–2023 तक खसरा -रुबेला को खत्म करने का रखा गया है लक्ष्य
Biharsharif/Avinash pandey: अक्सर देखा गया है कि बच्चों के शरीर पर लाल लाल चकते या दाने आने पर लोग इसे छोटी माता या दैवीय प्रकोप का लक्षण बता कर इसका इलाज कराने से परहेज करते और एक हप्ते तक इंतज़ार कर घरेलू नुस्खे आजमाते हैं। जबकि बच्चों के शरीर पर अचानक आए लाल दानों या चकतों को नजरअंदाज करना घातक हो सकता है, क्योंकि यह खसरा- रुबेला का लक्षण हो सकता है। इसलिए बच्चों के शरीर पर अचानक आए लाल दाने या चकते दिखाई देने पर तुरंत नजदीकी अस्पताल में जाकर जानकारी लें।
डॉक्टरों की मानें तो बच्चों के शरीर पर आए दाने कोई दैवीय प्रकोप नहीं होता बल्कि यह खतरनाक बीमारी खसरा है। इस बीमारी का समय से इलाज नहीं कराया जाए तो इससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है। खसरा और रुबेला से बचाव के लिए बच्चे के जन्म के पांच साल के भीतर दो टीका लगाए जाते हैं। जिसमें पहला टीका जन्म के नौवें महीने पर और दूसरा टीका जन्म के 16 से 24 महीना के बीच में लगाया जाता है।
गर्भस्थ बच्चों के लिए घातक है रुबेला
चिकित्सकों के अनुसार खसरा और रूबेला खतरनाक वायरल बीमारी है। यदि गर्भावस्था की पहली तिमाही में गर्भवती महिला रुबेला संक्रमित होती तो उस अवस्था में गर्भस्थ बच्चे की मृत्यु होने की संभावना ज्यादा रहती है। यदि बच्चा बच भी जाता तो वैसे बच्चे विकलांगता लेकर पैदा होते हैं । यदि बचपन में ही टीका पड़ा हो तो गर्भवती महिला को संक्रमित होने का खतरा कम रहता है।
यदि महिला गर्भवती होती है तो इस दौरान टॉर्च जांच के माध्यम से रुबेला संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। खसरा रुबेला बीमारी को लेकर लोगों की मानसिकता बदलनी होगी, क्योंकि आज भी खसरा होने पर लोग इसे दैवीय प्रकोप मानते और इसका इलाज नहीं करवाते हैं । इलाज न कराने के दौरान खसरा चार से पांच दिनों में सूख तो जाता है परंतु बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती जो उनके लिए जानलेवा साबित होती है।
लक्षण दिखने पर लें चिकित्सकीय परामर्श
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ राजेंद्र चौधरी ने बताया कि यदि बच्चों को बुखार के साथ शरीर पर लाल दाना दिखाई दे तो इसे खसरा का लक्षण समझें । ऐसी स्थिति में माता पिता तुरंत सरकारी चिकित्सकीय परामर्श लें। डीआईओ ने बताया कि वैसे बच्चों की जानकारी चिकित्सकों द्वारा जिला प्रतिरक्षण विभाग को दी जाती जहां से विशेषज्ञों की टीम घर जा कर जांच करती है। खसरा की पुष्टि होने पर इलाज शुरू कर परिजनों को विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। डॉ चौधरी ने बताया कि खसरा रुबेला को जड़ से खत्म करने के लिए 2023 तक का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने में जिला स्वास्थ्य समिति प्रयासरत है। साथ ही उन्होंने लोगों से भी अपील की है कि इस बीमारी को जड़ से मिटाने में सहयोग करें।