Brahmanand Thakur: फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी कहानी व उपन्यास के क्षेत्र के एक नई धारा के जनक हैं जिसे आंचलिक कथा साहित्य कहते हैं। इनके पूर्व शिवपूजन सहाय, प्रेमचंद्र, रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे महान साहित्यकारों ने ग्राम्यांचल से संबद्ध कहानी व उपन्यास लिखे, किंतु उसमें पूर्ण आंचलिकता नहीं आ पाई थी। रेणु ने एक अंचल विशेष को नायकत्व प्रदान कर दिया। जिसमें सारी घटनाएं- परिस्थितियां उसी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हुए प्रतीत होती है। साहित्य भवन कांटी में फणीश्वरनाथ रेणु जयंती समारोह को सम्बोधित करते हुए चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने ये बातें कही। कार्यक्रम का शुभारंभ रेणु की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुआ।
नूतन साहित्यकार परिषद की ओर से आयोजित समारोह में चंद्र ने कहा कि रेणु ने धूल-धूसरित व कीचड़ -युक्त माटी में उपजे फूल व फूल की अनुभूतियों को साहित्य में पिरो कर अंचल के जीवन व उसकी संस्कृति को जीवंत किया है। रेणु के उपन्यास पर बनी प्रसिद्ध फिल्म तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम के बारे में कहा कि अब तक जितनी भी प्रेम कहानियों पर आधारित फिल्में बनी, तीसरी कसम इनमें सबसे अलग है। इस कहानी के मूल पत्र हीरामन व हीराबाई हैं यानी राज कपूर व वहीदा रहमान। स्वराजलाल ठाकुर ने रेणु की जीवन यात्रा के बारे में कहा कि रेणु के जीवन का प्रारंभ राजनीति से हुआ। लेकिन अस्वस्थता व राजनीति के गंदे दांवपेच ने इन्हें साहित्य की ओर प्रेरित किया।
चंद्रकिशोर चौने ने कहा कि आंचलिक भाषा में रेणु ने लिखना प्रारंभ किया। अंत-अंत तक कालजायी कहानियां कालजयी उपन्यास इन्होंने आंचलिक भाषा में ही लिख डाले,जो अपने में अद्वितीय है। हर्षवर्धन ठाकुर ने कहा कि आंचलिक भाषाओं के शब्दों का इन्होंने खुलकर प्रयोग किया। जैसे लालटेश,खाटवास (अनशन के लिए) फेनू गलासी आवाज, दो मुट्ठी जलपान इत्यादि अनेक शब्द हैं, जो किसी डिक्शनरी में संभव नहीं है। राकेश कुमार राय ने कहा कि रेणु के कर्म व शब्द का भावात्मक संबंध कोसी के कछार पर बसे पूर्णिया की माटी से है।
परशुराम सिंह ने कहा कि कोशी के समाज, इतिहास, संस्कृति, राजनीति, बोली, भाषा, मुहावरा व देशज पात्रों के अलावा प्राकृतिक विपदा आदि के दंश को रेणु ने अपने साहित्य में दर्ज किया है। अनिल कुमार अनल ने कहा रेणु के प्रारंभिक जीवन के बारे के कहा कि फारबिसगंज के औराही हिंगना गांव में चार मार्च 1921 को जन्मे फणीश्वर नाथ रेणु के बचपन का नाम रिनुआ था। परिवार का कर्ज में डूबा होने के कारण इनका यह नाम पडा। वे कुशाग्र बुद्धि के थे। इनके बचपन की शिक्षा गांव में हुई। बाद में इन्होंने नेपाल में जाकर कोईराला परिवार में रहकर शिक्षा ग्रहण की। इस अवसर पर विद्याभूषण झा, नंदकिशोर ठाकुर, मनोज मिश्र, रोहित रंजन, महेश प्रसाद भी थे।