कुमारी बाबा को स्वतंत्रता सेनानी की नहीं मिली उपाधि नहीं मिलने का डुमरांव के लोगो को है मलाल।जंग ए आजादी के दरम्यान जख्मी कुमारी बाबा को देखने पंहुचे थे महात्मा गांधी।
बक्सर, विक्रांत। देश को गुलामी की जंजीरों आजादी के लिए रामकुमार त्रिपाठी उर्फ कुमारी बाबा के संर्घष की गाथा इतिहास के पन्नों में अकिंत है। उन्हें कभी भूलाया नहीं जा सकता है। आजादी की लड़ाई में तीन साल की जेल की सजा काटने वाले कुमारी बाबा के नाम सुनते ही ब्रिटीश हुक्मरानों को भय पैदा हो जाता था। उनके नेतृत्व में डुमरांव स्थित त्रिकोनियां मैंदान में महात्मा गांधी की विशाल सभा आयोजित की गई थी। कुमारी बाबा नें बक्सर स्थित केन्द्रीय जेल में 12 अक्टूबर 1942 से लेकर 15 नवम्बर 1943 बतौर सजा काटी थी। इसके पहले कुमारी बाबा को 23 जून 1930 को आर्डिनेंस एक्ट फाइव के तहत बक्सर कारा में विचाराधिन बंदी बनाया गया था। बाद में उन्हें 24 जून 1930 को दण्डाधिकारी द्वारा 6 माह की सजा सुनाई गई और 26 जून, 1930 को भागलपुर के केन्द्रीय कारागार में स्थानांतरित कर दिया गया। बावजूद जेल के अंदर से कुमारी बाबा आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाते रहे।
कुमारी बाबा नें जमींदारी प्रथा के खिलाफ भी लड़ी थी लड़ाई
वतन की आजादी के साथ ही कुमारी बाबा नें जमींदारी प्रथा के खिलाफ भी लोगो को गोलबंद कर लड़ाई लड़ने का काम किया था। इस लड़ाई में उनके साथी ब्रहदेव राय उर्फ चुटुर राय कदम से कदम चला करते थे। इसी वजह से स्थानीय आजादी के दीवानों के बीच दोनो दोस्तो का सम्मानपूर्वक नाम एक साथ कुमारी चुटुर पुकारा जाता था। दोनों दोस्तो ने एक साथ जंगल का फाटक तोड़ो का नारा बुलंद करते हुए जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ने का काम किया था। दुष्परिणाम दोनों दोस्तो का दुश्मन ब्रिटीश हुकूमत व जमींदार बन गए थे। इस आंदोलन के दरम्यान कुमारी बाबा के गोली से घायल होने पर उनके कुशल क्षेम पूछने को खुद महात्मा गांधी बक्सर के सदर अस्पताल में पंहुचे हुए थे। 17 अगस्त,1942 को डुमरांव बर्निंग केस का अभियुक्त बनाए जाने के बाद वे बहुत दिनों तक फरार चल रहे थे। बाद में उन्हंे कलकता से बंगाल की ब्रिटीश पुलिस ने पकड़ लिया और उन्हें बक्सर कारा में भेज दिया था।
‘कुमारी बाबा को स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि नहीं मिलने का है मलाल‘
इस घटना की जानकारी डुमरांव के इतिहास के जानकार प्रबुद्ध वयोवृद्ध सत्यनारायण प्रसाद एवं सन् 74 के छात्र नेंता रह चुके दशरथ प्रसाद बताते है कि कुमारी बाबा आजादी की लड़ाई के साथ ही जमींदारी प्रथा में बेगारी एवं बेआई कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ने का काम किया था। वहीं राम कुमार त्रिपाठी उर्फ कुमारी बाबा के पौत्र सुमित्रा महिला कालेज के प्रोफेसर सुरेश चंद्र त्रिपाठी एवं पौत्र सह कांग्रेसी नेंता अमरेशचंद्र त्रिपाठी उर्फ छोटे तिवारी ने बताया कि वतन की आजादी के लिए जीवन का बलिदान देनें वाले कुमारी बाबा को स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि तक नहीे मिली है। उनका निधन 30 फरवरी 1970 में हुई थी। उप प्राचार्य ने बताया कि उनके पिता जी स्व. राजीव रंजन त्रिपाठी द्वारा कुमारी बाबा के स्वतंत्रता सेनानी रहने की तमाम साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद भी आज तक गृह विभाग द्वारा स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि नहीं दी गई।
दुःखद बिडंबना है कि वतन को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करानें में पूरी जवानी लगा देनें वाले कुमारी बाबा को स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि नहीं मिल सकी। अलबत्ता बाबा के परिजन अभी तक स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी का प्रमाण पत्र पानें को प्रयास रत है। कुमारी बाबा के स्वतंत्रता सेनानी रहने की तमाम साक्ष्य की मौजूदगी के बावजूद स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि नहीं मिलने पर सरकार के गृह विभाग के समक्ष कई तरह के सवाल खड़े हो गए है। इस बात को लेकर स्थानीय नागरिको में मलाल है।