बेगूसराय, क्रांति कुमार पाठक। स्वाधीनता के सूर्योदय के साथ जिस समर्थ, सक्षम और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का स्वप्न हमारे स्वतंत्रता समर के बलिदानियों ने देखा था, सात दशक बाद उस स्वप्न के साकार होने का समय आया है। देश इस वर्ष आजादी का 75 वीं वर्षगांठ को ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तौर पर मना रहा है। यह देव संयोग ही है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर प्रारंभ हुए अमृतकाल में भारत का नेतृत्व एक ऐसा क्षमतावान, यशस्वी और दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व कर रहा है जिसका एक ही ध्येय है- ‘राष्ट्र प्रथम’।
15 अगस्त 1947 को भारत, ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र हुआ था। आजादी के 75 साल का ये जश्न 12 मार्च 2021 से शुरू हुआ है जो 15 अगस्त 2023 यानी 78 वें स्वतंत्रता दिवस तक चलेगा। वास्तव में आजादी का अमृत महोत्सव भारत की विरल उपलब्धि है, हमारी जागती आंखों से देखे गये स्वप्नों को आकार देने का विश्वास है, तो जीवन मूल्यों को सुरक्षित करने एवं नया भारत निर्मित करने की तीव्र तैयारी है। अब होने लगा है हमारी स्वतंत्र चेतना का अहसास। जिसमें आकार लेते वैयक्तिक, सामुदायिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थ की सुनहरी छटाएं हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बहुत कुछ बदला, मगर चेहरा बदलकर भी दिल नहीं बदला।
विदेशी सत्ता की बेड़ियां टूटी पर बन्दीपन के संस्कार नहीं मिट पाये और राष्ट्रीयता प्रश्नचिन्ह बनकर आदर्शों की दीवारों पर टंग गयी थी, उसे अब आकार लेते हुए देखा जा रहा है। जिस संकीर्णता, स्वार्थ, राजनीतिक विसंगतियों, आर्थिक अपराधों, शोषण, भ्रष्टाचार एवं जटिल सरकारी प्रक्रियाओं ने अनंत संभावनाओं एवं आजादी के वास्तविक अर्थों को धुंधला दिया था, अब उन सब अवरोधक स्थितियों से बाहर निकलते हुए हम अपना रास्ता स्वयं खोजते हुए न केवल नये रास्तों बल्कि आत्मनिर्भर भारत एवं सशक्त भारत के रास्तों पर अग्रसर है। अब लिखी जा रही है कि भारत की जमीन पर आजादी की वास्तविक इबारत। यही वजह है कि सरकार ने इस बार का स्वतंत्रता दिवस खास अंदाज में मनाने का फैसला लिया है। इसके तहत देशभर में हर घर पर तिरंगा फहराया जा रहा है।
एक संकल्प लाखों संकल्पों का उजाला बांट सकता है, यदि दृढ़-संकल्प लेने का साहसिक प्रयत्न कोई शुरु करें। अंधेरों, अवरोधों एवं अक्षमताओं से संघर्ष करने की एक सार्थक मुहिम हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में 12 मार्च 2021 को शुरू हुई थी। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के लगभग सवा तीन साल पूरे करने जा रही है। वस्तुत देखा जाए तो विगत आठ साल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के उत्कर्ष, नव उदय और उत्थान के वे स्वर्णिम अध्याय है जो भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद बन रहे हैं।
स्वतंत्रता के 75 वर्ष के बाद आगामी 25 वर्ष के समय को ‘अमृत काल’ की संज्ञा दी गई है। हमारी सनातन परंपरा में भी 75 से 100 वर्ष के बीच का वर्ष अमृतकाल के रूप में निरूपित किया गया है। निश्चित रूप से अमृतकाल का यह समय भारत उदय की बेला है। बदलते वैश्विक समीकरणों में एक ऐसे भारत का उदय जो सक्षम और सामर्थ्यवान तो हो ही, दुनिया में भी अपनी साख रखता हो। आज नरेंद्र मोदी के दूसरे प्रधानमंत्री के कार्यकाल की सुखद एवं उपलब्धिभरी प्रतिध्वनियां सुनाई दे रही हैं।
हमने मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के मन्दिर के शिलान्यास का दृश्य देखा। मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में जता दिया है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति वाली सरकार अपने फैसलों से कैसे देश की दशा-दिशा बदल सकती है, कैसे कोरोना जैसी महामारी को परास्त करते हुए जनजीवन को सुरक्षित एवं स्वस्थ रख सकती है, कैसे महासंकट में भी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने से बचा सकती है, कैसे राष्ट्र की सीमाओं को सुरक्षित रखते हुए पड़ोसी देशों को चेता सकती है।
संघर्षों से जूझने की क्षमता भारत को अपने स्वतंत्रता के उदयकाल से ही प्राप्त है। इसके सामने आज तक जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई है, अवरोध उपस्थित करने वाली शक्तियां उसके सामने टिकने का साहस नहीं कर पाई। जिसको जन्मघूटी के साथ ही राष्ट्रीयता के संस्कार मिल जाये, वह कभी हार नहीं सकता, अपनी आजादी पर आने वाले हर खतरों एवं हमलों को परास्त करने की उसमें क्षमताएं है।
आजाद भारत के निर्माताओं ने जिस सूझबूझ, कर्मठता, साहस के साथ परिस्थितियों से लोहा लिया, वह इतिहास का एक क्रांतिकारी पृष्ठ है। नरेंद्र मोदी उसी पृष्ठ के एक चमकते राष्ट्रनायक हैं। स्वतंत्रता एवं सहअस्तित्व वाली मोदी की विदेश नीति इतनी स्पष्ट है कि आज दुनिया में भारत का परचम फहरा रही है। उनकी दृष्टि में कोरे हिन्दू की बात नहीं होती, ईसाई, मुसलमान, सिख की बात भी नहीं होती है, उनकी नजर में मुल्क की एकता सर्वाेपरि है। उनके निर्णय उनके इतिहास, भूगोल, संस्कृति की पूर्ण जानकारी के आधार पर होते हैं।
हम महसूस कर रहे हैं कि निराशाओं के बीच आशाओं के दीप जलने लगे हैं, यह शुभ संकेत है । नये राजनीतिक मूल्यों, नये विचारों, नये इंसानी रिश्तों, नये सामाजिक संगठनों, नये रीति-रिवाजों और नयी जिंदगी की हवायें लिए हुए आजाद मुल्क की एक ऐसी गाथा लिखी जा रही है, जिसमें राष्ट्रीय चरित्र बनने लगा है, राष्ट्र सशक्त होने लगा है, न केवल भीतरी परिवेश में बल्कि दुनिया की नजरों में भारत अपनी एक स्वतंत्र हस्ती और पहचान लेकर उपस्थित है। चीन की दादागिरी और पाकिस्तान की दकियानूसी हरकतों को मुंहतोड़ जबाव पहली बार मिला है। किसी भी राष्ट्र की ऊंचाई वहां की इमारतों की ऊंचाई से नहीं मापी जाती, बल्कि वहां के राष्ट्रनायक के चरित्र से मापी जाती है। उनके काम करने के तरीके से मापी जाती है।
आजादी के 75वें वर्ष में पहुंचते हुए हम अब वास्तविक आजादी का स्वाद चखने लगे हैं, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रीयवाद, अलगाववाद की कालिमा धूल गयी है, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण और दलीय स्वार्थो के राजनीतिक विवादों पर भी नियंत्रण हो रहा है। इन नवनिर्माण के पदचिन्हों को स्थापित करते हुए कभी हम प्रधानमंत्री के मुख से कोरोना महामारी जैसे संकटों को मात देने की बात सुनते है, तो कभी गांधी जयन्ती के अवसर पर स्वयं झाडू लेकर स्वच्छता अभियान का शुभारंभ करते हुए मोदी को देखते हैं। मोदी कभी विदेश की धरती पर हिन्दी में भाषण देकर राष्ट्रभाषा को गौरवान्वित करते हैं, तो कभी “मेक इन इंडिया” का शंखनाद कर देश को न केवल शक्तिशाली बल्कि आत्म-निर्भर बनाने की ओर अग्रसर करते हैं।
आजादी का यह उत्सव उन लोगों के लिए एक आह्वान है जो अकर्मण्य, आलसी, निठल्ले, हताश, सत्वहीन बनकर सिर्फ सफलता की ऊंचाइयों के सपने देखते हैं, पर अपनी दुर्बलताओं को मिटाकर नयी जीवनशैली की शुरुआत का संकल्प नहीं स्वीकारते। इसीलिए आजादी के अमृत महोत्सव का यह जश्न एक संदेश है कि-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, क्योंकि पलायन में मनुष्य के दामन पर बुजदिली का धब्बा लगता है, जबकि परिवर्तन में विकास की संभावनाएं सही दिशा और दर्शन खोज लेती है।
आजादी का दर्शन कहता है-जो आदमी आत्मविश्वास एवं अभय से जुड़ता है वह अकेले ही अनूठे कीर्तिमान स्थापित करने का साहस करता है। समय से पहले समय के साथ जीने की तैयारी का दूसरा नाम है स्वतंत्रता का बोध। दुनिया का कोई सिकंदर नहीं होता, वक्त सिकंदर होता है इसलिए जरूरी है कि हम वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सीखें। आजादी के अमृत महोत्सव का उत्सव मनाते हुए यही कामना है कि पुरुषार्थ के हाथों भाग्य बदलने का गहरा आत्मविश्वास सुरक्षा पाये। एक के लिए सब, सबके लिए एक ही विकास की गंगा प्रवाहमान हो।