बोचहा का चुनाव हार कर भी निषादों के बड़े नेता बनकर उभरे मुकेश सहनी

मुजफ्फरपुर

सहनी मतदाताओं ने एन डी ए का साथ छोड़ा

मुजफ्फरपुर/बिफोरप्रिंट। आज के बोचहा उपचुनाव के रिजल्ट से यह साफ हो गया है कि मुकेश सहनी का प्रभाव आज भी उनके जाति के अंदर कूट- कूट कर भरा हुआ है । पिछले चुनाव में मुकेश सहनी एनडीए के हिस्सा थे और मुकेश सहनी के साथ रहने से एनडीए को इसका फायदा भी मिला था। भले ही बंटवारे के कारण बोचहाँ कि सीट वीआइपी के खाते में चली गई थी मगर वीआइपी उम्मीदवार मुसाफिर पासवान ने उस सीट पर अपनी जीत हासिल कर ली थी।

मुकेश सहनी का दावा था कि सहनी मतदाताओं का वोट मुकेश सहनी की वजह से मिला था। जबकि भाजपा में जो निषाद समाज के नेता हैं , खासकर मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद। उनका यह दावा था कि भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी के वजह से और मुजफ्फरपुर सांसद अजय निषाद के प्रभाव के कारण वहां के मतदाता मुसाफिर पासवान को वोट दिए थे।

परिस्थितिवश बोचहा में उपचुनाव कराने की नौबत आ गई। पूर्व विधायक की मृत्यु और नए चुनाव होने के बीच ही उत्तर प्रदेश में चुनाव की रणभेरी बज गई थी। मुकेश साहनी अपनी महत्वाकांक्षा को दवा नहीं पाए और वे उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ने चले गए।

मुजफ्फरपुर के सांसद अजय निषाद जो मुकेश सहनी के स्वजाति भी हैं ,उन्होंने उत्तर प्रदेश में मुकेश सहनी के चुनाव लड़ने का भरपूर विरोध किया और उसी को आधार बनाकर बोचहाँ चुनाव में उनकी उम्मीदवारी के विरोध में मोर्चा खोल दिया।
दरअसल भाजपा के सांसद एक तीर से दो निशाना करने के प्रयास में लग गए यदि मुकेश सहनी को बोचहा में हार मिलती है और भाजपा के प्रत्याशी की जीत हो जाती तो निश्चित रूप से अजय निषाद का कद बिहार भाजपा में एक बड़े निषाद नेता के रूप में बन जाता ।

इस तरह एनडीए. के अंदर अजय निषाद एक बड़े निषाद नेता के रूप में उभर कर सामने आते और भाजपा के बड़े केंद्रीय नेताओं के द्वारा इन्हें महत्वपूर्ण पद मिलने की संभावना बन रही थी। एक तरफ एक बड़े पद की लालसा और दूसरी और एक अपने स्वजातीय नेता को आगे बढ़ने से रोक देना इस कार्य में मुजफ्फरपुर सांसद सफल नहीं हो पाए।

जनता ने सीधे तौर पर मुकेश सहनी को तो नकारा है साथ ही भाजपा के एक खास वर्ग को भी नकार दिया है। आज भाजपा प्रत्यासी की हार मुकेश सहनी की जीत ही कही जाएगी क्योंकि यदि मुकेश सहनी का प्रत्यासी नही जीता तो भाजपा भी नही जीत पाई । मुकेश सहनी ने भाजपा उम्मीदवार के हार जीत के फासले को काफी चौड़ा कर दिया है ।

बिहार भाजपा का यह उन्ही नेताओं का चेहरा है जो भाजपा के मूल सिद्धांत सबका साथ सबका विकास से हटकर अगड़ी पिछड़ी के हिसाब से केवल पिछड़ों का साथ और पिछड़ों के विकास किया करते थे । इन नेताओं के दिल के अंदर कुछ और तथा जुबां पर कुछ और बातें होती थी । भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को गुमराह कर बिहार भाजपा के अंदर सवर्णों को टारगेट करने वाले और अपनी राजनीतिक बिसात बिछा कर सवर्णों का नाश करने का मन बना देने वाले भाजपा के इस चौकड़ी की चालाकी मुजफ्फरपुर की जनता भली-भांति समझ चुकी थी ।

राजद ने एमएलसी चुनाव में इन चीजों को देखते हुए एक बड़ा शतरंज का चाल खेला और बिहार की राजनीति से उपेक्षित किए जा रहे भूमिहार समाज को एमएलसी का 5 -5 उम्मीदवारी देकर राजद ने ब्रह्मर्षि कार्ड खेल दिया। इस कार्ड ने भूमिहार वर्ग को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया। बिहार भाजपा के रवैए से खुद को अपमानित महसूस कर रहे भूमिहारों ने अपने स्टैंड को बदला और वे राजद के साथ हो लिए।

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