मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर।. पांच राज्यों में सम्पन्न हुए विधान सभा चुनावों के बाद से अब तक केंद्र सरकार ने लगातार 12 वीं बार डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाए हैं। महामारी और लॉक डाउन के पिछले दो वर्षों में बेरोज़गारी चरम पर पहुँच गयी है, ऐसे में ईंधन के दाम को बढ़ाना – जिससे खाद्य पदार्थों के दाम भी निश्चित ही बढ़ेंगे – देश के ग़रीबों के साथ क्रूर मज़ाक़ है।
मूल्य वृद्धि को तुरंत वापस लेने के सवाल पर भाकपा माले द्वारा 7-13 अप्रैल तक एक सप्ताह का देश व्यापी अभियान चलाया जाएगा। केन्द्रीय कमिटी के प्रस्ताव मे कहा गया है कि सफल आम हड़ताल पर हम देश के मज़दूरों और चार किसान विरोधी क़ानूनों को वापस करवाने में सफल ऐतिहासिक आंदोलन के लिए देश के किसानों को बधाई देते हैं।
आगे न्यूनतम सहयोग मूल्य की माँग और लेबर कोड क़ानून की वापसी आदि के सवालों पर किसान और मज़दूर आंदोलनों के नए अध्याय की तैयारी के लिए हम संकल्प लेते हैं। असेम्बली चुनावों के बाद विपक्ष शासित राज्यों में भ्रष्ट तरीक़ों से सरकार गिराने और यहाँ तक कि ऐसे एनडीए शासित राज्यों में ग़ैर भाजपा नेतृत्व की बजाय सीधे भाजपा का शासन लाने की साज़िशें देखी जा रही हैं। लोकतंत्र को हड़प लेने की ऐसी साज़िशों का हम पुरज़ोर विरोध करते हैं।
यूक्रेन से लौटे छात्रों के भविष्य के प्रति मोदी सरकार की उदासीनता की हम कड़ी निंदा करते हैं और माँग करते हैं कि सरकारी खर्चे पर इन छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने और डिग्री पाने के लिए कदम लिए जाएँ। देश में बेरोज़गारी लगातार बढ़ती ही जा रही है। मोदी सरकार इसके लिए सीधे ज़िम्मेदार है जो रोज़गार सृजन की बात तो दूर, रिक्त सरकारी पदों को भरने के लिए पारदर्शी प्रणाली तक नहीं लाई है। हम बेरोज़गार नौजवानों के आंदोलनों का गर्मजोशी से समर्थन करते हैं और मनरेगा की तर्ज पर शहरी मजदूरों के लिए भी रोज़गार योजना की माँग करते हैं।
यूक्रेन में रूसी सेना द्वारा बड़ी संख्या में नागरिकों के जनसंहार करने और मृतकों के शवों को सामूहिक क़ब्रों में दफनाए जाने की बेहद चिंताजनक खबरें आ रही हैं। मोदी सरकार द्वारा पुतिन के इस सैन्य आक्रमण का मौन समर्थन शर्मनाक है, हम भारत की जनता से यह आह्वान करते हैं कि वह अपनी आज़ादी को बचाने के लिए संघर्षरत यूक्रेन की जनता के समर्थन में खड़ा होकर मोदी सरकार पर यह दबाव बनाए कि वह युद्ध पर रोक लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाते हुए कूटनीतिक पहल ले।
.श्रीलंका में बढ़ती महंगाई, बिजली में कटौती, बेरोज़गारी और गहरे आर्थिक संकट के ख़िलाफ़ चल रहे जन उभार और जन आंदोलन के साथ हम एकजुटता व्यक्त करते हैं और इस आंदोलन पर दमन के लिए आपातकाल की घोषणा की निंदा करते हैं। भारत से रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजा जाना अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों का घोर उल्लंघन है। इन क़ानूनों के अनुसार किसी भी शरणार्थी को ऐसे देश में वापस नहीं भेजा जा सकता है जहां उसकी जान ख़तरे में हो, म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय की नागरिकता छीनी जा चुकी है।
राज्य प्रायोजित जनसंहार से बचने के लिए ही रोहिंग्या म्यांमार छोड़कर भारत में शरण ले रहे हैं. इन्हें भारत सरकार द्वारा फिर जनसंहार की आग में झोंक देना शर्मनाक है। अफ़ग़ानिस्तान हो या म्यांमार – पड़ोसी देशों के मुस्लिम शरणार्थियों के साथ मोदी सरकार द्वारा सीएए क़ानून के तहत किए जा रहे भेदभाव का विरोध करते हुए हम यह माँग करते हैं कि भारत रोहिंग्या शरणार्थियों के सम्मान और सुरक्षा की गारंटी करे.।