पीएम बनने के ख्वाब देख रहे थे नीतीश और आज इन्हीं के गठबंधन के लोग इन्हें समय देने के लिए तैयार तक नहीं है : डॉ संजय जायसवाल

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Patna, Beforeprnt : विपक्षी नेताओं से मुलाकात के लिए दिल्ली दौरे पर गये नीतीश कुमार को किसी नेता से भाव नहीं मिलने और राजद सुप्रीमो लालू यादव के फोन करने के बाद विपक्षी नेताओं के नीतीश से मीटिंग के लिए तैयार होने संबंधी आ रही खबरों प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने फेसबुक के जरिए उन पर जम कर निशाना साधा.

उन्होंने लिखा कि हमने बचपन से ही पढ़ा है कि लोभ-लालच के फेर में पड़ कर इंसान अपना सर्वनाश कर लेता है. सुशासन बाबू से ‘रबर स्टैंप’ सीएम तक की नीतीश कुमार जी की यात्रा इसी बात का जीवंत उदहारण है। डॉ जायसवाल ने लिखा कि कहां तो कल तक यह महाशय पीएम बनने के ख्वाब देख रहे थे और कहां आज इन्हीं के गठबंधन के लोग इन्हें समय देने के लिए तैयार तक नहीं है. खैर जेलयात्रा से लौटे ‘बड़े भाई’ के रहमोकरम पर इन्हें जैसे-तैसे कुछ अवसरवादियों से समय तो जरुर मिल गया लेकिन साथ-साथ इन्हें अपनी ‘वास्तविक राजनीतिक हैसियत’ का अंदाजा भी बखूबी मिल गया होगा. लेकिन इनकी ‘अंतरात्मा’ को दबाए बैठा लोभ का बैताल इतनी आसानी से नहीं उतरने वाला. यह बैताल इनकी अक्ल तब तक ठिकाने नहीं आने देगा जब तक वह इन्हें ‘अर्श से फर्श’ पर नहीं उतार देता.

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने लिखा कि दरअसल नीतीश जी अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह खो बैठे हैं. जो व्यक्ति खुद को योग्यता से अधिक इज्जत देने वालों की पीठ में बार-बार छूरा घोंपे और मर्यादा की सीमा लांघ कर बेइज्जत करने वालों की गोदी में बार-बार जा बैठे, उसपर भला कोई यकीन करेगा भी तो कैसे? जिस व्यक्ति की ‘जुबान’ का कोई महत्व नहीं हो उसपर किसी का विश्वास जमेगा भी तो कैसे?

राजद नेताओं द्वारा नीतीश के कई बार किये अपमान की याद दिलाते हुए उन्होंने लिखा कि राजद के अधिकारिक ट्विटर हैंडल और उसके कर्ता-धर्ताओं ने जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग इनके लिए किया, उसके बाद कोई ‘आत्मसम्मान’ वाला व्यक्ति उनसे गठबंधन करना तो दूर उधर पलट कर देखेगा भी नहीं. लेकिन अपने सामने पैदा हुए बच्चों के मुंह से चोर, निर्लज्ज, बेशर्म, पल्टूराम जैसी उपमाओं से अलंकृत होने के बाद भी उन्ही के चरणों में शीश नवा कर नीतीश जी ने साबित कर दिया है कि उनका ‘आत्मसम्मान’ उनकी महत्वकांक्षा और लालच तले इतनी रौंदी जा चुकी है कि उसका कोई अवशेष भी शेष नहीं है. आज नीतीश ‘नीतियों’ के नहीं बल्कि ‘कुनीति’ के प्रतीक बन चुके हैं.

उन्होंने लिखा कि नीतीश जी को यदि ‘वास्तव’ में भाजपा से कोई दिक्कत होती और उनका आत्मसम्मान जिंदा होता तो उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को बार-बार तार-तार करने वाले गालीबाजों की गोदी में बैठने के बजाए, संघर्ष का रास्ता चुना होता और आज बिहार त्रिकोणीय राजनीति देख रहा होता. लेकिन बिना मेहनत किए, बैसाखी के सहारे हासिल हुई ‘पॉवर की मलाई’ ने उनके ‘आत्मविश्वास’ को भी लील लिया है.

डॉ जायसवाल ने आगे लिखा कि कहावत है कि जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, खुद उसमें गिर जाता है. नीतीश जी ने अपने राजनीतिक जीवन में दूसरों के लिए इतने गड्ढे खोदें हैं कि कब उनके सलाहकारों ने उनका पैर उन्हीं ‘गड्ढों’ में डाल दिया, यह उन्हें खुद भी पता नहीं चला. यह सलाहकार कोई और नहीं बल्कि वहीं नेतागण हैं जो कभी इनके ‘आंत में दांत’ गिनते थे तो कभी इनका ‘राजनीतिक अंत’ करने की कसम खाते थे. इन्हीं लोगों ने ‘पूरे प्लान के’ तहत इन्हें पीएम बनने की झाड़ पर चढ़ाया और आज यह गिरोह इनका राजनीतिक विध्वंस करने के अपने लक्ष्य के लगभग करीब पहुंच चुका है. दूसरों के लिए साजिशों का जाल बुनते-बुनते नीतीश कुमार कब इनके बुने जाल में फंस गये यह उन्हें पता तक नहीं चला.

विपक्षी दलों को एकजुट करने के नीतीश के प्रयासों को उनके राजनीतिक दिए की आखरी भभक करार देते हुए बहरहाल जिन्होंने लालटेन युग में दिया देखा होगा, उन्हें पता है कि दिया बुझने से पहले एक बार ज़ोर से भभकता है, पीएम बनने के लिए नीतीश जी की यह सारी ‘छटपटाहट’ और ‘उछलकूद’ उनके राजनीतिक दिये की वही ‘आखरी भभक’ है. बाद में उनके खुद के पोषित सलाहकार और राजद उन्हें ‘दूध में पड़ी मक्खी’ की तरह निकाल कर फेंक देंगे. इसे शायद नीतीश कुमार भी अब तक समझ गये होंगे. यही उनका भविष्य भी है.”

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