कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव : महागठबंधन और भाजपा दोनों समीकरण और सम्भावनाओं के आसरे डटे हैं चुनावी जंग में

मुजफ्फरपुर

Muzaffarpur/Brahmanand Thakur: कुढनी विधानसभा उपचुनाव के मतदान की तारीख बिल्कुल करीब आ गई है। यहां 5 दिसम्बर को मतदान होना है। लिहाजा चुनाव प्रचार के लिए अब मात्र तीन दिन ही बचे हैं। यहां से कुल 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।मुकाबला महागठबंधन और भाजपा के बीच होने वाला है। वीआईपी के नीलाभ कुमार इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जी तोड कोशिश में लगे हैं।महागठबंधन और भाजपा समीकरण और संभावनाओं के आसरे चुनावी जंग में है। जबकि एआईआईएमके वीआईपी की ओर से समीकरण को गड़बड़ करने की पुरजोर कवायद जारी है। वही राजद के बागी शेखर सहनी भी मतों के समीकरण को झटका दे सकते हैं। विदित हो कि  राजद  विधायक अनिल सहनी पर एलटीसी घोटाले का आरोप साबित हो जाने और तीन साल की सजा सुनाए जाने के बाद जैसे ही उनकी सदस्यता रद्द की गई कुढ़नी  विधानसभा में उपचुनाव की कवायद प्रारंभ हो गई थी। खासकर भाजपा के पूर्व विधायक और मौजूदा प्रत्याशी केदार प्रसाद जोर शोर से चुनावी तैयारी में जुट गए थे।

दूसरी ओर महागठबंधन में यह असमंजस बनी थी कि इस सीट पर प्रत्याशी किस दल का होगा ? सीटिंग विधायक के नाते यह सीट राजद के खाते में होनी चाहिए थी जबकि घटक दलों के साथ बेहतर समन्वय के नाते जनता दल यू भी दावेदारी प्रस्तुत कर रही थी। क्योंकि पिछले उपचुनाव में गोपालगंज और मोकामा में जदयू  ने राजद के प्रत्याशी को हरी झंडी देने का काम किया था। बहरहाल राजद ने भी हाथ बढ़ाते हुए जदयू प्रत्याशी मनोज कुमार के नाम पर मुहर लगा दी। हालांकि पार्टी की ओर से लिए गए फैसले से राजद कार्यकर्ताओं में नाराजगी दिखी और कुढ़नी से मजबूत कार्यकर्ता शेखर सहनी ने बागी रुख अख्तियार करते हुए पार्टी की सदस्यता तक से त्यागपत्र दे दिया। बात यहीं नहीं थमी शेखर सहनी ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया। हालांकि प्रारंभ में अनुमान किया जा रहा था कि वीआईपी की ओर से सहनी समुदाय के नाते शेखर सहनी को सिंबल मिल सकता है।

लेकिन मुकेश सहनी ने इस क्षेत्र से चार बार विधायक रहे पूर्व मंत्री साधु शरण शाही के नाती नीलाभ कुमार को सिंबल देकर चुनावी समीकरण को रोचक बना दिया है। अगर उपचुनाव में सहनी और भूमिहार मतदाता गोलबंद होते हैं तो निश्चय ही इसका खामियाजा भाजपा को झेलनी पड़ सकती है। दूसरी ओर गोपालगंज विधानसभा चुनाव में रंग दिखा चुके ओवैसी की पार्टी ने कुढ़नी  में भी प्रत्याशी देकर महागठबंधन को सकते में डाल दिया है। हालांकि यह आने वाला समय बताएगा कि ओवैसी के प्रत्याशी इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक समुदाय को किस तरह अपने पाले में ला सकेंगे। क्योंकि सांप्रदायिकता का तगमा धारण कर चुकी  भाजपा के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय ने अब तक राजद को समर्थन देने का काम किया है। दूसरी ओर नीलाभ कुमार के रूप में क्षेत्र से एक मात्र भूमिहार प्रत्याशी होने से भी भाजपा के लिए दुविधा की स्थिति बनी है।

यहां तक कि आपाधापी में भूमिहार ब्राह्मण समाजिक फ्रंट भी दो फाड़ हो चुका है। पूर्व मंत्री अजीत कुमार फ्रंट की ओर से नीलाभ  के साथ खड़े हैं जबकि पूर्व मंत्री सुरेश कुमार शर्मा इसे अवसरवादिता बताते हुए भाजपा प्रत्याशी केदार प्रसाद के समर्थन का दावा कर रहे हैं। अगर इस क्षेत्र में मतों के समीकरण को देखें तो भूमिहार अल्पसंख्यक समुदाय के साथ-साथ लव कुश के भी अच्छे खासे मत है। साथ ही साथ वैश्य और अति पिछड़ा समुदाय के मतदाता भी अच्छी संख्या रखते हैं। जिससे चुनावी मुकाबला रोचक होने का आसार है।

हालांकि जो स्वरूप बन रहे हैं उसमें मुकाबला आमने-सामने का हो सकता है जिसमें महागठबंधन और भाजपा प्रत्याशी को अपनी ताकत दिखानी होगी लेकिन वीआईपी का रंग चला तो निश्चय ही यह मुकाबला नीलाभ के रूप में त्रिकोण का रंग दे सकता है और राजद के बागी शेखर सहनी अपने कद के मुताबिक मतों की गोलबंदी करने में सफल रहे तो  मुकाबला चतुष्कोणीय भी बन सकता है। जिसमें कहीं न कहीं महागठबंधन अथवा भाजपा प्रत्याशी को नुकसान झेलना पड़ सकता है। वैसे तमाम दावों के बीच विकास की राह पर पिछड़ी कुढ़नी के मतदाता मौन है। उनकी चुप्पी दलीय प्रत्याशी के लिए परेशानी का सबब बना है । ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल है। पिछले चुनाव में हारे दोनों प्रमुख प्रत्याशियों का भविष्य क्या होगा इसका फैसला मतदान और मतगणना के परिणाम से ही स्पष्ट हो सकेगा।