पपीता के पौधें में लगने वाले कीट एवं रोग से बचाव के लिए नींम के तेल का छिड़काव करना चाहिए
बक्सर, विक्रांत। डुमरांव स्थित वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज के वैज्ञानिकों द्वारा आर्दश गांव दक्षिण टोला के निकट खेत में चैपाल लगाकर पौंधों में लगनें वाले कीट के बारे में जानकारी दी। साथ ही कीट व रोग की समस्या से पौधों के बचाव के उपायों के बारे में वैज्ञानिकों द्वारा जानकारी प्रदान की गई। इस मौंके पर वैज्ञानिक डा. आनंद कुमार जैन की अध्यक्षता में आयोजित चैपाल के माध्यम से पादप रोग विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डा.मणिभूषण ठाकुर,कीट विज्ञान के डा.सी.एस. प्रभाकर एवं मृदा विज्ञान के वैज्ञानिक डा.अखिलेश कुमार सिंह द्वारा महिला किसानों लगने वाले कीट से बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान की गई।
पौंधों मेे एक पपीते की खेती में लगने वाले कीट व रोगों की जानकारी देते हुए डा.ठाकुर नें बताया कि पपीतें के बाग मेें कीटों की अपेक्षा रोगों से अधिक नुकसान होता है।पपीता के पौधों में पर्ण कुंचन रोग के लगने पर उनकी पत्तियां विकृत हो जाती है। पत्तियों की शिराओं का रंग पीला हो जाता है। इस रोग से ग्रसित पौंधों पर फूल नहीं खिलते है। वैज्ञानिक डा.ठाकुर नें बताया कि रोग व कीट से प्रभावित पपीतें के पौधों के बचाव के लिए पौधों पर नीम के तेल अथवा इमिडाक्लोरोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। डा.जैन ने कहा कि पपीता की खेती बागवानी फसल के रूप में की जाती है।पपीता का पौंधा अन्य बागवानी फसलों की तुलना में जल्द पैदावार देता है। इसके पौधों को अन्य बागवानी फसलों के साथ आसानी से उगाया जा सकता है।डा.जैन ने कहा कि पपीता के फसल को देख रेख की जरूरत पड़ती है।इसके पौधों पर रोग और प्राकृतिक कारकों का काफी प्रभाव देखनें को मिलता है।
वहीं कीट प्रबंधन से किसानों को अवगत कराते हुए डा.प्रभाकर नें कहा कि पपीता के पौधों पर लगने वाला सफेद मक्खी एक कीट रोग होता है। इस रोग की मक्खी पौंधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पौधों की रस को चुस लेती है। जिसके चलते पौधों की पत्तियां का रंग पीला हो जाता है। डा.प्रभाकर ने बताया कि रोग से पपीतें के पौधों को बचाने के लिए मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा में छिड़काव करना जरूरी होता है। किसानों को पपीतें में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान उचित समय पर करना जरूरी है। डुमरांवः चैपाल लगाकर वैज्ञानिकों द्वारा पौधों लगने वाले कीट व रोग के बारे में महिला किसानों को दी गई जानकारी पपीता के पौधें में लगने वाले कीट एवं रोग से बचाव के लिए नींम के तेल का छिड़काव करना चाहिए
बक्सर,विक्रांत।डुमरांव स्थित वीर कुंवर सिंह कृषि कालेज के वैज्ञानिकों द्वारा आर्दश गांव दक्षिण टोला के निकट खेत में चैपाल लगाकर पौंधों में लगनें वाले कीट के बारे में जानकारी दी। साथ ही कीट व रोग की समस्या से पौधों के बचाव के उपायों के बारे में वैज्ञानिकों द्वारा जानकारी प्रदान की गई। इस मौंके पर वैज्ञानिक डा. आनंद कुमार जैन की अध्यक्षता में आयोजित चैपाल के माध्यम से पादप रोग विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक डा.मणिभूषण ठाकुर,कीट विज्ञान के डा.सी.एस. प्रभाकर एवं मृदा विज्ञान के वैज्ञानिक डा.अखिलेश कुमार सिंह द्वारा महिला किसानों लगने वाले कीट से बचाव के उपायों की जानकारी प्रदान की गई।
पौंधों मेे एक पपीते की खेती में लगने वाले कीट व रोगों की जानकारी देते हुए डा.ठाकुर नें बताया कि पपीतें के बाग मेें कीटों की अपेक्षा रोगों से अधिक नुकसान होता है।पपीता के पौधों में पर्ण कुंचन रोग के लगने पर उनकी पत्तियां विकृत हो जाती है। पत्तियों की शिराओं का रंग पीला हो जाता है। इस रोग से ग्रसित पौंधों पर फूल नहीं खिलते है। वैज्ञानिक डा.ठाकुर नें बताया कि रोग व कीट से प्रभावित पपीतें के पौधों के बचाव के लिए पौधों पर नीम के तेल अथवा इमिडाक्लोरोप्रिड की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए। डा.जैन ने कहा कि पपीता की खेती बागवानी फसल के रूप में की जाती है।पपीता का पौंधा अन्य बागवानी फसलों की तुलना में जल्द पैदावार देता है। इसके पौधों को अन्य बागवानी फसलों के साथ आसानी से उगाया जा सकता है।
डा.जैन ने कहा कि पपीता के फसल को देख रेख की जरूरत पड़ती है।इसके पौधों पर रोग और प्राकृतिक कारकों का काफी प्रभाव देखनें को मिलता है। वहीं कीट प्रबंधन से किसानों को अवगत कराते हुए डा.प्रभाकर नें कहा कि पपीता के पौधों पर लगने वाला सफेद मक्खी एक कीट रोग होता है। इस रोग की मक्खी पौंधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पौधों की रस को चुस लेती है। जिसके चलते पौधों की पत्तियां का रंग पीला हो जाता है। डा.प्रभाकर ने बताया कि रोग से पपीतें के पौधों को बचाने के लिए मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा में छिड़काव करना जरूरी होता है। किसानों को पपीतें में लगने वाले कीट एवं रोग की पहचान उचित समय पर करना जरूरी है।