हेमंत कुमार/पटना : जाति गणना पर नीतीश सरकार को पटना हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोदचंद्रन और जस्टिस पार्थसारथी की पीठ ने जाति गणना रोकने के लिए दायर सभी याचिकाओं को मंगलवार को खारिज कर दिया!
याचिकाकर्ताओं के वकील दीनू कुमार और रितिका रानी ने कहा कि कोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट जायेंगे। जाति आधारित सर्वे पर पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार अपना फैसला सुनाया।
इससे पहले हाइकोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस वक्त सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता पीके शाही ने कहा,सर्वे रोकने के दायर लोकहित याचिकाओं में काल्पनिक बातें की गयी हैं जिसका कोई आधार नहीं है।
सरकार को जनहित में ऐसे सर्वे कराने का अधिकार है। सर्वे पूरी तरह स्वैच्छिक है। किसी के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गयी है। याचिकाकर्ताओं ने भी ऐसे किसी तथ्य का उल्लेख नहीं किया है। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन व जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ कल भी इस मामले की सुनवाई करेगी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार और शाश्वत ने भी अपनी बातें रखीं थीं। महाधिवक्ता ने कहा कि सर्वे का 80 फीसदी काम पूरा हो चुका है। राज्य सरकार इस तरह का सर्वे कराने के लिए सक्षम है। सरकार का उद्देश्य लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का पता लगाना है, ताकि भविष्य में इसका इस्तेमाल किया जा सके। राज्य सरकार की ओर से कराया जा रहा सर्वे जनगणना की तरह नहीं है।
उन्होंने कहा था कि जनहित मामलों में याचिकाकर्ता का काम होता है कि अपने पक्ष में सबूत जुटाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है। सर्वे का कार्य पूरी तौर स्वेच्छा से किया जाने वाला कार्य है। इसमें किसी तरह का दबाव बनाने और धमकी देकर करवाने वाली बात नहीं है। वर्ष 2011 केंद्र सरकार ने जाति आधारित सर्वे कराया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट जारी नहीं की गयी। महाधिवक्ता ने कहा कि सभी वर्ग के लोग अपनी- अपनी जाति के संबंध में जाति के आंकड़े का दावा करते हैं।
सरकार के सर्वे से हकीकत का पता लगेगा, जिससे जनता के लाभ के लिए योजनाएं बनाई जा सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि जो आंकड़ा राज्य सरकार इकट्ठा करना चाहती है, वह किसी न किसी रूप में पब्लिक डोमेन में है। यह किसी के अधिकार और कानून में हस्तक्षेप करने वाला नहीं है। सामाजिक उत्थान और भविष्य में योजनाओं को लागू करने के लिए इस तरह का आंकड़ा इकट्ठा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। यह सभी पहलुओं से समानता के लिए है।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा था कि यदि इस तरह के मामले में राज्य सरकार कानून नहीं बना सकती है तो कार्यकारी आदेश से इसे लागू नहीं कर सकते है। वही, अधिवक्ता शाश्वत ने ट्रांसजेंडर के लिए रखे जाने वाले कॉलम का मुद्दा उठाया था।