Muzaffarpur : दिवाली पर विशेष

मुजफ्फरपुर

Brahmanand Thakur : आदि मानव जब घटाटोप अंधकार से व्याकुल हो रहा होगा, तभी उसके मुंह से निकला होगा ‘तमसो मां ज्योतिर्गमय। ‘ तब से आज तक अंधकार के विभिन्न प्रतीकों से रुबरु होता, जूझता मानव समाज प्रकाश की खोज में अनवरत प्रयास रत है। अंधकार चाहे अशिक्षा का हो, ग़रीबी, भूखमरी बेरोज़गारी की हो या समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता, कुरीतियों की हो, उसे दूर करने की चाहत मनु की संतान को तब भी थी और आज भी है।जबतक इच्छित लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती, अंधकार से लडने का बहुसंख्यक मानव समुदाय का संघर्ष जारी रहेगा। इसी अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व दिवाली पर लिखी कवि गोपालदास नीरज की कविता यहां प्रस्तुत है।

ब्रह्मानन्द ठाकुर

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।