मुजफ्फरपुर/बिफोरप्रिंट। तुझ सा लहरों में बह लेता,तो मैं भी सत्ता गह लेता..ईमान बेचता चलता तो मैं भी महलों में रह लेता, मेरा धन है स्वाधीन कलम…,बदनाम रहे बटमार मगर,घर तो रखवालों ने लूटा..। इन चर्चित कविताओं के लेखक गोपाल सिंह नेपाली की जयंती शुक्रवार को नूतन साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कांटी में मनाई गई।
साहित्य भवन में आयोजित जयंती समारोह को संबोधित करते हुए परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने कहा कि गीतों के राजकुमार नेपाली कलम की स्वाधीनता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। उनकी कविताओं में राष्ट्रवादी चेतना कूट-कूट कर भरी है।
नेपाली के गीतों में सरसता व सहजता में साथ लोक-संस्कृति से परिपूर्ण संगीत है। पश्चिम चंपारण के बेतिया में जन्मे गोपाल सिंह नेपाली के बचपन का नाम गोपाल बहादुर सिंह था। उत्तर छायावाद के जिन कवियों ने अपनी कविताओं व गीतों की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया,उनमें नेपाली का नाम अगली पंक्ति में शामिल है।
चंद्र ने कहा कि हिंदी व नेपाली भाषा साहित्य में कवि नेपाली ने देश प्रेम,प्रकृति प्रेम व मानवीय भावनाओं का सुंदर वर्णन किया है। उनकी रचनाओं में समर्पण की भावना भी है व मिलन की कामना भी, रूप का आकर्षण भी है,मन की विह्वलता भी,प्रतीक्षा की पीड़ा भी है व स्मृतियों का दर्द भी है।
सेवानिवृत शिक्षक स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि नेपाली की रचनाओं में समता मूलक समाज के निर्माण को लेकर आशावादिता है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी नेपाली की कविताओं की तारीफ की थी।गोपाल सिंह नेपाली ने ने करीब चार दर्जन फिल्मों के लिए 400 से अधिक गीत लिखें।
सेवानिवृत डीडीओ परशुराम सिंह ने कहा कि नेपाली शोषण मुक्त समाज के पक्षधर थे। सफल गीतकार और सफल संपादक भी थे। उनके जीवन में रहते वह सम्मान नही मिल सका जिसके वे हकदार थे। नेपाली शोषण मुक्त समाज की स्थापना के पक्षधर थे।
जयंती समारोह में उपस्थित साहित्यप्रेमियों ने नेपाली की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। समारोह में नंदकिशोर ठाकुर,राकेश कुमार राय, मनोज मिश्र, रजनीश कुमार,वसंत शांडिल्य,दिलजीत गुप्ता,महेश कुमार आदि थे।