संजय पंकज की कविता नये विचारों का पल्लवन करती है महेन्द्र मधुकर
Muzaffarpur/Brahmanand Thakur: बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में चर्चित कवि गीतकार डॉ संजय पंकज के नवगीत संग्रह ‘बजे शून्य में अनहद बाजा’ के लोकार्पण समारोह में अध्यक्षीय संबोधन में डॉ महेंद्र मधुकर ने कहा कि अप्रतिम शब्द साधक डॉ संजय पंकज साहित्य के क्षेत्र में एक जाना सुना नाम है। इनके गीत विमुग्ध करते हैं, इनकी कविताएं नए विचारों का पल्लवन करती हैं, इनके आलेख सहृदय पाठक को कुछ नया सोचने पर बाध्य कर देते हैं। इनका यह ताजा गीत संग्रह कबीरा की लोक चेतना से संपन्न समसामयिक मनोभावों का मोहक स्तबक है। इन पचपन गीतों में रहस्य है, लोक राग है, वर्तमान का ताप है, मन की विकलता और टूटन है, भूख और त्रासदी है यों कहें एक बड़े पैमाने पर जीवन के सत्य का परीक्षण है।
यह संग्रह समय के दस्तावेज की तरह काव्य भाषा के उन्मद प्रवाह के रूप में सामने आया है जो गीतों के बने बनाए ढांचों को तोड़ता चलता है। भाषा की रवानी में शब्दों का दुहराव एक ध्वन्यात्मक प्रभाव की सृष्टि करते हैं। विषय प्रस्तावना और स्वागत संबोधन में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सतीश राय ने कहा कि आज के जटिल समय में गीतों की वापसी हो रही है। गीतों को जन-जन तक पहुंचाने में जिन गीतकारों की अग्रणी भूमिका है उनमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण नाम डॉ संजय पंकज का है। नादात्मक सौंदर्य, संवेदना की गहराई और बिंबधर्मी भाषा के सार्थक संयोग से इनके गीतों में वह शक्ति आ गई है जो किसी को भी सम्मोहित कर सकती है।
निसंदेह डॉ पंकज वर्तमान दौर के प्रयोगधर्मी और पांक्तेय गीतकार हैं। संग्रह का शीर्षक व्यंजनापूर्ण है और वह सिद्ध करता है कि गीतकार लोक और अध्यात्म दोनों की गहरी साधना और पहचान में लीन है। इस संग्रह के नवगीत ताजगी से परिपूर्ण हैं और वे पाठकों के साथ सीधे रचनात्मक संवाद करते हैं।डॉ रवीन्द्र उपाध्याय ने कहा कि डॉ पंकज का यह सर्वश्रेष्ठ गीत संग्रह है। इसमें उनकी प्रौढ़ि का पूरा पता मिलता है। निश्चित रूप से आधुनिक गीत की परंपरा में एक अलग दीप्ति रखता है यह संग्रह। दरअसल पंकज जी न तो वाद के कवि हैं,न तो विवाद के कवि हैं वे संवाद के कवि हैं।
उनकी यह संवादधर्मिता संग्रह के अनेक गीतों में संप्रेषण की नई राह दिखाती है। आग समय में राग का गीत रचता हुआ बजे शून्य में अनहद बाजा का कवि करुणा का वाहक है। डॉ पूनम सिन्हा ने कहा कि संजय पंकज की सद्यः प्रकाशित रचना ‘ बजे शून्य में अनहद बाजा’ प्रौढ़ एवं पठनीयता से भरपूर नवगीत संग्रह है। आज के विडम्बनापूर्ण समय में यह संग्रह जातीय समृतियों एवं लोक सुलभ सहजता का संरक्षणीय उपक्रम है। प्रेम, पर्यावरण एवं जीवन तत्वो से भरपूर यह संकलन जीवन के प्रति आशा एवं आस्था जगाता है। कवि को उन स्रोतों का पता है जहाँ से जीवन प्राप्त किया जाता है।
कथाकार और कवयित्री डॉ पूनम सिंह ने कहां कि संजय पंकज का कविकर्म जनपक्षधर जीवनानुभवों से संपृक्त और लोक चेतना से समृद्ध है। वे जीवन मूल्यों के गीतकार हैं। उनके गीतों में मूल्यधर्मी चेतना और कबीरी मिजाज है। उनकी संवेदना में मां शाश्वत और शब्दातीत है। चुप्पियों के संत्रास में वह राग भैरव गाने वाले अपने समय के महत्वपूर्ण गीतकार हैं। अपने कई गीतों की प्रस्तुति के बाद डॉ संजय पंकज ने भावुकता भरे स्वर में कहा कि मेरा यह गीत संग्रह मानवीय सरोकार की संवेदनशीलता को लय- विस्तार देने का विनम्र प्रयास है।
जीवन के आरोह अवरोह और संघर्ष के बहुकोणीय आयाम इन गीतों में मिलेंगे। शब्द और छंद को भावों के अनुरूप साधते हुए मैंने समय की त्रासदी को स्वर दिया है। प्रतिरोध और प्यार इन गीतों में आपको मिलेंगे ऐसा मेरा विश्वास है। मैं संदर्भों को अपने भीतर रचाता पचाता हूं फिर उसे अभिव्यक्त करता हूं। इस अवसर पर डॉ वीरेंद्र नाथ मिश्र, डॉ सुशांत, डॉ उज्ज्वल, डॉ श्रीनारायण प्रसाद सिंह, डॉ पुष्पेंद्र, श्यामल श्रीवास्तव,विमल कुमार परिमल, रामभद्र, राजीव कुमार पंकु, विशाल कुमार, अविनाश तिरंगा, एचएल गुप्ता, कुमार विभूति, सुनील गुप्ता डॉ केशव किशोर कनक, चैतन्य कुमार आदि के साथ ही छात्र-छात्राओं और साहित्य प्रेमियों की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही।लोकार्पण समारोह का संचालन डॉ संध्या पांडेय और धन्यवाद ज्ञापन डॉ वंदना विजयलक्ष्मी ने किया।