अहमद अल-हलो, कहां हो? ,हो-चि का कु-चि और हिलोल पुस्तकों के लिए किया गया सम्मानित
Muzaffarpur/Brahmanand Thakur :अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति समिति ने आज हिंदी के लेखक सुरेन्द्र मनन को 13वां अयोध्या प्रसाद खत्री सम्मान से सम्मानित किया। उनको यह सम्मान उनकी चर्चित पुस्तक अहमद अल-हलो, कहां हो? हो-चि का कु-चि और हिलोल के लिए दिया गया है।जेएनयू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष वीर भारत तलवार की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कमिटी ने सुरेन्द्र मनन का चयन इस सम्मान के लिए किया था। शहर के मिठनपुरा स्थित रायल पैलेस में आयोजित समारोह में लेखक को यह सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए सुरेन्द्र मनन ने कहा कि 80के दशक में वे चंडीगढ़ में थे। मित्रों के बीच साहित्य चर्चा होती रहती थी। वैचारिक मतभेदों के बाबजूद उनसे आत्मिक रिश्ता बना रहा। उन्होने अपने लेखन में भावुकता और रोमानियत को कभी फटकने नहीं दिया। वे अपने लेखन के आलोचक खुद रहे।
फिर ‘बहस’पत्रिका का कुछ समय तक सम्पादन किया। 1984 में दिल्ली आ गए।दिल्ली में उस समय सिक्ख विरोधी आंदोलन चरम पर था। वहां दंगे के नाम पर जो खून खराबा देखा, उससे भाईचारे जैसे शब्द का खोखलापन उनकी समझ में आ गया। फिर शब्द की ताकत से उनका मोह भंगा हुआ और वे अभिव्यक्ति की सशक्त माध्यम की तलाश करने लगे।उनकी वह तलाश डाक्युमेंट्री फिल्म में पूरी हुई। फिर विदेश यात्रा की। इस तरह हिंदी लेखकों की दुनिया से बाहर की नई दुनिया में आए।
इन यात्राओं से उन्हें अनुभव का विशाल भंडार मिल गया। पुनः लेखन की शुरुआत हुई। उनकी पुस्तक अहमद अर-हलो, कहां हो, हो-चि का कु-चि और हिलोललेखक की इसी वैश्विक यात्रा का लेखा जोखा है। उन्होंने कहा कि उनकी पुस्तकें न कहानी है, न संस्मरण है और न आत्म कथा है।यह तीनों का सम्मिलित रूप है। अपनी हिलोल पुस्तक की चर्चा करते हुए लेखक ने कहा कि यह पुस्तक उनकी डेढ़ साल की खोजी यात्रा का परिणाम है। 1946 के नौसेना विद्रोह ,जिसकी चर्चा आजादी आंदोलन के इतिहास में कहीं नहीं है, पर आधारित है।उनकी दूसरी पुस्तक अहमद अल-हलो, कहां हो? विश्व के शरणार्थियों की करुण गाथा है तो हो-चि का कु-चि अमरीकी साम्राज्यवादियों से बर्षों तक युद्ध लडने और उन्हें अंततः:धूल चटा देने वाली वियतनामी जनता की अपनी मातृभूमि के प्रति भक्ति और वीरता की कहानी है।
साहित्यकार प्रेमकुमार मणि ने अपने संक्षिप्त संबोधन में लेखक की तीनों पुस्तकों की चर्चा करते हुए उसे निश्चित रूप से पढ़ने की अपील की। जे एन यू के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष वीर भारत तलवार ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि सुरेन्द्र मनन के संबोधन के बाद इस विषय पर कहने को शेष कुछ नहीं रह गया है। लेखक ने हिंदी कथा साहित्य से बाहर निकल कर एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य स्थापित किया है। उनकी किताबें मनुष्यता पर सवाल खड़ी करती हैं। अल्पसंख्यक, फिलीस्तीन, ईसाई, आर्मेनियाई लोगों पर जो अत्याचार हो रहे हैं, वह शर्मनाक है कार्यक्रम का संचालन अयोध्या प्रसाद स्मृति समिति के संयोजन वीरेन नन्दा एवं धन्यवाद ज्ञापन कामेश्वर प्रसाद ने किया।