शिविर में 100 बच्चों को दी गई स्वर्णप्राशन की खुराक, 200 मरीजों को मिला चिकित्सकीय परामर्श
मुजफ्फरपुर, बिफोर प्रिंट। विश्व आयुर्वेद परिषद मुजफ्फरपुर शाखा की तरफ से चरक जयंती के अवसर पर आज जिले के बोचहा प्रखंड अन्तर्गत राम कृष्ण धाम के प्रांगण में भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आरंभ महर्षि चरक के चित्र पर फूल चढ़ाकर और दीप प्रज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ जिला अध्यक्ष डॉ. रमेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में सरपंच संघ के अध्यक्ष संगीता देवी, समाज सेवी संजीव बिहारी, विशिष्ट अतिथि वैद्य देवेंद्र प्रसाद सिंह (पूर्व प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष आयुर्वेद डी. एस. एस. महाविद्यालय, रामबाग, मुजफ्फरपुर थे। मंच संचालन डॉ. विनोद कुमार चिकित्सक प्रकोष्ठ प्रमुख ने की।
गुरुजन सम्मान समारोह के आयोजन में वैद्य डॉ. देवेन्द्र प्रसाद सिंह जी को अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया गया है। अध्यक्ष महोदय ने अपने सम्बोधन में कहा कि आज सावन महीने की पंचमी है। इस दिन लोग नाग देवता की पूजा कर नाग पंचमी मनाते हैं। लेकिन आयुर्वेद के ग्रंथ भावप्रकाश के अनुसार आज के ही दिन आयुर्वेद के महान आचार्य चरक का भी जन्म जम्मू कश्मीर के पास कपिस्थल नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता आचार्य विशुद्ध थे जो वेद के काफी जानकर थे। ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि आयुर्वेद का अध्ययन करने के लिए चरक तक्षशिला गए थे।
वहां पर उन्होंने आचार्य आत्रेय से आयुर्वेद की दीक्षा ली। इससे यह कहा जा सकता है कि आत्रेय-पुनर्वसु संभवत: आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पहले हुए। इसका तात्पर्य यह भी निकलता है कि चरक आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व हुए। आचार्य चरक ने अष्ठांग स्थान स्वरूप में चरक संहिता की रचना की थी। जो कि मूलरूप से कायचिकित्सा को समर्पित है। इस ग्रंथ में द्रव्यगुण के छः पदार्थों के द्वारा सम्पूर्ण चिकित्सा पद्धति को लिखा । आयुर्वेद के त्रि सूत्र का वर्णन इनके द्वारा रचित ग्रन्थ से ही हमें ज्ञात हुआ।
त्रिसूत्र और त्रिदण्ड के आधार की रचना करने वाले आयुर्वेद के महान अचार्य थे महर्षि चरक। पंच प्राण, पंच दोष, पंच दुष्य, पंच तत्व, पंच कषाय कल्पना, जीवन आधार, औषध गुण परिचय, त्रिकाष्ठम परचिय, का विस्तृत वर्णन केवल हमे चरक संहिता के द्वारा ही प्राप्त हुई। कहा जाता है कि आयुर्वेद को जानने और समझने के लिए आचार्य चरक के चिकित्सा सिद्धांतों को समझना बहुत जरूरी है। इसलिए आयुर्वेद के चिकित्सकों के बीच आचार्य चरक के द्वारा रचित ग्रंथ चरक संहिता का महत्व सबसे ज्यादा है। कायचिकित्सा के विशेषज्ञों को ‘चरकाः’ या ‘चरक’ कहा जाता है। आचार्य चरक को वैशम्पायन मुनि का शिष्य माना गया है।
महर्षि चरक आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है जो की वैद्यक का प्रसिद्ध अद्वितीय ग्रंथ है। इस कार्यक्रम में डा. रीतेश कु वर्मा (सचिन), डॉ. पुष्पलता कुमारी (प्रान्तीय महिला प्रकोष्ठ प्रमुख), डॉ. विकास शर्मा (मडिया प्रभारी), डॉ. विपिन बिहारी (उपाध्यक्ष), डॉ. अरुण कुमार, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. राधेश्याम, डॉ. परमिला, डॉ. सुधा, डॉ. उषा, डॉ. बलराम, डॉ. मिथलेश सिंह, डॉ. नीलू, डॉ. सुरेश साह, अनुराधा, डॉ. प्रसांत, डॉ. संध्या, डॉ. दीपक दीपक सिद्धार्थ, डॉ. अनुपम शुमन, डॉ. हरि ओम शरण, डॉ. मनोरमा भारती, डॉ. अनिल कुमार, सरपंच संगीता कुमारी, संजीव कुमार (सह सरपंच संघ अध्यक्ष) आदि चिकित्सकों ने कार्यक्रम में भाग लिया। श्री धन्वन्तरि हर्बल, चरक, डाबर इंडिया के आयुर्वेदिक कम्पनियों के प्रतिनिधि ने सहभागिता दी।
निःशुल्क स्वर्णप्राशन शिविर में 100 बच्चों को स्वर्णप्राशन की खुराक डॉ० विकास शर्मा के द्वारा दी गई।
निःशुल्क चिकित्सा शिविर में 200 मरीजों को चिकित्सीय परामर्श, जांच, व औषधि निःशुल्क प्रदान की गई .मुख्य वक्ता फार्मासिस्ट देवेंद्र यादव एवम डाक्टर संयोग कुमार ने भी अपनी अपनी बाते रखी।