भारत में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध शंखनाद करने वाले ईश्वरचंद विद्यासागर अमर व प्रेरक रहेंगे
बेतिया/अवधेश कुमार शर्मा: ईश्वर चंद्र विद्यासागर आधुनिक भारतीय समाज सुधारकों मे से एक रहे। उन्होंने विधवाओं के उत्थान लिए कई कार्य किया। उनकी 131 वी पुण्यतिथि पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों ने बेतिया में भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया।
डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल, चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ने संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आधुनिक भारत के महान समाज सुधारक स्वर्गीय ईश्वर चंद्र विद्यासागर 131 वर्ष पूर्व 29 जुलाई 1891 ई को अनंत लोक को प्रस्थान कर गए। उनका संपूर्ण जीवन सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष एवं समाज में नई जागृति लाने को समर्पित रहा, संस्कृत के विद्वान एवं प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने तत्कालीन सामाजिक रुढ़ियों को चुनौती दिया।
बाल विवाह, महिलाओं के शिक्षा के अधिकार एवं विधवा पुनर्विवाह कानून पास करने में उनका योगदान अतुलनीय रहा है। 19 वीं सदी के लिए महान सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रेरणा 21वीं सदी में उससे कहीं अधिक है। ऐसे वक्त में जब हम सामाजिक स्तर पर तमाम विषमताओं का सामना कर रहे हैं, उनकी मुहिम हमारी सबसे बड़ी मार्गदर्शक है। इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल ,अमित कुमार लोहिया, डॉ शाहनवाज अली,पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ,वरिष्ठ अधिवक्ता शंभू शरण शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता नवींदु चतुर्वेदी एवं अलबयान के संपादक डॉ सलाम ने संयुक्त रूप से कहा कि महान शिक्षाविद, संस्कृत विद्वान और प्रसिद्ध सामाजिक सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने समाज में व्याप्त रुढ़ियों को चुनौती देते हुए सामाजिक सुधार की जो अलख जगायी, उससे देश में सामाजिक स्तर पर क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ. विधवा पुनर्विवाह अधिनियम और महिलाओं की शिक्षा प्रसार में विद्यासागर की भूमिका अकथनीय है।
उन्होंने बाल विवाह जैसे क्रूरतम कृत्यों को रोकने के लिए अभियान चलाया। महान शिक्षाविद् विद्यासागर का बंगाली भाषा के विकास में बहुत बड़ा योगदान है। बंगाली भाषा की लिपि और वर्णक्रम के विकास में ईश्वरचंद्र ने अमूल्य योगदान दिया है। विद्यासागर भारत के इतिहास में ऐसे महापुरुष के रूप में दर्ज हैं, जिनकी सोच और कार्य करने के तरीके समय से बहुत आगे रही। 1854 में विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह के लिए अभियान प्रारंभ किया। 19वीं सदी में व्याप्त कई कुप्रथाएं महिलाओं के जीवन को नरक बनाती रही, जैसे किशोर आयु में ही बालिकाओं का विवाह अधेड़ पुरुषों से कर देने जैसा चलन, पति का निधन हो जाने के बाद ऐसी लड़कियों को ताउम्र सफेद साड़ी में एक कलंकित और पृथक अस्तित्व में जीने को मजबूर रहना, ऐसी सामाजिक कुप्रथाओं से आहत विद्यासागर ने 1854 में तत्वबोधिनी पत्रिका में कुरीतियों के विरुद्ध लिखना प्रारंभ किया। उन्होंने तत्कालीन सरकार के सामने एक याचिका देकर विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कानून बनाने की मांग किया। उन्हें वर्धमान के महाराजा का समर्थन मिला, अंग्रेजी सरकार ने उनका व उनकी पहल का स्वागत किया। हालाकि, हिंदू समाज के कई संगठनों ने उनका पुरजोर विरोध किया। उनके प्रयासों के फलस्वरुप 26 जुलाई, 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हो गया। भारत एवं विश्व के महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर के विचार आज भी समाज एवं विश्व बिरादरी के लिए प्रासंगिक हैं । उनके जीवन दर्शन को नई पीढ़ी अपनाकर लाभान्वित हो सकती है एवं उनके जीवन में वास्तविक सुख शांति समृद्धि प्राप्त होगा।