भगत सिंह ,राजगुरु ,शुकदेव सहादत दिवस शोषणमुक्त, वर्ग विहीन समाज की स्थापना ही शहीदों की सच्ची श्रद्धांजलि- चंद्रभूषण सिंह चंद्र

मुजफ्फरपुर

Muzaffarpur/Befoteprint.शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशां होगा..। शहीद दिवस के अवसर पर राष्ट्रभक्ति की इन्ही भावनाओं के बीच साहित्य भवन कांटी में शहीद भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु को याद किया गया। नूतन साहित्यकार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सर्वप्रथम तीनों शहीदों की तस्वीर पर लोगों ने माल्यार्पण कर नमन किया। अध्यक्षीय संबोधन में चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शहीदों की शहादत के कारण ही आज हमसभी आजाद भारत में सांस ले रहे हैं। तीनों युवा क्रांतिकारियों ने मातृभूमि की सेवा में अपना सर्वोच्च बलिदान देकर, देश के युवाओं में एक नई ऊर्जा का संचार कर स्वाधीनता की अमर गाथा लिखी थी।

उन्होंने कहा कि भगत सिंह ने सपना सम्पूर्ण जीवन क्रांतिकारी के रूप में जिया। भगत सिंह कहते थे कि केवल अंग्रेजों के खिलाफ हीं नही लड़ना है बल्कि अंग्रेजी प्रवृति के खिलाफ भी लड़ना है। चाहे वे अपने देशवासी क्यों न हो। उन्होंने कहा , शोषणमुक्त , वर्ग विहीन समाज की स्थापना ही इन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उन्होने शिवराम राजगुरु के बारे में कहा कि देश की दुर्दशा इन्हे खलती थी। देश को स्वतंत्र कराने का संकल्प इन्होंने मन में ठान लिया था। इसके बाद क्रांतिकारी साथियों की खोज में इन्हे भगत सिंह व सुखदेव मिल गए। चंद्रकिशोर चौबे ने कहा कि भगत सिंह के साथ सुखदेव ने कई क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।

उनकी सबसे महत्वपूर्ण व यादगार क्रांतिकारी घटना जॉन सांडर्स नामक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या में योगदान की रही। राकेश कुमार राय ने कहा कि भगत सिंह द्वारा सैंडर्स की हत्या किए जाने को दो सिपाहियों ने देख व पहचान लिया था। छोटी सी चूक से भी भगत सिंह मारे जा सकते थे। सुखदेव थापर ने दुर्गा भाभी को तैयार कर उन्हे दूसरे स्थान पर भेजने का बंदोबस्त किया था। दुर्गा भाभी भी वीरांगना क्रांतिकारियों में से थी। इसी क्रम में उन्हें केस व दाढ़ी कटवानी पड़ी थी।

सिख समुदाय के लिए ऐसा करना अपराध माना जाता था परन्तु देश के लिए भगत सिंह कुछ भी कर सकते थे। स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि तीनों क्रांतिकारियों को 24 मार्च 1931 को फांसी होनी थी। लेकिन अंग्रेजों ने जनता के विद्रोही व्यवहार से भयभीत होते हुए, एक दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह,सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी। परशुराम सिंह ने कहा कि युगों तक तीनों बलिदानी युवाओं के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे व देश इनका सदैव ऋणी रहेगा। कार्यक्रम में नंदकिशोर ठाकुर,मनोज मिश्र,रोहित रंजन, दिलजीत गुप्ता, वसंत शांडिल्य,रजनीश कुमार, महेश कुमार ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी।