Nawada : सूर्योपासना का महापर्व छठ नहाए खाए के साथ आज होगा शुरू

नवादा
  • छठ वर्ती चार दिनों का करेंगे छठ पर्व
  • सूर्योपासना का महापर्व छठ नहाए खाए के साथ शुक्रवार से शुरू हो जाएगा
  • कद्दू और अगस्त के फूल का दाम छूआ आसमान
  • छठी मैया के गीतों से गूंजने लगा गली मोहल्ले और गांव
  • आस्था के पर्व में मिलता है स्वच्छता और शुद्धता का प्रमाण

Nawada, Dr. Pankaj Kumar Sinha: नहाए खाए के साथ शुक्रवार से सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ शुरू हो गया है। महापर्व छठ को लेकर घरों में छठी मैया के गीत गूंजने लगे हैं। इस पर्व में स्वच्छता और शुद्धता का खास ख्याल रखा जाता है। यही वजह है कि हर गांव, गली, मोहल्ला और पूरे गांव में स्वच्छता नजर आने लगता है। छठ को लेकर लकड़ी और दौरा की बिक्री भी तेज हो गई है। वही छठ के पहले दिन यहां नहाय खाय को लेकर बाजार में कद्दू और अगस्त के फूल का बाजार काफी गर्म रहा। आम दिनों से 10 गुना अधिक कीमतों पर कद्दू की बिक्री हुई, तो अगस्त के फूल की कीमत ₹500 किलो रहा इसके अलावा गोबर का कोई था। दूध की मांग भी बढ़ गई। हर तरफ लोग छठ की तैयारी में जुटे रहे।

छठ पर होती है साक्षात प्रकृति की पूजा

हिंदू धर्म में छठ पर्व ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें साक्षात प्रकृति की पूजा होती है। यही पर्व है जिसमें और अस्त होते भगवान भास्कर को अर्घ्य दान देने की परंपरा चली आ रही है। साक्षात प्रकृति की पूजा होने वाली इस व्रत को कष्टि भी कहा जाता है। इसमें खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद छठवर्ती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। जो आस्था का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में हर दिन का अलग अलग महत्व होता है। सूर्योपासना के इस महापर्व की शुरुआत शुक्रवार 28 अक्टूबर से शुरू होकर सोमवार 31 अक्टूबर तक पर्व मनाया जाएगा। इस व्रत का प्रथम दिन 28 अक्टूबर को नहाए खाए से शुरू हो गया। इस दिन छठ व्रती प्रातः काल स्नानादि कर अरवा चावल, चने की दाल, लौकी तथा अगस्त के फूल से विभिन्न व्यंजन तैयार करती हैं। भगवान सूर्य देव को जल अर्पित कर अपराध के निमित्त व्यंजन अर्पित करते हैं।

पूजा के बाद व्यंजन को सबसे पहले छठ व्रती ग्रहण करती है। फिर और इष्ट मित्रों को भी खिलाया जाता है। छठ के प्रारंभ के दूसरे दिन शनिवार 29 अक्टूबर को है। इस दिन प्रात काल स्नानादि से निवृत्त होकर दोपहर के बाद फिर से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर घर के किसी सुरक्षित स्थान पर खरना का प्रसाद बनाते हैं। आम की लकड़ी से अरवा चावल, गाय के दूध से खीर बनाते हैं। आटे की रोटी बनाई जाती है। इसके अलावा कुछ लोग सेंधा नमक से चावल और दाल भी बनाते हैं। परंपराओं के अनुसार विभिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। शांत भाव से छठी मैया और सूर्यदेव की पूजा की जाती है। इस प्रसाद को सबसे पहले छठव्रती ग्रहण करती है। इसके बाद इसे परिजन और मित्रजनों में बांटा जाता है।

रविवार 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा। इसे डाला छठ भी कहा जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त से पहले नित्यक्रम से निवृत्त होकर पूजा के निमित्त विभिन्न प्रकार के प्रसाद तैयार करती है। गेहूं तथा गाय के घी आदि से पकवान , चावल आटा ,गुड़ के लड्डू पकवान बनाया जाता है। इससे ढाला में सजाया जाता है। जिसे डलिया में रखकर नदी तालाब तथा अन्य दूसरे जलाशय तट पर ले जाकर वहां अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य दान किया जाता है।

सोमवार 31 अक्टूबर को उदयीमान सूर्यदेव को अर्पित किया जाएगा। इसे पारन भी कहा जाता है। छठ व्रती और श्रद्धालुओं पहले स्नानादि से निवृत्त होकर श्रद्धा के साथ डलिया सजाकर छठघाट ले जाते हैं। घाट पर छठ गीत गाते सूर्यदेव के उदय होने का इंतजार किया जाता है। भगवान भास्कर के उदय होते ही अर्घ्य दान अर्पण शुरू हो जाता है। इसके बाद उद्यापन की प्रक्रिया के साथ ही चार दिवसीय छठ व्रत का पारण महापर्व छठ संपन्न हो जाता है।