Muzaffarpur/BrahmanandThakur. मिठनपुरा स्थित मंजुल प्रिया के सभागार में शकुंतला और दुष्यंत की प्रेमकथा पर आधारित जाने माने कवि-गीतकार, आलोचक और उपन्यासकार डॉ महेंद्र मधुकर के उपन्यास अरण्यानी का लोकार्पण हुआ। अपने अध्यक्षीय उ्दगार में डॉ रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कहा कि मधुकर जी के उपन्यासों में प्रकृति का चित्रण, स्त्री विमर्श, तथा उपदेशात्मक विचार एवं भाव प्रमुखता के साथ होते हैं।
इससे पूर्व स्वागत संबोधन में उपमा श्रुति ने कहा कि सृजन का उत्सव मेरे लिए आत्मिक प्रसन्नता का अवसर है। विषय प्रस्तावना में डॉ संजय पंकज ने कहा कि उपन्यास का कथानक रस देता, विचार देता है। भाषा का प्रवाह हमें पूरा उपन्यास पढ़ने के लिए विवश कर देता है। यह उपन्यास हृदय को प्रभावित ही नहीं करता है बल्कि स्पंदित, उद्वेलित और आंदोलित करते हुए आलोकित करता है।
रचना प्रक्रिया और उपन्यास लेखन पर बोलते हुए लेखक डॉ महेंद्र मधुकर ने कहा कि स्त्री चित्त और मन की विराटता की पहचान है अरण्यानी। शकुंतला भी प्रकृति की प्रतीक है। डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि मैंने इस उपन्यास को भाव भरी दृष्टि से पढ़ा है। पाठक और आलोचना की दृष्टि भी मेरी इस पर रही है। प्रेम के क्षरण के युग में प्रेम की नई दृष्टि सृजित करने का काम उपन्यासकार ने किया है। डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि इस उपन्यास में तीन आश्रम है। इसमें आधुनिकता बोध भी भरपूर है। इस सदी की प्रासंगिकता से इस उपन्यास को जोड़कर देखा जा सकता है।
डॉ पूनम सिंह ने कहा कि इसके कथानक में मिथकों और आधुनिकता का सुंदर और सार्थक प्रयोग किया गया है। डॉ वीरमणि राय ने कहा कि प्रकृति के साथ साथ व्यक्ति को अगर जीवंत रहना है तो प्रकृति को बचाना होगा।यह उपन्यास प्रकृति साहचर्य के लिए प्रेरित करता है। आयोजन में उदय नारायण सिंह, गणेश प्रसाद सिंह, सतीश कुमार झा, हरि किशोर सिंह, मिलन कुमार,मौली दास,मानस दास,आरती कुमारी आदि की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही। अपने आभार में डॉ सुनीति मिश्र ने कहा कि इस उपन्यास में अनेक रंग और संघर्ष चित्रित हैं। धन्यवाद ज्ञापन डॉ मृणालिनी
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