नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बावजूद राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों के नामों की घोषणा नहीं किये जाने से 20 लाख मतदाताओं में निराशा व्याप्त है। मतदाताओ के साथ यह मजाक से कम नहीं है। जिले में पहले चरण में 19 को ही चुनाव होने वाला है, 20 मार्च से नामांकन शुरू हो गया है।
अबतक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है। टिकटें मिलने की आस में नेतागण तो उहापोह में हैं हीं मतदाताओं को भी समझ नहीं आ रहा कि यह कैसा मजाक है। स्थानीय दावेदारों की मांग को लेकर पहले से क्षुब्ध चल रहे मतदाताओं के अंदर गहरे असंतोष का आकलन किया जा रहा है।
स्थानीय नेताओं समेत अन्य लोगों के सामने भी विकट समस्या है कि अंतिम वोट जनता के पास है तो किस आधार पर चुनावी प्रचार की तैयारी करें तो कैसे करें? जब किसी को यह पता नहीं चलेगा कि टिकट किसने दिया है।
एन.डी.ए. गठबंधन हो या इंडिया गठबंधन, दोनों एक जैसे हैं। प्रमुख नेता दिल्ली से लेकर राजधानी पटना अपने अपने राजनीतिक आश्रमों के मुख्यालयों का चक्कर काट रहे हैं मगर कहीं से कोई पक्की सूचना नहीं मिल पा रही है।
ऐसी कौन सी मजबूरी है या फिर उन्होंने संसदीय क्षेत्र की हवेली को क्या समझा है? वोट देने योग्य और कर्मठ की अनदेखी कर जाति और पार्टी के नाम पर वोट देने वाले लोग कहीं ना कहीं इन जगहों के लिए जिम्मेवार हैं।
चुनाव के ठीक पहले उम्मीदवार के नाम की घोषणा की जाएगी और एक महीने से भी कम समय में जीत और हार का फैसला भी हो जाएगा।
जनता भी सारे गिले शिकवे भूलकर सिर्फ पार्टी का सिंबल देखकर वोट दे देंगे। अगर ऐसा ही हो रहा है तो विकास के मानकों पर पिछड़े जिलों और संसदीय क्षेत्रों की अनदेखी भी की जाएगी। यह बात दीगर है कि 1952 से लेकर अब तक हुये चुनाव के दौरान विकास और स्थानीय मुद्दा हर बार फीका पड़ जाता है और जातिगत कारक ही अंततः प्रभावशाली साबित होते हैं।