— छह माह के बाद शिशुओं के लिए पूरक आहार अनिवार्य
— शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए शुरुआती पोषण जरूरी
Biharsharif/Avinash pandey: बाल कुपोषण प्रारंभिक शारीरिक एवं मानसिक विकास में समस्या पैदा करने के साथ अन्य गंभीर रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी लाता है। इसका सीधा सा कारण यह है कि जीवन के प्रथम वर्ष के दौरान शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का विकास तेजी से होता है। इसके लिए 6 माह तक सिर्फ स्तनपान एवं उसके बाद शिशुओं के लिए पूरक आहार की अनिवार्यता बढ़ जाती है।
स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार है जरूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शिशु जन्म के एक घंटे के भीतर मां के गाढ़े पीले दूध में सर्वाधिक मात्रा में संक्रमण-रोधी तत्त्व मौजूद होता है। जिसे कॉलोस्ट्रम कहा जाता है। इसमें बड़ी मात्रा में विटामिन ए के साथ 10 प्रतिशत तक का प्रोटीन होता है जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम होता है। 6 माह तक शिशुओं को केवल स्तनपान कराया जाना चाहिए जिसमें माँ के दूध के अलावा कोई अन्य दूध, खाद्य पदार्थ, पेय पदार्थ और यहां तक पानी भी नहीं पिलाना चाहिए।
इससे बच्चा डायरिया, निमोनिया, अस्थमा एवं एलर्जी से बचा रहता है. साथ ही केवल स्तनपान कराने से शिशु मृत्यु दर में 4 गुनी कमी हो सकती है। छह माह के बाद केवल स्तनपान सेवन से अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है एवं अतिरिक्त ऊर्जा, प्रोटीन एवं पोषक तत्वों के लिए पूरक आहार का सेवन जरूरी हो जाता है।अनुपूरक आहार के साथ 2 साल तक स्तनपान भी जारी रखना चाहिए।
इसलिए जरूरी है पूरक आहार
छह माह तक शिशु का वजन लगभग दो गुना बढ़ जाता एवं एक वर्ष पूरा होने तक वजन लगभग तीन गुना एवं लम्बाई जन्म से लगभग डेढ़ गुना बढ़ जाती है। जीवन के दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से विकास होता है। इसके लिए अतिरिक्त पोषक आहार की जरूरत होती है। इसलिए 6 माह के बाद शिशुओं के लिए स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार देना चाहिए। स्तनपान के अतिरिक्त दिन में 5 से 6 बार खाना खिलाना चहिए।
पूरक आहार में इसे करें शामिल
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् से अनुशंसित राष्ट्रीय पोषण संस्थान(हैदराबाद)द्वारा जारी की गयी आहार दिशा निर्देश के अनुसार शिशु के लिए प्रारंभिक आहार तैयार करने के लिए घर में मौजूद मुख्य खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। सूजी, गेहूं का आटा, चावल, रागा, बाजरा आदि की सहायता से पानी या दूध में दलिया बनाया जा सकता है। बच्चे की आहार में चीनी अथवा गुड को भी शामिल करना चाहिए क्यूंकि उन्हें ऊर्जा की अधिक जरूरत होती है। 6 से 9 माह तक के बच्चों को गाढे एवं सुपाच्य दलिया खिलाना चाहिए। वसा की आपूर्ति के लिए आहार में छोटा चम्मच घी या तेल डालना चाहिये। दलिया के अलावा अंडा, मछली, फलों एवं सब्जियों जैसे संरक्षक आहार शिशुओं के स्वस्थ विकास में सहायक होते हैं।