न कागज था, न रंग, मजदूरी करके सीखी पेटिंग, सीखने का जुनून हो तो साधनहीनता कोई बाधा नहीं : पद्मश्री दुलारी देवी

मुजफ्फरपुर

Muzaffarpur/Brahmanand Thakur: पद्मश्री दुलारी देवी ने कहा कि उनके पास न कागज था, न रंग, लेकिन पेटिंग करने की लालसा इतनी प्रबल थी कि मजदूरी करके पेटिंग सीखी। जीवन-यापन के लिए वे चित्रकार महासुंदरी देवी के यहां काम करती थीं। उनकी पेटिंग देख कर इनके मन में भी सीखने की इच्छा हुई। जब उनके यहां काम से छुट्टी मिलती तो वे महसुंदरी देवी को पेटिंग बनाते देखती। वे आज जिला स्कूल में आकृति रंग संस्थान की ओर से चल रहे मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय नाट्य मेला में पेटिंग प्रदर्शनी का उद्घाटन करने पहुंची थी। दुलारी देवी ने कहा कि महासुंदरी देवी पेटिंग की उनकी पहली गुरु थीं। उसके बाद उन्होंने पद्कमश्री कर्पूरी देवी से भी पेटिंग कला सीखी।

दुलारी देवी ने बताया कि अगर सीखने का जज्बा हो तो कोई भी किसी कला को सीख सकता है। आज तो सीखने के पर्याप्त संसाधन हैं। उन्होंने कहा कि जो युवा किसी कला में कुछ अच्छा करना चाहते हैँ तो उन्हें मेहनत करनी होगी, संघर्ष करना होगा तभी वे आगे बढ़ पायेंगे। जब तक आपके भीतर जुनून नहीं होगा, आप बेहतर नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि युवाओं को अच्छा करते देख खुशी होती है। मुजफ्फरपुर में नाट्य मेला का आयोजन बहुत बड़ी उपलब्धि है. मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय नाट्य मेले में कोलकाता से आये माइम थियेटर के जनक पद्मश्री निरंजन गोस्वामी ने कहा कि कला के लिए मुजफ्फरपुर की भूमि बहुत उर्वर है। यहां के दर्शक भी काफी अच्छे हैं। थियेटर को समझते है और इंज्वॉय करते हैं।

अपनी थियेटर यात्रा के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जब मैँने माइम को लेकर काम करना शुरू किया तो नाटक के विशेषज्ञों ने मजाक उड़ाया था। उनका कहना था कि यह पश्चिम की नकल है, लेकिन मैँने नाट्यशास्त्र को लेकर माइम को आगे बढ़ाया। नाटककार शंभु मित्रा, गोपाल चटोपाध्याय और सुरेश दत्ता मेरे गुरु रहे हैं। माइम को लेकर आगे बढ़ा तो थियेटर कर्मी जुड़ते गये। वर्ष 1966 से शुरू किया गया सफर आज भी जारी है। निरंजन गोस्वामी ने कहा कि उन्होंने इंडियन माइम थियेटर का एक ग्रुप बनाया और इसके माध्यम से माइम की प्रस्तुति होती रही। माइम की लोकप्रियता के सवाल पर उन्होंने कहा कि वक्त के साथ चीजें बदल रही है।

नाटक में अब माइम की एक अलग पहचान है। इसके शो हो रहे हैं। फेस्टिवल हो रहा है। थियेटर के विकास के सवाल पर उन्होंने कहा कि सबसे पहली जरूरत शहर में एक रंगशाला की होती है। कलाकार रिहर्लसर्ल और नाटक की प्रस्तुति कहां करेंगे? नगर निगम को इस पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आप अच्छा करेंगे तो दूसरी जगह से भी लोग आपके बुलायेंगे. यहां से सुनील फेकानिया हमारे फेस्टिवल में जाते हैं. निरंजन गोस्वामी ने कहा कि मुजफ्फरपुर पहली बार आया हूं।

यह लीची का शहर है. हमलोग कोलकाता में मुजफ्फरपुर की लीची का इंतजार करते हैं। दो-तीन दिन यहां हूं. इस बीच मुजफ्फरपुर को देखूंगा। इस अवसर पर अतिथियों ने कलाकारों द्वारा बनाये गये पेटिंग को देखा और तारीफ की।अतिथियों का परिचय आकृति रंग संस्थान के निदेशक सुनील फेकानिया ने कराया. इस मौके पर आयोजन कमेटी के मो इश्तेयाक, वीरेन नंदा, यशवंत पराशर मुख्य रूप से मौजूद थे।