Muzaffarpur/Brahmanand Thakur कवयित्री महादेवी वर्मा के काव्य में परम्परा और मौलिकता का अद्भुत समन्वय है। वे छायावाद की प्रमुख स्तंभ और आधुनिक काल की मीरा थीं। कवि निराला ने उन्हें हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती कहा है। ये बातें साहित्यकार चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने कहीं।वे आज कांटी के नूतन साहित्य परिषद द्वारा आयोजित महादेवी वर्मा की जयंती समारोह में बोल रहे थे।उन्होंने कहा , महादेवी ने भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार व रुदन को देखा, परखा व करुण -कातर भाव से लोगों को अंधकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और श्रृंगार से सजाया कि वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई।
नूतन साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने रविवार को कांटी स्थित साहित्य भवन में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि महादेवी के मन में प्राणियों के प्रति करूणा की प्रबल भावना थी, वहीं दूसरी ओर रेखा चित्र जैसे नवीन विधा की रचना प्रक्रिया को भी उन्होंने उद्घाटित किया। महादेवी ने भारत में महिला कवि सम्मेलन की नींव भी डाली। उनके काव्य में परंपरा व मौलिकता का अद्वितीय समन्वय नजर आता है। वे साहित्य अकादमी की सदस्यता प्राप्त करने वाली पहली लेखिका थीं।
स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि महादेवी वर्मा का जीवन हमेशा लेखन संपादन व शिक्षण के इर्द-गिर्द घूमता रहा। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार की जिम्मेवारी उस समय महिला शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम माना जाता था। वे इसकी प्राचार्या भी रह चुकी है। राकेश कुमार राय ने कहा कि 1923 में महादेवी ने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका चांद को संभाला। इनकी प्रिय सहेली प्रख्यात कवि सुभद्रा कुमारी चौहान थी।
1955 में महादेवी ने इलाहाबाद में साहित्यिक संसद की स्थापना की। इलाचंद्र जोशी की मदद से इसके प्रकाशन का संपादन किया। जयंती समारोह में उपस्थित साहित्यप्रेमियों व पत्रकारों ने महादेवी की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया। इनमें मनोज मिश्र, रोहित रंजन, दिलजीत गुप्ता,वसंत शांडिल्य आदि शामिल थे।