मुजफ्फरपुर : संस्कार और संस्कृति के साधक महाकवि थे राकेश : संजय पंकज

मुजफ्फरपुर

मुजफ्फरपुर/ब्रह्मानन्द ठाकुर। छायावाद के अवसान के साथ ही उत्तर छायावाद के अग्रणी कवि के रूप में राम इकबाल सिंह राकेश का जो महत्वपूर्ण स्थान है वह उनके भाववैभव के कारण है।

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भाषासमृद्ध, परंपरानिष्ठ और प्रगतिशीलता से भरे हुए महाकवि राकेश का रचना-संसार शौर्य, पराक्रम और ओज से युक्त है। यद्यपि घोषित रूप से उन्होंने किसी महाकाव्य का सृजन नहीं किया लेकिन कई कविताओं में महाकाव्यात्मक औदात्य है। यह बातें राम इकबाल सिंह राकेश स्मृति समिति के तत्वावधान में आमगोला स्थित शुभानंदी में आयोजित स्मृतिपर्व की विचार गोष्ठी में डॉ संजय पंकज ने विषय प्रवर्तन करते हुए कही।

डॉ पंकज ने आगे कहा कि अपनी अनेक कृतियों के कारण वे हिंदी जगत में सम्मानित हुए ऐसी बात नहीं है बल्कि उन कृतियों के स्थाई मूल्य और जीवन सौंदर्य के कारण आज भी उनकी रचनात्मकता चर्चित, अनुकरणीय और प्रेरक हैं।एक स्वाभिमानी और समयसजग कवि थे महाकवि राकेश। संस्कार और संस्कृति के साधक कवि राकेश की कई रचनाएं कालजयी हैं।

राकेश जी के चित्र पर पुष्प माला अर्पित करने के उपरांत उनके जामाता ब्रजभूषण शर्मा ने अपने स्वागत संबोधन में कहा कि मैंने उनके साथ अनेक साहित्य की यात्राएं की हैं,जिससे मुझे बड़े रचनाकारों को नजदीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। राकेश जी कभी भी सौंदर्य के स्तर पर सतही नहीं हुए।उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक भी अपनी पांडुलिपि और संग्रहित पुस्तकों की चिंता व्यक्त की।

अध्यक्षता करते हुए कवि-गीतकार डॉ विजय शंकर मिश्र ने कहा कि राकेश जी की कविताओं पर दूसरी भाषाओं के बड़े रचनाकार का भी प्रभाव परिलक्षित किया जा सकता है।वह बहुभाषाविद तथा विभिन्न भाषाओं के साहित्य का गंभीर अध्ययन करने वाले एक बड़े रचनाकार थे। जिस रचनाकार की संस्कृति लोक से संचालित होती है वह कभी भी मूल्यहीन नहीं होता है। राकेश जी की लोकचेतना और उनकी लोक समझदारी पराकाष्ठा पर दिखती है।

भोजपुरी और हिंदी के गीतकार डॉ केशव किशोर कनक ने कहा कि राकेश जी की रचनाएं तात्कालिता नहीं बल्कि स्थाई मूल्य और शाश्वत चिंतन की हैं। मैंने राकेश जी की कविताओं पर शोध किया है। वे मानवतावाद के महाकवि हैं। शिक्षाविद मधुमंगल ठाकुर ने कहा कि राकेश जी का कवित्व उनकी साधना की महती उपलब्धि है। वरिष्ठ कवि नरेंद्र मिश्र ने कहा कि लोक और प्रकृति के मर्मज्ञ कवि राकेश जी में ग्रामीण सादगी, निर्भीकता और इमानदारी थी।

समाजसेवी संजीव साहु ने कहा कि मैं राकेश जी का पड़ोसी होने के कारण अक्सरहां उनसे मिलने जाता था। वे साहित्य और लोक की खूब बातें करते थे। डॉ संगीता साह ने कहा कि राकेश जी मूल्य, मानवीयता और संस्कृति के कवि थे। उनकी कविताओं में अध्यात्म का सहज समावेश है। सीता, सरस्वती और काली पर अद्भुत कविता है उनकी। संस्कृतिकर्मी कुमार विभूति ने कहा कि राकेश जी संगीत के जानकार थे। उनके गीत राग रागिनीयों के अनुशासन में हैं।

गोष्ठी में अन्य उद्गार व्यक्त करने वालो में प्रेमभूषण, युवा रंगकर्मी प्रमोद आजाद, प्रणय कुमार, राकेश कुमार, नम्रता सिन्हा,माला कुमारी, युवा संस्कृतिकर्मी चैतन्य चेतन,अनुराग आनंद, वंदिनी, प्रेरणा भारती, कृशानु , शांतनु,रमण, चंद्रशेखर प्रसाद सिंह,अभिषेक अंजुम आदि महत्वपूर्ण थे। संचालन डॉ केशव और धन्यवाद ज्ञापन प्रमोद आजाद ने किया।आयोजन के प्रारंभ में राकेश जी की हिमालय अभियान कविता का ओजस्वी पाठ प्रस्तुत किया गया।