मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद शोषण मूलक समाज व्यवस्था के विरुद्ध एक मुखर आवाज थे। उनकी तमाम रचनाओं में न केवल तत्कालीन समाज की विसंगतियां दिखाई देती है ,बल्कि उन विसंगतियों को दूर कर शोषण मुक्त, वर्ग विहीन समाज की स्थापना का संदेश छिपा है।
ये बातें नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने कहीं।वे सोमवार को साहित्य भवन ,कांटी में आयोजित प्रेमचंद की 143 वीं जयंती समारोह में बोल रहे थे।कथा सम्राट को हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक बताते हुए उन्होंने कहा कि उनका साहित्य आम आदमी का साहित्य है, किसानों , मजदूरों, नौजवानों और महिलाओं का साहित्य है।
उसमें सामाजिक कुरीतियों को मिटा कर नूतन समाज के निर्माण की छटपटाहट है। उनके उपन्यासों में आदर्श, कर्तव्य,प्रेम,करुणा,समाज सुधार,देशभक्ति , सत्याग्रह, अहिंसा, स्त्री व्यथा, मध्यवर्गीय मनुष्य की त्रासदी,कृषक जीवन की समस्याएं, मेहनतकश जनता का संघर्ष के विविध पक्ष देखने को मिलते हैं।
उनकी भाषा शैली यथार्थवादी,सटीक और जनमानस की भाषा है। यही कारण है कि उनकी हर रचना सीधे जन मानस के मन-मस्तिष्क पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ जाती है। प्रेमचंद ने सदैव समाज की बुराईयों व रूढ़िवादिता पर प्रहार किया और सर्वहारा वर्ग के शोषण और मानवीय संवेदना को उजागर किया।
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को संदेश देते हैं। ‘गबन’ के जरिए से समाज की ऊंच-नीच, ‘निर्मला’ से एक स्त्री को लेकर समाज की रूढ़िवादिता और ‘बूढी काकी’ के जरिए ‘समाज की निर्ममता’ को दर्शाया गया है।
पंच परमेश्वर कहानी सही न्याय करने के लिए आत्मा को झकझोरती है। इनकी रचनाओं में आदर्शवाद व यथार्थवाद का समन्वय देखने को मिलता है।गोदान उपन्यास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का प्रकाशन आज से 87 साल पहले 1936 में हुआ था।तब भारत में अंग्रेजों का शासन था।
होरी उपन्यास का एक मुख्य पात्र हैं। जमींदार की जमीन पर दो बैलों की खेती करने वाला होरी जमींदारी शोषण और सामाजिक कुरीतियों के कारण किसान से मजदूर बन जाता है और एक दिन लकड़ी चीरने की मजदूरी करते हुए होरी की मौत हो जाती है।
आजादी के 76 बर्षों बाद भी देश के गरीब किसानों की नियति भी होरी जैसी ही बनी हूई है। उन्होंने कहा ,समाज में जबतक आर्थिक विषमता कायम रहेगी ,प्रेमचंद प्रासंगिक बने रहेंगे।
सेवानिवृत डीडीओ परशुराम सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास के माध्यम से लोगों को साहित्य से जोड़ने का काम किया। उनके उपन्यास व कहानियांआज भी प्रासंगिक हैं। सेवानिवृत शिक्षक स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य समाज सुधार व राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है।
जयंती समारोह में उपस्थित लोगों ने प्रेमचंद की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया। कार्यक्रम का संचालन राकेश कुमार राय व धन्यवाद ज्ञापन पिनाकी झा ने किया। कार्यक्रम में चंद्रकिशोर चौबे,नंदकिशोर ठाकुर,अखिलेश्वर झा,महेश कुमार,मनोज मिश्र,वसंत शांडिल्य, दिलजीत गुप्ता,प्रकाश कुमार आदि शामिल थे।