पंहुचे थे महात्मा गांधी…..

बक्सर

बक्सर/बिफोर प्रिंट। बिहार प्रांत के शाहाबाद जिला के (अब बक्सर) डुमरांव में महात्मा गांधी के 11 अगस्त,1921 को आगमन के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन की आगाज हुई थी। उन दिनों महात्मा गांधी द्वारा स्वदेशी अपनाआंें एवं असहयोग आंदोलन की शंखनाद हो चुकी थी।डुमरंाव रेलवे स्टेशन के पश्चिमी-केबिन से उतर दिशा में उन दिनो मौजूद त्रिकोनिया मैंदान(अब त्रिकोनिया मोड़) में महात्मा गांधी की विशाल सभा आयोजित हुई थी।

महात्मा गांधी की सभा नगर के वीर सपूत महान स्वतंत्रता सेनानी राम कुमार तिवारी उर्फ कुमारी बाबा, ब्रहदेव राय उर्फ चुटुर राय के नेतृत्व में वीर सपूत स्वतंत्रता सेनानियों में हरिहर प्रसाद गुप्ता, प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद,जवाहर लाल श्रीवास्तव एवं शिवपूजन प्रसाद सिंह आदि के सहयोग से आयोजित हुई थी।उन दिनों हरे भरे आम के वृक्ष से हरियाली बिखेरती त्रिकोनिया मैंदान में अपार भीड़ को संबोधित करते हुए जब महात्मा गांधी ने‘स्वदेशी बस्त्र अपनाओ विदेशी बस्त्रों के परित्याग करो‘के नारा का उद्घोष किया था।

मौके पर हजारो वीर जवानों नंे बदन पर धारण किए विदेशी बस्त्र को उतार फेका और विदेशी बस्त्र को आग के हवाले करना शुरू कर दिया था। महात्मा गांधी के भाषण का प्रभाव सामान्य लोगों पर इस कदर पडा कि बदन पर खादी का कपड़ा पहननंे का मानांे उन दिनों प्रचलन बन गया। ‘प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद ने बापू की सुनाई थी गीत’
सभा मंच से डुमरांव के युवक प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद ने महात्मा गांधी को स्वरचित भोजपुरी गीत‘सुंदर सुघर भूमि भारत के रहे हो रामा,आज इहे भईल मसान रे फिरंगिया

जुल्मी कानून आ टिक्सवा के रदद् कर दे,भारत के दे-दे ते स्वराज रे फिरंगिया…प्रस्तुत कर समा बांध दिया था।बल्कि बापू उनके इस गीत से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हंे अपने साथ चंपारण तक लेते गए।डुमरांव में बापू के आगमन का जिक्र प्रख्यात इतिहासकार काली किंकर-दत्त की पुस्तक ‘गांधी जी इन बिहार‘में भी की गई है। क्या कहते है नागरिक-महात्मा गांधी के आगमन एवं सभा के बारे में इतिहास व दस्तावेज के आधार पर नगर के साहित्यकार सह अधिवक्ता शंभू शरण नवीन, वरीय पत्रकार रहे प्रियरंजन राय एवं स्थानीय तौर पर जेपी आंदालन के अग्रज रहे दशरथ प्रसाद विद्यार्थी ने बताया कि महात्मा गांधी द्वारा सभा में दिए गए भाषण से स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांति की आग सामान्य तौर पर डुमरांव के लोगो के दिलो-दिमाग में लग गई थी।

स्थानीय नवजवानो में देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का जुनून सा सवार हो गया था। इसकी परिणति डुमरांव थाना पर तिरंगा झंडा फहराने के क्रम में 16 अगस्त सन् 42 को ब्रिटीश हुकूमत की गोली से एक साथ चार जवानों की शहादत एवं कई जवानों के दुर्घटना की घटित घटना है। जो दर्जन भर अन्य जख्मी वीर सपूत इलाज के दौरान बलिवेदी पर चढ़ गए थे। अमर शहीदों की याद में शहीद स्मारक स्थल अर्थात शहीद पार्क के निकट शहीद स्तूप बना हुआ है।

वहां प्रत्येक 16 अगस्त शहीद दिवस के अवसर में आयोजित राजकीय समारोह के दौरान नागरिकों द्वारा श्रद्धासुमन अर्पित किया जाता है। ‘महात्मा गांधी की सभा के मुख्य आयोजक उपेक्षित’ दुसरी ओर महात्मा गांधी के आगमन के एक शताब्दी से अधिक यानि 103 साल गुजर जाने के बाद भी इस शहर में महात्मा गांधी की सभा स्थल त्रिकोनिया मैंदान (अब त्रिकोनिया मोड़) उपेक्षा का शिकार है। उनकी याद को सहेजने व संवारने की दिशा में सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा सका है।

आज की तारीख में त्रिकोनियां मैदान का हिस्सा रिहायशी इलाके में तब्दील हो चुका है। महात्मा गांधी के डुमरंाव स्थित सभा स्थल त्रिकोनिया मैंदान के बारे में भावी पिढ़ी बिल्कुल अंजान है। महात्मा गांधी की सभा का अगुवाई करने वाले महान विभूति स्वतंत्रता सेनानी कुमारी बाबा एवं चुटुर राय की यहां स्मृति तक नहीं है। महान स्वतंत्रता सेनानी कुमारी बाबा के प्रपौत्र सुमित्रा महिला कालेज के प्राध्यापक प्रो.सुरेश चंद्र त्रिपाठी एवं कांग्रेस नेता अमरेश चंद्र त्रिपाठी उर्फ छोटे तिवारी ने कहा कि नगर परिषद बोर्ड द्वारा महान विभूति चुटुर राय एवं कुमारी बाबा की स्मृति में तोरण द्वार का निर्माण व गली का नामकरण कराए जाने को नप बोर्ड में निर्णय लिया गया था। पर आज तक अमल नहीं किया जा सका है।