- बिल्ली को मिली दूध रखवाली की जिम्मेदारी
नवादा (रवीन्द्र नाथ भैया) जिले के अकबरपुर पुलिस द्वारा पिछले 20 मई को पत्रकार को हाजत में बंद करने व हथकड़ी लगाकर मानसिक रूप से उत्पीड़न करने के मामले में पुलिस अधीक्षक की चुप्पी सवालों के घेरे में है. घटना की फोटो युक्त खबर अखबारों व सोशल मीडिया पर प्रकाशित होने के बावजूद किसी प्रकार की जांच या संबंधित थानाध्यक्ष से स्पष्टीकरण तक नहीं मांगना पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह उत्पन्न कर रहा है. और तो और जिले के पत्रकारों के शिष्टमंडल द्वारा दिये गये आवेदन पर अबतक कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं करायी गयी जा सकी है.
गिरफ्तारी पर उठ रहा सवाल:- अकबरपुर पुलिस द्वारा की गयी गिरफ्तारी पर ही सवाल उठने लगा है. जब न्यायालय व किसी थाने ने गिरफ्तार करने का न तो अनुरोध किया न ही किसी थाने में कोई इश्तिहार था तो फिर गिरफ्तारी क्यों?
क्या कहता है न्यायालय:- दिये गये जमानत में न्यायाधीश ने स्पष्ट किया है कि थाने से इश्तिहार वापस किया जिसमें किसी स्वतंत्र गवाह का हस्ताक्षर नहीं है. यानि स्पष्ट है कि इश्तिहार को चिपकाया ही नहीं गया. जब इश्तिहार नहीं चिपका तो सम्मन या वारंट की क्या स्थिति क्या रही होगी यह समझा जा सकता है. कुल मिलाकर अकबरपुर पुलिस की कार्रवाई हिटलरशाही व पत्रकार की कलम दबाने का कुत्सित प्रयास से कुछ कम नहीं.
रजौली पहुंचने में एक सप्ताह:- अब आइये एक नज़र पुलिस की कार्यशैली पर डालते हैं. पत्रकारों के शिष्टमंडल को एसपी ने रजौली पुलिस इंस्पेक्टर से जांच का आश्वासन दिया. उक्त पत्र को रजौली पहुंचने में एक सप्ताह लगा. जब किसी पत्र को 30 किलोमीटर दूर पहुंचने में एक सप्ताह लगता हो और एक सप्ताह के अंदर प्रतिवेदन की मांग की जाती हो इसे क्या कहा जायेगा?
दूध की रखवाली बिल्ली को:- बता दें जब गिरफ्तारी, हाजत में बंद करने से लेकर हथकड़ी लगाने तक खुद पुलिस इंस्पेक्टर अकबरपुर थाने से लेकर थाली थाने तक मौजूद थे तो फिर उनसे जांच कराने का औचित्य क्या है? जाहिर है सारा खेल अकबरपुर थानाध्यक्ष को बचाने की एक साजिश के अलावा कहीं कुछ नहीं है. ऐसा थानाध्यक्ष द्वारा हरे बृक्षों की कटाई मामले में आरोप मुक्त किया जा चुका है.
अबतक नहीं भेजा प्रतिवेदन:- पुलिस निरीक्षक कार्यालय को पत्र प्राप्त हुये करीब दस दिनों से अधिक का समय व्यतीत होने के बावजूद अबतक प्रतिवेदन तक नहीं भेजा जाना कई संदेहों को जन्म दे रहा है. जाहिर है सारे खेल में पुलिस अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है जिससे यह कहा जा सकता है कि वर्तमान पुलिस अधीक्षक से न्याय की उम्मीद करना बेमानी है. ऐसे में जिले में आपातकाल की याद ताजा होने लगी है.