अपने समय के अनेक प्रश्नों का समाधान है नटखेला :अनामिका
मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। मिठनपुरा स्थित मंजुलप्रिया के सभाकक्ष में प्रसिद्ध गीतकार डॉ महेंद्र मधुकर के आठवें उपन्यास नटखेला उर्फ़ बन्ना गोसाई का नवसंचेतन, प्रस्तावना, संस्कृति संगम के तत्वावधान मे किया गया।विषय प्रवेश कराते हुए डॉ संजय पंकज ने कहा कि इस उपन्यास में लोक के कई ऐसे संदर्भ हैं जो आज लुप्तप्राय हैं।
इसमें अलग-अलग पीढ़ियों का परिवर्तन तो है ही ,सामाजिक, राजनीतिक विसंगतियां और मूल्य विघटन तथा संघर्षों के साथ-साथ स्त्री मुक्ति की कथा भी है , जिसमें सड़ी गली रूढ़ियों को तोड़ा गया है। भाषा की रोचकता में बहुत सारी उक्तियां और सुक्तियां हैं जो जीवन विकास के लिए सूत्र के रूप में संबल प्रदान करती हैं। कथा के माध्यम से जो संवेदनात्मक विस्तार उपन्यास मे लेखक ने किया है , वह प्रेरक और चिंतनीय है। मुख्य अतिथि डॉ अनामिका ने लोकार्पण करते हुए कहा कि यह उपन्यास अपने समय के अनेक प्रश्नों का समाधान है ।
इसमें बहुत सारे आत्मवीक्षण के क्षण हैं। सामरस्य की अवधारणा में लिखा हुआ सा प्रतीत होता यह उपन्यास आज की कई सामाजिक जटिलताओं की गांठें खोलता है। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ शांति सुमन ने कहा कि डॉ महेंद्र मधुकर का उपन्यास लेखन हमें चौंकाता है क्योंकि ये एक बड़े और समृद्ध गीतकार के रूप में लोकप्रिय रहे हैं। उपन्यास के क्षेत्र में इनका इतनी मजबूती से आना गीत के लिए एक भले ही खालीपन हो लेकिन इस विधा को एक ऊंचाई मिलेगी यह विश्वास है। विशिष्ट अतिथि समकालीन कविता के चर्चित कवि मदन कश्यप ने कहा कि इस उपन्यास की सहज भाषा प्रभावित करती है और उसके प्रवाह में संपूर्ण कथानक सहजता के साथ उतरते चले जाते हैं। चरित्र के साथ भाषा का बदलाव कुशल शिल्प से परिचित कराता है।
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सतीश राय ने कहा कि ऐतिहासिक पात्रों को आधुनिकता के रंग में संशोधित करके मधुकर जी ने प्रस्तुत किया है। डॉ पूनम सिंह ने कहा कि समर्थ गीतकार जब उपन्यास लेखन में उतरता है तो गीत- संवेदना संयुक्त होती है उसकी कृति में। डॉ महेंद्र मधुकर ने अपने भावोद्गार में कहा कि मेरा नटखेला उर्फ बन्ना गुसाईं नामक यह उपन्यास आठवां उपन्यास है। बन्ना गोसाई एक केंद्रीय पात्र है जिस पर सारे प्रयोग हुए हैं। तीन पात्र हैं।
उपन्यास में जुड़ी हुई तीन कहानियां हैं और यह तीनों कहानियां एक बिंदु पर अंत में आकर मिलती हैं। बन्ना गोसाईं संगीतकार बनना चाहता है लेकिन परिस्थितियों की चोट खाकर उसे तरह-तरह से कभी पुरुष नर्तकी के रूप में, कभी मंदिरों में भजन गाकर जीवन यापन करना पड़ता है। डॉ रमेश ऋतंभर,शारदाचरण, उदय नारायण सिंह, डॉ वंदना विजय लक्ष्मी, डॉ मृणालिनी, लोकनाथ, डॉ चितरंजन, डॉ सोनल, डॉ चेतना वर्मा, गणेश प्रसाद सिंह, डॉ वीरमणि राय ने भी अपनी शुभकामनाएं दी और उद्गार व्यक्त किए। लोकार्पण के अवसर पर मिलन कुमार, मानस दास, मौली दास, आरती कुमारी आदि की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही। स्वागत डॉ सुनीति मिश्र तथा संचालन संजय पंकज ने किया। डॉ मृणालिनी ने विद्वान वक्ताओं के संबोधन को रेखांकित करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया।