मुजफ्फरपुर/बिफोरप्रिंट/ब्रह्मानन्द ठाकुर : इसे कहते हैं ‘सिर मुडाते ओले पडना । भीआइपी सुप्रिमो मुकेश सहनी के साथ ऐसा ही हुआ है। भाजपा को मुकेश सहनी का यूपी चुनाव मे दिया घाव अभी ताजा ही था कि बोचहा विधानसभा उप चुनाव में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ अपना उम्मीदवार खडा कर उन्होने उस घाव पर नमक छिडक दिया।
शायद उन्हे मालूम नहीं था कि भाजपा के नेता नहला पर दहला भी मारना जानते हैं। वह राजनीति में किसी को फर्श से अर्श पर पहुंचा सकती है तो अर्श से पुन: फर्श पर ला देने मे भी उसे कोई हिचक नहीं होगी। और , ऐसा ही हुआ भी। अपनी जिद पर अडे भीआइपी सुप्रिमों मुकेश सहनी ने बोचहा सीट से आज रमई राम की बेटी गीता कुमारी को भीआइपी उम्मीदवार के रूप मे नामांकन क्या कराया , अपनी पार्टी के तीन विधायक गंवा बैठे और अपने मंत्री की कुर्सी भी खतरे मे डाल ली। उनके तीनो विधायकों ,स्वर्णा सिंह ,मिश्रीलाल यादव और राजु कुमार सिह ने भीआइपी से इस्तीफा कर भाजपा का दामन थाम लिया।अब मुकेश सहनी का मंत्री पद भी खतरे मे है।
उत्तरप्रदेश चुनाव ने लिख दी थी पटकथा ।
एक खास जाती की राजनीति करनेवाले मुकेश सहनी को आज बड़ा झटका लगा है। कल तक बिहार सरकार गिराने का दावा करनेवाले मुकेश सहनी के पास आज की तारीख में एक भी विधायक नही है ।
। जिस तरह एक कहानी प्रचलित है कि कालिदास जिस डाल पर बैठे हुए थे उसी डाल को काट भी रहे थे। ठीक उसी तरह एनडीए के रहमो करम पर मंत्री बने मुकेश सहनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी अधिक हो गई कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में उन्होंने सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे डाली वे यह भूल गये कि इसी भाजपा ने उन्हें विधानसभा चुनाव मे अपने कोटे से 11 सीट दिया था जिसमे तीन सीटों पर ही उनके प्रत्याशी जीत पाए थे।
हद तो तब हो गई जब उत्तर प्रदेश के चुनाव में उन्होंने अखबार के प्रथम पृष्ठ पर अपने उम्मीदवार को जिताने के अलावे भाजपा उम्मीदवारों को हराने की चर्चा कर दी । उत्तर प्रदेश के लिए दिए गए अपने बयानों में मुकेश सहनी ने खुलकर योगी आदित्यनाथ का विरोध किया था।
यह सर्वविदित है कि भाजपा के अंदर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद यदि कोई फायर ब्रांड नेता है तो वह भाजपा के योगी आदित्यनाथ ही है । उत्तर प्रदेश चुनाव में मुकेश सहनी के इस मनमानीपन को बिहार भाजपा बर्दाश्त नहीं कर पाई और निषाद समुदाय से ही आने वाले मुजफ्फरपुर के सांसद बिहार भाजपा के उपाध्यक्ष अजय निषाद ने खुलकर मुकेश सहनी का विरोध करना शुरू कर दिया ।अजय निषाद ने सीधे तौर पर मुकेश सहनी पर हमला बोला और यह घोषणा कर दिया कि मुकेश सहनी एनडीए के हिस्सा नहीं रहे ।
इतना होने के बाबजूद भी मुकेश सहनी अजय निषाद के इशारों को नहीं समझ सके और उन्होंने अजय निषाद की तुलना भाजपा के 12 करोड़ कार्यकर्ताओं में से एक कार्यकर्ता की हैसियत से कर दी। मुजफ्फरपुर में पत्रकारों से बात करते हुए मुकेश सहनी यह भूल गए कि पिछले चुनाव में भाजपा ने अपने कोटे से उनको टिकट दिया था । मुजफ्फरपुर समाहरणालय में पत्रकारों को उन्होंने कहा कि एनडीए के नेता तो नीतीश कुमार है ,और हम नीतीश सरकार के मंत्री हैं। हमारे एनडीए. में रहने या नहीं रहने का फैसला नीतीश कुमार करेंगे।
गौरतलब है कि खुद नीतीश कुमार भाजपा के वादों के अनुसार मुख्यमंत्री बने , ना कि अपने विधायकों के संख्याबल के हिसाब से । यदि दूसरे शब्दों में देखा जाए तो बिहार एनडीए में भाजपा ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का पद सौंपा था । हालांकि यह भी सत्य है कि नीतीश कुमार ने यह कभी मांग नहीं की थी कि मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाए ।
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश चुनाव में जदयू ने अपना उम्मीदवार उतारा पर उनके किसी भी नेता ने अपने भाषणों में भारतीय जनता पार्टी या योगी आदित्यनाथ का खुलकर विरोध नहीं किया । नतीजा यह हुआ कि जदयू के साथ तो भाजपा के अच्छे संबंध रह गए पर मुकेश सहनी भाजपा के निशाने पर आ गए। इधर बार-बार सरकार गिराने की धमकी को बिहार भाजपा बहुत ही गंभीरता से ले रही थी और अंदर खाने में भाजपा ने खेला रच दिया ।
बुधवार के दोपहर का समय था जब मुजफ्फरपुर में बोचहा विधानसभा उपचुनाव के नामांकन के लिए उपमुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद, रेनू देवी, संजय जयसवाल सहित बिहार भाजपा के तमाम बड़े नेता एक ही मंच पर मौजूद थे। कार्यक्रम चल रहा था और भरे मंच से बिहार के उपमुख्यमंत्री ने यह कहा कि बोचहाँ विधानसभा उपचुनाव का रिजल्ट बिहार की राजनीति में एक नया आयाम स्थापित करेगा ।
उसी मंच से बिहार के उपमुख्यमंत्री तारकेश्वर प्रसाद ने यह भी कहा है की शाम 4:00 बजे हम लोगों को बिहार विधानसभा के अध्यक्ष से मिलना है । लेकिन उन्होंने कारण बताते हुए केवल इतना कहा की विधानसभा का सत्र चल रहा है इसलिए हम लोग का वहां रहना जरूरी है ।
अब जब मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के तीनों विधायक राजू सिंह, मिश्री लाल यादव और स्वर्णा सिंह ने बिहार विधानसभा के अध्यक्ष को लिखित रूप से यह सूचना दे दी है कि हम लोगों ने विकासशील इंसान पार्टी से त्यागपत्र दे दिया है,और भारतीय जनता पार्टी में चले गए हैं ।
शायद उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने इशारों इशारों में तो सब कुछ बयां कर ही दिया था । पर उनकी बातों में स्पष्टता इसलिए नहीं थी की वीआईपी के तीनों विधायक उस वक्त तक इस्तीफा नहीं दिए थे । अब रही मुकेश सहनी की बात तो मुकेश सहनी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को इतना अधिक बढ़ा लिया कि वह जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काटने चले गए ।
विधानसभा चुनाव के दौरान भी मुकेश सहनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का ही परिणाम था कि राष्ट्रीय जनता दल के साथ रहने के बावजूद अंतिम समय में मुकेश सहनी ने भरी सभा में राजद का साथ छोड़ा और यह आरोप लगाया कि राष्ट्रीय जनता दल ने मेरी पीठ में छुरा भोंकने का काम किया है।
बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव के दौरान मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव के सामने यह शर्त रख दी कि मुझे उपमुख्यमंत्री का पद , बिहार में विधानसभा की 21 सीट के साथ एमएलसी के लिए 2 सीट भी चाहिए। राजद को नए रूप में पेश करनेवाले तेजस्वी यादव मुकेश सहनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भांप चुके थे ,और उन्होंने मुकेश सहनी को अधिक तवज्जो नहीं दिया।
नतीजा भरी सभा से उठकर मुकेश सहनी भाजपा की शरण में आ गये। यह वह दौर था जब बिहार में दो छोटी-छोटी पाटिया हम और वीआईपी बिहार एनडीए का हिस्सा बनने को तैयार हुए । जनता दल यूनाइटेड के कोटे में हम पार्टी गई , तो भारतीय जनता पार्टी के कोटा में मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी आई । कहने का अर्थ यह है कि हम को जो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी है उसे नीतीश कुमार के पार्टी जदयू ने अपने कोटे की सीट दी । वहीं दूसरी ओर विकासशील इंसान पार्टी को जो भी 11 सीटें मिली , वह 11 सीटें भाजपा ने अपने कोटे से दी थी ।
मुकेश सहनी ने 11 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा पर उन्हें केवल 4 सीटों पर जीत हासिल हुई । यह संयोग की बात है कि मुकेश सहनी के चारों जीते हुए उम्मीदवारों में से तीन उम्मीदवार भारतीय जनता पार्टी के चेहरे थे । जबकि बोचहाँ सीट से मुसाफिर पासवान को विजय प्राप्त हुई थी । जो पहले कभी राजद से नाता रखते थे ।
एक ओर मुकेश सहनी इन चारों सीटों की जीत को अपनी जीत समझ रहे थे तो दूसरी तरफ भाजपा इसे मोदी लहर का परिणाम मान रही थीं। उत्तर प्रदेश का चुनाव मुकेश सहनी के लिए एक तरह से कहर बनकर टूटा और उसी चुनाव के दौरान ही बिहार भाजपा ने मुकेश सहनी के बाकी तीनों विधायकों के साथ खेला कर दिया। मुकेश सहनी शायद इस परिस्थिति के लिए तैयार नहीं थे। या उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिन विधायकों के सहारे वह बिहार सरकार के टिके होने का दावा कर रहे थे आज वही तीनों विधायक उनके हाथ से निकल जायेंगे । आज मुकेश सहनी की राजनीति गाड़ी के चारों पहियों में से एक भी पहिया उनके पास नहीं है । और उनकी राजनीतिक गाड़ी बगैर पहिया के बिहार में बीच सड़क पर फंस चुकी है।